"कैसे है भाई जी, बाज़ार जा रहा था, पोहा और जलेबी लेते आऊँ गर्मागर्म आपके लिये भी" - लाईवा घर के बाहर खड़ा होकर बात कर रहा था
उसके झोले में डायरी देखकर मेरा माथा ठनका -"नही, बिल्कुल नही, साला तुमने दिल्ली की बाढ़, पहाड़ों पर भूस्खलन, और आज छोड़े जाने वाले चंद्रयान पर कविताएँ लिखी होंगी 100 -150, रात भर बिजली जल रही थी तुम्हारे घर की"
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जो मणिशंकर मणिपुर नही गया वो बरसात में क्या करेगा - कहाँ जायेगा विदेश के अलावा और कोई संवेदना शेष बची भी है
अभी उस काणे की फर्जी दवा की दुकान का उदघाटन करना होता तो केदारनाथ घूम आता, एक दो साल में पहाड़ों पर योजनाएं लाद-लादकर सत्यानाश कर दिया और अब पलटकर देखने का समय नही, ट्वीट तक नही
मणिपुर के समय अमेरिका और बरसात की आपदा में फ्रांस और नाक नीचे दिल्ली यमुना के खतरे को झेल रही है
2014 से हमारी मेहनत के टैक्स का रुपया उजाड़ रहा है नखरे पट्टे करके
ताली बजाओ बच्चा लोग, और बनाओ हिन्दू राष्ट्र
जाओ भक्तों ट्वीट लाओ और चैपो यहाँ
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एक अनार के दाने निकालकर इसे भुट्टे के दानों में मिला दें
पौष्टिक तो है ही, साथ ही यह खाकर आपको दोपहर तीन बजे तक भूख नहीं लगेगी, बस काम करते रहिए कुछ न कुछ, न हो तो किताबें पढ़िये - यह मेरी गारंटी
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"सुनो एक बात बताओ, कल तुम जहाँ गए थे वहाँ तो ढेरों कवि हो गए, कैसे झेला लोगों ने और मंच नही टूटा क्या "
"आग और हसीना" नामक अख़बार में रिपोर्ट पढ़कर लाईवा को फोन किया अभी मैंने
लाईवा चहकते हुए बोला - "नही जी, ज़्यादा नही थे, सुबह के सत्र में 31 कवि, भोजन के पहले वाले में 51 नवगीतकार, भोजन पश्चात वाले में 41 ग़ज़लकार, शाम को 21 गद्य कविता वाले और रात के कवि सम्मेलन में छंद, मुक्तक, दोहे, सोरठे और बाकी मुक्त कविता के सिर्फ़ 51 कवि थे, सब बारी - बारी से पढ़ रहें थे इसलिये मंच टूटने का सवाल ही नही था और फिर टेंट वाले के वालिद भी ग़ज़ल पढ़ रहे थे, वो खुद 'उजड़ा चमन' के तखल्लुस से कविता लिखता है - दो सत्र में वो भी था मंच पर ..फिर कलेक्टर साहब भी मुक्तक पढ़ रहे थे तो मंच का सवाल ही गलत है और....." लाईवा बोले जा रहा था
"अबै, चुप कर साले..." - फोन काट दिया मैंने
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