कुछ महंगी किताबें खरीद ली, कुछ मित्रों ने गिफ्ट कर दी अब पढ़ते नही बन रही, 800 -2000 पेज कितनी फुर्सत है भाई तेरे को - कोई काम नही क्या
इतना लंबा और भारी कोई लिखता है क्या, कुछ तो पोस्ट भी पीएचडी थीसिस के बराबर लिखते है, कुछ कवि निहायत ही बकवास लिख रहे है और लोग लगे पड़े है अहो अहो करके, अरे हर कोई हर बात श्रेष्ठ थोड़े ही लिख सकता है और आपने बीच में कोई तीर मार लिया तो यह मतलब थोड़े ही कि सारा कचरा हम झेल लेंगें - पर कुछ नही कहना, यह सब अब आत्म मुग्ध होने और स्व प्रचार का वीभत्स रूप है और हम सब इसमें पारंगत हो गए है वरना क्या बात है कि एक कविता लिखकर रोज अपनी ही फोटो चैंपने वाले आजकल इफ़रात में है यहां और जो फेसबुक छोड़ने का प्रवचन देते थे - वे आजकल इसी को रसोई और सुलभ बना बैठे है - अब क्या ही कहूँ, ससुरे इंस्टाग्राम हो फेसबुक, ट्वीटर या थ्रेड हर जगह वही पेल रहें है
बस पैक करके रख दी है है, भारी भरकम और बकवास किताबें, दूँगा नही किसी को भी - रूपये का नुकसान हुआ - सो हुआ, पर बुद्धि और समय का ना हो - यह जतन करता हूँ, समय कम है मेरे पास और पढ़ना बहुत है - सो सार्थक ही पढ़े तो बेहतर बाकी तो सब भड़ास है
इतना शर्मनाक हो गया है कि लोग निजी प्रसंगों को भी यहाँ परोसकर लाभुक बन रहे हैं हद है मतलब
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मंडला में रज़ा के पिछले आयोजन पर जिस भाई ने बंगाली बहन के नाम से फर्जी आईडी बनाई थी - वो आ रहा / रही है या नही, नाम तो दिखा था लिस्ट में
चिंता यह है कि कौन, किसके कमरे से रात को कब, किस हालत में निकला, झूले पर कौन किसके साथ बैठा और अब तो सच में सावन है, यह सब लाईव कौन बतायेगा - कई मुन्ने और मुन्नियाँ बदनाम हुए थे उस वक्त, मल्लब पोल - पट्टी खुली थी, उस बहन ने एड किया था फिर गायब हो गई - प्रोफ़ाइल ही डिएक्टिवेट कर दी
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