Skip to main content

Khari Khari, Man Ko Chithti and Article for Rang Samvad - Posts of 15 to 18 July 2024

चोरी लिखी है भाग में तेरे
•••••••
एक बड़े फर्जी लेखक थे, किसी प्रकाशन संस्थान में काम करते थे और बड़े चल्लू किस्म के थे, सोशल मीडिया का नया-नया ज़माना था, उनके लेख छपते तो हम बड़े कौतुक से पढ़ते और सराहते, फिर धीरे-धीरे उनके लेखों की सँख्या बढ़ने लगी, रोज लगभग देश के हर अड़े - सड़े अखबार से लेकर बड़े ख्यात अखबारों की कटिंग चैंपने लगे और हमें आश्चर्य होता कि एक आदमी इतने विविध विषयों पर कैसे लिख लेता है और रोज-रोज दिन में चार बार उनके लेख यहाँ चस्पा होते - नदी, वियतनाम, कंडोम, वैश्वीकरण, बाज़ार, पहाड़, जंगल, टैगोर, प्रकाशन टेक्नोलॉजी, करेंसी की समस्या, अर्थ नीति, हक्सले, फास्टर, मदर टेरेसा से लेकर बुल्गारिया की झीलों का प्रामाणिक विवरण - क्या नही छोड़ा इन्होंने लिखने से ; आजकल रिटायर्ड हो गए तो सुना पंसारी और भड़भूंजे की दुकान खोल ली है जो सबके कच्चे पक्के चने, मक्का,ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, और गेहूँ भुजंकर बाज़ार में किताबों के नाम से बेचते है
एक बड़े वाले और हुए जो हर माह एक उपन्यास, पचास-साठ कविताएँ, दस-बारह पुस्तक समीक्षाएँ, न्यूनतम दस कहानियाँ देश की हर अग्रणी पत्रिका में आती, दर्जनों पत्रिकाओं के सम्पादक, सलाहकार, मार्गदर्शक और संरक्षक थे
साला हम मध्यमवर्गीय लोगों को पहले रोटी की, बीमारी की, पँचर सायकिल की, दाल-आटे के भाव की चिंता होती है - साल भर में दो कहानियाँ या दो समीक्षाएँ भी छप जाए तो स्वर्ग दिखने लगता है
फिर समझ आया कि घोस्ट लेखक क्या होता है, इंदौर में एक लेखक हुआ करता था, बाद में तो वो पुलिस हो गया - कहता था "मैं एक माह में दो उपन्यास लिख दूँगा, संदीप भैया मेरा सेटिंग करवा दो इनसे, बस एक उपन्यास के पचास हजार लूँगा"
खैर, बात उस चोर की हो रही है जो कवि के घर गया था, बात सिर्फ भौतिक रूप से वास्तविक चोरी की नही होती, चोरों का महिमा मंडन हो रहा है तो इन्हें और इस टाईप के लेखकों का भी श्रीफ़ल शॉल देकर सम्मानित किया जाये सरेआम किसी भद्र महफ़िल में
उपरोक्त दोनों फर्जी लेखक अभी भी जिंदा है और अब भगवाधारी हो गए है दिल से कॉमरेड, कर्मों से हिन्दू, विचारों से समाजवादी और नियत से कांग्रेसी है, हर दिन और नित नये नवनीत किस्म के रिश्ते टटोलते है कि कैसे संस्कृति और धर्म-कर्म को संधारित और संरक्षित किया जाए और इसके लिये वे आपके घर आकर आपकी झुठन भी चाटने को तैयार है
आजकल सूफी कव्वाली सुन रहा हूँ
"चोरी लिखी है भाग में तेरे
मेरा मुर्शिद खेलें होली"
देव डी का है शायद
________
यह मूर्तियों, आस्थाओं और रोल मॉडल्स के टूटने का समय है, बहुत बड़े वाला थेँक्यु मेरे जुकरेवा, तुम नही होते तो ये लोग इतने नँगे स्वरूप में सामने नही आते
***
ज़िंदगी में बहुत लोग ऐसे रहें जिनसे आज भी ईर्ष्या है, इनके लिये मेरे भीतर गहरी धँसी हुई नफ़रत है और मैं इससे उबर नही पाऊँगा कभी, शायद मरने के बाद भी नही
अब यह लगता है कि जीवन में सबसे प्यार करना, सबका सम्मान करना, सबसे मिलकर रहना और बगैर भेदभाव के सम्बन्ध बनाकर रखना कतई ज़रूरी नही है और जो यह कहता है वह धूर्त है, ढोंगी है और मक्कार है - भले फिर वो कोई साधु हो या पीर-औलिया
संसार में कुछ लोग सच में ऐसे होते ही है कि वे नफ़रत के अलावा कुछ और डिजर्व करते ही नही है और इनके होने से ही जीने की आस्था और उम्मीद बनी रहती है, मैं ऐसे लोग - जो मुश्किल से इस पूरी जीवन यात्रा में मिलें असँख्य लोगों में से बीस - पच्चीस होंगे, का शुक्रगुज़ार हूँ कि इन्होंने मेरे जीवन में नफ़रत और प्यार के बीच जीने का असली मक़सद और अर्थ बनाये रखा
मेरा यह भी मानना है कि इनमें से अधिकांश आपके हितैषी होते है, आपके करीबी और प्रशंसक भी पर ना जाने क्यों मन की पर्तों पर जो धूल जम जाती है, ओस अट जाती है वह कभी स्वार्थ या हितों के परे नही देख पाती और नफ़रत का गहरा आवरण काया के मिट्टी में मिल जाने के बाद भी अस्थियों के साथ राख में सुलगता रहता है
इनकी उम्र लम्बी हो, मेरी नफ़रत इनके लिये दिन-दूना रात चौगुना हो - इससे ज़्यादा दुआएँ और क्या ही कर सकता हूँ मैं
कभी लगता है कि यह सब सार्वजनिक कर दूँ पर फिर लगता है हरेक की अपनी एक-एक लम्बी सूची होती है और सबको अपनी सूची गोपनीय रखने का हक़ है - लिहाज़ा उम्र के उस पड़ाव पर हूँ कि अब इस सबका भी कोई मतलब नही है
***
मुम्बई सेंट्रल के पास मुहर्रम की इतनी भीड़ है कि घंटों से ट्रैफिक जाम है और एक भी गाडी ना आगे बढ़ पा रही है ना पीछे, ऐसे में कोई मरीज होगा, सबको ट्रेन पकड़ने की जल्दी है पर लगता है आज आधे से ज्यादा लोग ट्रेन नहीं पकड़ पायेंगे, पुलिस प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है और हजारों लोग परेशान हो रहें है, वैसे ही एक बरसात में यह शहर बेकार हो जाता है, क्या रेलवे हर्जाना देगा या टिकिट वापसी के रूपये या मुम्बई के शेरिफ, पुलिस कमिश्नर इन यात्रियों को हर्जाना देकर माफ़ी मांगेंगे या मुम्बई हाईकोर्ट यदि किसी को कुछ होता है तो सजा-ए-मौत सुनायेगा इन व्यवस्था से जुड़े लोगों को
भारत में रोज जुलुस, यात्राएं और रैलियाँ निकलती रहती है - अजीब देश है, कहने को धर्म निरपेक्ष पर सारा धर्म और भीड़ सड़क पर है, कल विठ्ठल - विठ्ठल कहते हुए फिर वारकरी समुदाय के साथ तमाम मराठी भाषी क्या मुम्बई और क्या इंदौर में यानी कि पूरे देश में लोग सड़क पर होंगे और जीवन जाम कर देंगे, अभी जगन्नाथ यात्रा निकली थी देशभर में, कांवड़ यात्री अलग शुरू होंगे अभी और वो भी डीजे से लेकर तमाम तरह के उपकरण लेकर सड़कों पर रहेंगे
आप गुस्सा होते रहिये, अपना खून जलाईये - बेरोजगारों और मूर्खों की भीड़ काम मांगने के बजाय यही सब करती है और हमारे नेतागण इस सबमें धर्म का मुल्लमा चढ़ाकर जनता को विशुद्ध रूप से गुमराह करते रहतें हैं
अनंत अम्बानी की शादी को लेकर लोगों ने कहा कि आधी मुम्बई जाम थी, आपके घर की बारात में आप क्या करते है, गली मोहल्ले में आठ दिन तक डीजे, ढोल, ताशों से आग मूतते रहते है और कोई बोलने आये तो आप लोग बदतमीजी करने पर आमादा हो जाते है, सड़क आपके बाप की है जो घण्टों बारात निकालकर ट्रैफिक जाम कर नाचते रहते है, हद है हद और शराफत की बात करते है
अभी त्योहार शुरू होंगे - हर चौराहे पर तमाम तरह के उत्सव, टेंट, और कनातें लगी होंगी रास्ते जाम होंगे - प्रशासन और न्याय व्यवस्था नपुंसक होकर चुपचाप रहेंगे और भारत के विकास की बात करते है - शर्मनाक है यह सब
बस काम-धाम मत करो और इसी सबमे मरते रहो, और बात करो विकास की, त्रिपल मिलियन इकोनोमी की
हम सब बकलोल है
***
".......देशभर घूमता हूँ तो लोग पूछते है देवास कहाँ है तो मै दो ही जवाब देता हूँ कि जहाँ नोट प्रेस है या कुमार गन्धर्व का घर है. देवास एक ऐसा शहर है जहाँ साहित्य, संस्कृति कला और संगीत के पुरोधाजन जीवन पर्यन्त लगे रहें. चित्रकला में स्व अफज़ल, कत्थक में प्रिया-प्रताप पवार, नईम, कुमार गंधर्व, वसुंधरा कोमकली, कलापिनी, मुकुल शिवपुत्र, भुवनेश, प्रकाशकान्त, जीवन सिंह ठाकुर, प्रभु जोशी, आदि ये वो लोग है जिनके होने से शहर की आभा है और जिनके होने से ही शहर की पहचान है.
पीढियां ख़त्म हो गई, काल के गाल में लोग समां जाते है - हम सब जानते है, पर मैराथन दौड़ का बेटन हर धावक को अगले के हाथ में थमाना ही पड़ता है – यही दस्तूर और रिवाज है. आज देवास में संदीप नाईक, बहादुर पटेल, मनीष वैद्य, बिंदु तिवारी, सुमन कुमावत, अनूप दुबे, मनीष शर्मा, रश्मि शर्मा, कुसुम वागडे, अमेय कान्त से लेकर युवाओं की एक लम्बी फौज है जो इस शहर की विरासत को संजोये रख रही है. मनोज पवार, शादाब खान ने जहाँ रंगोली को सहेज रखा है वही साहित्य - संगीत को सुरों से साधकर लोग जद्दोजहद कर रहें है कि इस शहर का नाम अजर और अमर रहें. नियमित आयोजन होते है, लोग आते है चर्चाएँ होती है, महिला कबीर मंडलियाँ बन गई है और इस तरह से कबीर ने जेंडर के पैमानों पर भी अपने को सिद्ध किया है
मै और अरविन्द अपनी शाम का आखिरी चक्कर लगा रहें थे और मेरे भीतर वो सारी स्मृतियाँ उमड़ रही थी. इसी शहर में मैंने शोभा गुर्टू, किशोरी अमोनकर, जसराज, भीमसेन जोशी और तमाम उन लोगों को एक छोटे से मंच पर सुना है. राहुल बारपुते, राजेन्द्र माथुर, विष्णु नागर, प्रभाष जोशी, बाबा डीके, विष्णु चिंचालकर "गुरूजी" जैसे बड़े संपादकों, कलाकारों और नाटक कलाकारों का सानिध्य लिया है. अपने बचपन को याद करता हूँ तो अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि ऐसा सुखद बचपन मिला कि आज शब्दों को समझने की तमीज है, राग – रागिनियों को समझने की समझ है, कला के केनवास पर चित्र देखकर कुछ कहने की हिम्मत है और भगवान् आदि तो ठीक है पर सच में यदि पुनर्जन्म होता है तो उस शक्ति से यही कहूंगा कि बारम्बार मुझे यही जन्म दीजौ .…"
_________
◆ एक लम्बे आलेख का हिस्सा - जो कही प्रकाशित हो रहा है

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही