निर्मल सी निर्मला नही रही
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देवास जिला 1960 में बना शायद और जिले की पहली कलेक्टर रही निर्मला यादव बनी और बाद में महेश नीलकंठ बुच से शादी होने के बाद वे निर्मला बुच बनी
निर्मला जी से लम्बा सम्बंध रहा और जब मैं हंगर प्रोजेक्ट का राज्य समन्यवक था - 2005 से 2009 तक, तो अक्सर उनसे भोपाल में मुलाकात हो जाती थी, दो बच्चों से ज़्यादा वाले लोग पंचायत में चुनाव नही लड़ सकते थे, यह तत्कालीन पंचायती राज अधिनियम में प्रावधान था और इसका सबसे ज़्यादा असर महिलाओं और पड़ रहा था: निर्मला जी से मैंने बात की और उन्हें जमीनी स्थिति से अवगत कराया चार - पांच केस स्टडीज बताई जो आष्टा, सतना और झाबुआ जिले की थी, तो उन्होंने तत्काल एक अध्ययन करने का सुझाव दिया और फिर हमने मिलकर यानी उनकी संस्था महिला चेतना मंच और हमने मिलकर वो प्रभावी अध्ययन किया, किताब छापी और जगह जगह सेमिनार किये, पोस्टकार्ड अभियान चलाया, मुख्य मंत्री से मिलें और एक लम्बी पैरवी के बाद अंत में 2006 में वह प्रावधान हटाया गया मप्र पंचायती राज अधिनियम से
लम्बे प्रशासनिक अनुभव के बाद वे जब एनजीओ में उतरी तो अपने सम्बन्धों और अनुभवों का उन्होंने भरपूर लाभ लिया, प्रदेश के दूर दराज के इलाकों में बहुत जमीनी काम किया, पशु पालन, डेरी की स्थापना जगह - जगह करना से लेकर महिला सशक्तिकरण तक का, जब उनके दफ्तर जाता पहले सूचना दो, जब पहुँचो तो स्वागत करती मुस्कुराकर दरवाजे पर आकर अंदर ले जाती और "चाय, कुछ नाश्ता फिर काम की बात - कोई भी काम हो, कहती तुम एक आवेदन दे दो, मैं रश्मि (सारस्वत) को कह देती हूँ, आने की जरूरत हो तो बता देना - आ जाऊँगी" और मैं कहता अब तो आवेदन और नोटशीट को बख्श दीजिये, पर कहती आदत वही है जायेगी नही और हम मुस्कुरा देते
बस यही पर्याप्त होता था, हमारे पास उन दिनों एलसीडी प्रोजेक्टर नही होता था, भोपाल में चुनिंदा एनजीओ के पास ही होता था और मैं उनसे मांगने चला जाता था, वो हंसकर कहती अगर खराब हुआ तो पूरे पैसे वसुलूँगी, कई गोष्ठियों और किताबें लिखने में अक्सर शामिल रहती, उनका और दूसरा, पूर्व मुख्य सचिव श्री शरद चन्द्र बेहार का जितना सहयोग मुझे पंचायती राज में काम करने का मिला, खासकरके महिला जन प्रतिनिधियों के सशक्तिकरण का उतना किसी का नही, बहुत बारीकी से इन दो मुख्य सचिवों से काम को सीखा और समझा कि प्रशासन कैसे काम करता है जो बाद में बहुत काम आया जब मैं राज्य योजना आयोग में था
देवास से उनका नाता लम्बे समय तक रहा, हमारी महिला पंच - सरपंच के प्रशिक्षण में आती और पूर्व विधायक सोलंकी जी के यहाँ मुझे ले जाती कि "चल तेरी पहचान करा देती हूँ, भले आदमी है" और मैं हंसता कि उनसे तो पारिवारिक रिश्ता है
2015 में भोपाल छोड़ दिया था, इंदौर या उज्जैन जाते हुए इधर से निकलती तो कहती "सर्किट हाउस आ जा, पोहा खाते है संग साथ, तेरा घर नही ढूंढ सकती, देवास बदल गया बहुत अब कहाँ 1960 और कहाँ यह नई सदी" - स्नेहिल, सख्त और नियम - कायदों की पक्की महिला जो रिटायर्डमेन्ट के बाद भी काम करती रही, अपने पति महेश नीलकंठ बुच के जाने के बाद अकेली रह गई थी पर फिर भी लगी रही आख़िर तक
बिरली पीढ़ी की अविश्वसनीय प्रशासनिक अधिकारी थी और जिस मिज़ाज़ से उन्होंने पहली महिला मुख्य सचिव का दायित्व निभाया था उसकी यादें मप्र के प्रशासनिक गलियारों में सदैव बनी रहेंगी
आर सी पी वी नरोन्हा, निर्मला बुच आदि जैसे अधिकारियों ने मप्र को सजाया और सँवारा है उनकी सूझबूझ और दूरदर्शिता ने ही बगैर किसी आर्थिक लालच और राजनैतिक दबाव के बेहतरीन काम किया, बाद में श्री शरद चन्द्र बेहार में वो तेवर दिखते है, बहुत सख्त होने से ये लोग विवादित भी रहें पर नियम कायदों से बंधे इन लोगों ने ज़मीनी स्तर पर प्रशासन करने का मार्ग पुख़्ता किया - यह कहने में मुझे कोई संकोच नही है
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