सन 1998 का साल , एक एनजीओ की नौकरी छोड़कर देवास के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था अँग्रेजी , किशोर वय के बच्चे और अंग्रेजीदां माहौल, अपुन हिंदी माध्यम से पढ़े सरकारी स्कूलों के बाय प्रोडक्ट, पर मन में था विश्वास कि पढ़ाओ देखेंगे
बच्चों से परिचय हुआ, पहला साल था 12 बोर्ड होने के कारण मुझ जैसे खिलंदड़ को नही दी गई पर बाकी सारी सांस्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी थी, मित्र अर्चना ने बताया कि वहां एक अम्बर पांडेय है जो कविता लिखता है उससे मिलना। एक दिन बुलाया और पूछा कि क्यों कविता लिखते हो तो खड़ा रहा देर तक कुछ बोला नही; दो चार दिन बाद मैंने लंच के समय मैदान में खोज लिया और फिर बोला चलो कुछ बात करनी है, चलते चलते मैं बोलता रहा और वो हूँ हां करता रहा । यकीन मानिए उस समय वो हिंदी अंग्रेजी के सारे क्लासिक्स को निपटा चुका था, उसकी अंग्रेजी से सब ख़ौफ़ खाते थे - स्टाफ रूम में सब रोते थे और मुझे कोसते कि उसे सिर चढ़ाकर रखा है आपने !
आठ दस दिन बाद स्टाफ रूम में आकर एक पुलिंदा पकड़ा गया, जब खोलकर देखा तो चकित रह गया, अपने हिंदी के शिक्षकों को दिखाया तो वे बोली अरे हमें नही पल्ले पड़ता पता नही क्या लिखता है ना छंद है ना गीत और ना औघड़ , आप सिर मत चढ़ाएं उसे , पर मैं घर ले आया और काफी दिनों तक मशक्कत कर समझी वे कविताएं
बारहवीं पास कर वो निकल गया मैं भी शहर के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय का प्राचार्य बन गया, वहां पता लगा कि उसकी छोटी बहन वहां पढ़ती है तब उससे बात हुई। तीन साल तक हल्की फुल्की बात होती रही अम्बर से, बीच बीच मे गायब हो जाना उसकी आदतों में शुमार है पर लेखन का पक्का और धुनी शख्स गजब का बन्दा है। इंदौर में जंजीरवाले चौराहें पर उसके दफ्तर में पहली बार गया तो फिर चकित कि यह वाणिज्य का छात्र और दवाईयां वो भी फेक्ट्री में बनाकर आयात निर्यात में लगा है, एक दिन देवास की फैक्ट्री देखी फिर तो सिलसिला कुछ ऐसा बना कि अब बात ना हो तो चैन नही पड़ता
जब भी आएगा बोलेगा लिखो, पढ़ो एक किताब गिफ्ट लेकर आएगा जेम्स जॉयस हो या विनोद कुमार शुक्ल उसकी पोस्ट पर चुहल करना भाता है, आज उसके फैन्स का एक बड़ा वर्ग है और जब लोग उससे प्यार जताते है तो खुशी कम जलन होती है, डर लगता है कि इस लाड़ले बेटे को कोई छीन ना लें मुझसे जो मेरा इमोशनल एंकर है , इधर एक साल से मैं बहुत परेशान हूँ पर वो हमेंशा यही कहता है कि लिखो रोज लिखो खूब लिखो, किताब निकालो
उसकी किताब के लिए मैं सालों से कह रहा था , द्रोपदी और तोताबाला की कविताएं भी सहेजी थी कि छपवा लें पर कहता था कि एक किताब छपेगी तो दो पेड़ कटेंगें और शशांक, चंदन पांडे और मैं खूब हंसते थे कि हिंदी में लेखकों ने पर्यावरण उजाड़ दिया पर अब समझ आया कि एक तैयारी और परिपक्वता के बाद ही किताब आएं तो बेहतर होता है , उसकी लेखन, भाषाई और व्यंग्य की क्षमता विलक्षण ही नही घातक भी है - यह एक बड़ा कारण है कि हिंदी के स्थापित कवि, कहानीकार और आलोचक डाह रखते है इससे और हमेंशा हल्के में लेने को कहते है, कई कवियों को मैंने प्रत्यक्ष कहते सुना कि अम्बर की कविता भी कोई कविता है - यह कहकर वे अपनी भाषाई , समझ और ना कर पाने की नपुंसकता दर्शाते हैं खैर
आज इस लाड़ले का जन्मदिन है जिसका नाम अम्बर है उसे आकाश भर बधाई और शुभकामनाएं देने का अर्थ नही, उसे तो आकाश गंगा से आगे की शुभेच्छाएँ देने का मन है, अपनी उम्र नही दूँगा क्योकि खाते में है नही ज्यादा अपने अब, पर यह विश्वास है कि जब धरती डूब रही होगी तो नूह जो इस धरा का सामान समन्दर में से ले जाएगी नमूनों के रूप में सबसे पहले मेरे अम्बर को चुनेगी , उसके लिखे को चुनेगी और जगह बची तो इस धूर्त संसार के शेष बचें अच्छे लोगों को चुनेगी जिसमेArchana Solanky, Manisha Jain Ashutosh DubeyChandan Pandey उसका भाई शशांक त्रिपाठी और हमारी लाड़ली डाक्टर Avni Pandey Acharya को चुनेगी जो अम्बर का होना तय करते है और उसे मजबूती से अम्बर बनाये रखते है
बहुत स्नेह और दुआएँ
Comments