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बच्चों की लाश पर जीत के अभेद्य किलों में अट्टाहास 2 Jan 2020

बच्चों की लाश पर जीत के अभेद्य किलों में अट्टाहास

एक माह में 100 बच्चे सरकारी अस्पताल के आईसीयू में मरें तो आपको सरकार होने के नाते जिंदा रहने का या शासन करने का भी हक है - चमकी बुखार हो या ऑक्सीजन की कमी या अब कोटा की ये मौतें - उफ कितने घटिया और ग़ैर ज़िम्मेदार है हम भारत के लोग
जिस देश में बच्चे लगातार मर रहें है और सारे जिम्मेदार लोग और सरकारें भी हिन्दू मुसलमान और पाकिस्तान पर बात कर रही हो - उनके लिए सिर्फ शोक संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है
जिस देश के शाहीन बाग में इस कड़कड़ाती ठंड में बूढ़ी औरतें, युवा लड़कियाँ और युवा अपने हक़ों के लिए लगातार लड़ रहे हो और सरकार को हिन्दू मुसलमान और पाकिस्तान दिखें तो उनके लिए शोक संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है
इन मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय बदला लेने और गलीज़ स्तर पर उतरकर गाली गलौज करने वाले लोकप्रिय और जननेता और ऐसे ही लोग संविधान की शपथ ख़ाकर संविधानिक पदों पर बैठ जाएं तो उनके लिए सिर्फ शोक संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है
गोरखपुर , कोटा, लखनऊ या दिल्ली हम सबकी जिम्मेदारी है - रवि ,एकता और उनके मासूम चंपक की जिम्मेदारी हम सबकी है क्योंकि हम भारत के लोग है और हम सब समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के संवैधानिक मूल्यों से संचालित है - अनुच्छेद 15, 19, 21, 26 या 51 A हम सबके लिए है - किसी को भी अधिकार नही कि हमारे बच्चों, महिलाओं और देश के युवाओं को व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी को भी बलि पर चढ़ाएं
अगर हम नही सोचें, बोलें और इन्हें नही रोका तो कल निशाने पर हम होंगे - मतलब बच्चे मर रहें है, 90 साल की महिलाएं रात भर धरने पर है तो हम क्या मनुष्य भी है - आज रात सोने के पहले जरूर सोचिएगा और समझ ना आएँ तो कही जाकर मुंह काला जरूर करिएगा एक बार कि आपने अपने वोट और लोकतंत्र की ताक़त को कितना ओछा, सस्ता और घटिया बना दिया है कि वाचाल और हमारी सामाजिक समरसता को भंग करने वाले चंद लोग 138 करोड़ लोगों को बर्बाद कर रहें है
अफसोस यह जानते हुए भी कि " जो तटस्थ है , समय लिखेगा उनका भी अपराध "

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