ये है #दैनिकभास्कर की स्थानीय संपादक की असली कहानी, बहन जी भोपाल में थी इनके परमेश्वर भी भास्कर में डॉट कॉम के राष्ट्रीय सम्पादक है या थे - जिन्होंने ज्वाइन करते ही कईयों को निपटाया था
उपमिता वाजपेयी जो मूल इंदौर की है, जब सम्पादक बनी थी तो लोगों ने खूब वंदन द्वार सजाये थे और महिला सम्पादक होने आदि के तमाम गुणगान किये थे, सुना कि एक माह पहले तीन लाख से लेकर तीस लाख तक मासिक उगाही का खेल शुरू कर दिया था, आज विदाई हो गई आखिरकार वीडियो सामने आने के बाद, सुधीर अग्रवाल ने तिलक लगाकर विदा कर ही दिया
मैंने अपने 38 साल के अनुभव में देखा है कि जब महिलाएं भ्रष्टाचार पर उतरती है तो लाखों से कम की डील नही होती और बड़ा सेफ गेम खेलती है टीनू जोशी से लेकर चंदा कोचर और तमाम ऐसे उदाहरण भरे पड़े है - गर्व की बात है कि ये अपने मालवा की लाड़ली बहना है मल्लब इंदौर की
जियो, जियो - महिला शक्ति ज़िंदाबाद
भाई आदित्य पांडे ने बड़ा सटीक लिखा है - आप भी पढ़िए
सुना है अब बनारस अमर उजाला में जाकर मोदी के संसदीय क्षेत्र में उजाले फैलायेंगी और वहाँ तीस करोड़ भी मांगे तो हर्ज नही कोई
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"रोटियों के लिये अब लड़ाई ना हो"
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आप निगेटिव्ह कह लें भले पर सवाल तो है
140 करोड़ों लोगों की रोजी रोटी की समस्या, बेरोज़गारी, कुपोषण, भुखमरी से लेकर सड़क, बिजली, पानी आदि से जूझते "हम भारत के लोग" कब तक इन अरबों रुपयों के शोशे और दिखावटीपन या प्रतिस्पर्धा में बर्बाद होते रहेंगे
राफेल से लेकर आयातित ड्रोन और लगातार हथियार खरीदने से क्या हासिल होगा - हम अमेरिका, चीन, जापान या फ्रांस के बराबर आ भी गए तो हम जैसे आम लोगों को क्या मिलेगा इस देश मे
चार साल से पांच किलो मुफ्त राशन का झुनझुना बजाकर हम लोग निहायत ही मूर्ख और बेअक्ल हो चुके है , कब हम लोग हिन्दू - मुस्लिम, दलित - सवर्ण - ओबीसी या स्त्री - पुरुष छोड़कर मनुष्य बनेंगे और बेहतर जीवन की ओर बढ़ेंगे
विज्ञान और वैज्ञानिक मानसिकता की बात सँविधान के नीति निदेशक तत्वों में है पर हम आगे बढ़ने के बजाय धीरेन्द्रों, प्रदीपों, रावतपुरा, पंडोखरों या अन्य ढोंगी बाबाओं में उलझते रहेंगे
खुशियाँ मनाईए, पर जिस वैज्ञानिक उपलब्धि पर आप फख्र कर रहें है क्या अपने जीवन से अंधविश्वास त्यागकर कुछ तो मानसिकता बदली आपने, कभी सोचा कि अम्बानी अडाणी आप क्यों नही है, आपके पास गाडियाँ और अभेद्य किलें क्यों नही है - आप भी तो इसी देश के सँविधान का ईमानदारी से पालन करने वाले सम्मानित नागरिक है
इस सबमें मोदी या भाजपा को छोड़ रहा हूँ - जिसने देश बेच दिया, कपड़े लत्तों, नखरे पट्टे में निज छबि बनाने को हमें गर्त में लाकर छोड़ दिया, पर इन्हें छोड़ दीजिये ; लोग और सत्ताएँ आती जाती रहती है, कल नेहरू थे, इंदिरा थी तानाशाह, राजीव थे, अटल जी थे, आज मोदी है - कल कोई और आयेगा - इनसे हमारे रोज के जीवन पर फर्क नही पड़ता और इन्हें कोई भाव देने की ज़रूरत भी नही याद रखिये ये लोग वही है जो सारी ऐयाशी करके इनकी नजर हमारे प्याज लहसून और हरे धनिये या टमाटर पर होती है, ये लोग एक सब्जी वाले को नियंत्रित नही कर सकते तो आप इनसे क्या उम्मीद रख रहें है - ये भीख दे सकते है - कोई समस्या का हल नही
पर हमको एक नागरिक, एक राष्ट्र होने के नाते अपने - आपको तौलना होगा कि हमारे मूल्य क्या है और हम अपने लिये, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये और अपने बच्चों के लिये क्या कर सकते है ; कुछ सार्थक रचिये - वरना ये नाम, यश, कीर्ति और सत्ता के भूखे लोग आपको जीने से वंचित कर देंगे
हमारे बच्चे मेहनत कर परीक्षा दें और सरकारें व्यापमं से लेकर पटवारी, बीएड, इंजीनियरिंग, राज्य प्रशासनिक सेवाओं या नीट आदि के पर्चे बेच दें और अपने निकम्मे चहेतों को पास कर भर्ती कर दें - मतलब हम सबने अपनी अक्ल गिरवी रख दी है क्या
सँविधान में हर नागरिक को गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार है और सरकार, न्यायपालिका और कार्यपालिका को यह अब अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करना होगा
"छींटकर थोड़ा चारा कोई उम्र की
हर खुशी बीन ले, हम नही चाहते
इसलिये राह संघर्ष की हम चुने
ज़िंदगी आँसूओं में नहाई ना हो"
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"कैसे है भाई जी, बाज़ार जा रहा था, पोहा और जलेबी लेते आऊँ गर्मागर्म आपके लिये भी" - लाईवा घर के बाहर खड़ा होकर बात कर रहा था
उसके झोले में डायरी देखकर मेरा माथा ठनका -"नही, बिल्कुल नही, साला तुमने दिल्ली की बाढ़, पहाड़ों पर भूस्खलन, और आज छोड़े जाने वाले चंद्रयान पर कविताएँ लिखी होंगी 100 -150, रात भर बिजली जल रही थी तुम्हारे घर की"
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