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Deonath Dwivedi Ji in Hotel Ashok, Indore 11 Dec 2018

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अवध और मालवा का मिलन
कहते है - सुबहो बनारस, शामे अवध और शबे मालवा , तो यह संयोग बना आज जब अवध बनारस होते हुए मालवा से मिला
नखलऊ यानी लखनऊ जहां मैंने थोड़े समय काम किया पर कुछ संबंध ऐसे बने - जो मेरे जीवन की कमाई है उनमें से एक है हमारे देवनाथ द्विवेदीजी , द्विवेदी जी मूल रूप से बायोलॉजी के व्याख्याता रहे इंटर कॉलेजेस में और बाद में शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्य पुस्तक लेखन आदि से जुड़े रहे एक अच्छे शिक्षक, उससे ज्यादा अच्छे दोस्त और सबसे ज्यादा बहुत सहज इंसान है, लखनऊ में उनका घर "दोस्त का घर" है - जहां कोई भी जा सकता है, रह सकता है और उनसे गपशप कर सकता है
बेहद अनुशासित दुनिया घूमने के शौकीन द्विवेदी जी इधर कनाडा में छह माह बीताकर मालवा में पहली बार आए थे अपने पोते से मिलने जो इंदौर आया है आय आय एम से 5 सालाना डिग्री कर रहा है और जाहिर है मैं और मेरे बाकी मित्र भी देवास में थे ही, देवास के मित्र मेरी वजह से उनसे मिले 2016 के पुस्तक मेले में और उनसे दोस्ती हुई
द्विवेदी जी मूल रूप से बाल साहित्यकार हैं जिन्होंने बच्चों के लिए तीन कहानियों की किताबें लिखी अपने रूपयों से छपवाई और बच्चों में निशुल्क बाँटी, बाद में पता लगा कि वे कविता, कहानी, ग़ज़ल की विधा में भी पारंगत है - मालूम पड़ा कि बोधि प्रकाशन से हाल ही में उनका एक नया संग्रह भी आया है इसकी चर्चा पढ़ने के बाद , अभी बस इतना कि वे बहुत उच्च कोटि के व्यवहारिक लेखक है और संजीदगी से सोशल मीडिया और गम्भीर लेखन में सक्रिय है , फेसबुक पर चुटीले लेखन के साथ अपने जीवन के फ़लसफ़े और जीवनानुभव DNDWisdom के नाम से लिखते है जो बेहद रोचक और ग्रहणीय होते है
इंदौर में जब वह आए तो जाहिर है उनसे मिलना था ही हमने कहा था कि देवास में रुको मेरे घर, पर वे पोते रोहन के मोह में इंदौर चले गए और रोहन उनसे मिल नहीं पाया आज रोहन का जन्मदिन था फिर भी उसे छुट्टी नहीं मिली तो देवनाथ जी अपनी धर्मपत्नी अर्थात मेरी मुंह बोली बड़ी बहन शोभा ताई के साथ 2 दिन में मांडव और उज्जैन घूम लिए साथ ही इंदौर भी और आज अकेले-अकेले गीता भवन के रसगुल्ले भी खा लिए, शोभा ताई के होते लखनऊ कभी पराया लगा ही नही, मुंह उठाकर घर और रसोई तक में घुस जाता था
आज हम उनसे मिले बहुत अच्छा लगा मुलाक़ात अधूरी रही पर अब वे जल्दी ही आएँगे और डेरा देवास ही डालेंगे यह वादा किया है, आज लखनऊ के दूसरे संकट मोचन रहें प्रोफेसर Mukesh Bhargava को भी जमकर याद किया, हिचकी आई हो उन्हें शायद
रोहन के लिए जन्मदिन की शुभकामनाएं और इन दोनों दुनिया घूमने वाले घुमक्कड़ प्राणियों के लिए खूब सारा आकाश भर प्यार और दुआएँ
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