दिसंबर की कुनकुनी धुप है, दूर तक चने के खेत है, गेहूं की फसल लहलहा रही है और धूप में हल्की सी आंच है, लम्बी छोड़ी सडकों पर घूमते हुए एक सुबह मै यहाँ चला आया हूँ और मेरी मुलाक़ात रेशम बाई से होती है, खेत के एक हिस्से में बैठी वो सोयाबीन से कंकर चुन रही है, कमाल यह है कि 95 बरस की होने के बाद भी उनकी आँखों पर चश्मा नही है, मै पूछता हूँ कि वो धूप में क्या कर रही है, मेरी आवाज थोड़ी ज्यादा है तेज हवाओं और उनकी उम्र का लिहाज कर मै थोड़ा जोर से बोलता हूँ पर रेशम बाई कहती है कि इतना उंचा क्यों बोल रहे हो, मै बहरी नही.. और मुझे बराबर सुनाई देता है, थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करते हुए मै उनसे कहता हूँ कि आपने 95 दिसम्बर देखें है क्या होता है – वो अपनी सोयाबीन एक तरफ रखती है और कहती है ये देखो ये सोयाबीन का दाना दिसंबर है जो बहुत लम्बी प्रक्रिया से गुजरकर आया है - बीज, बीज से पौधा, फिर फली और पकने के बाद इस थाली में से मैंने इसे कंकडों के बीच से चुना है और एक – एक दानों से मिलकर यह इतना बड़ा ढेर बन गया है और इस ढेर में छोटे बड़े दाने सब है जैसे जीवन हो.
मुझे लगा था कि कभी स्कूल नही गई रेशम बाई सीधी सादी बात करेंगी परन्तु उन्होंने जो जीवन का फलसफा दिया वह चमत्कृत करने वाला था, वो बोल रही थी खेत उजाड़ हुआ, फिर हमने मेहनत की और चना और गेहूं लगाएं है, सब्जियां हैं, दालें है और कुछ अपने आप उग आया है जिसे कोई रोक नही सकता पर हम फिर चने के सुनहरे दाने चुनेंगें, गेहूं के सुनहरे गोशों से बारीक बीज संवारेंगें और इस तरह से जीवन को आगे बढाने वाली ऊर्जा को इकठ्ठा करके रखेंगें, सबको देंगें और अपने उपयोग के लिए भी रखेंगे. मुझे सर्द हवाओं में कही गुड पकने की मीठी खुशबू आ रही थी,
गुजरते हुए साल के अफसोस और आने वाले साल की खुशियों के बीच का यह माहे दिसंबर हम सबके जीवन का एक अदभुत माह है जो हमें गुजरते हुए साल के गुन्गुनों पछाताओं से जोड़ता है और आने वाले साल की नई उमंग और उम्मीदों से रूबरू करवाता है. दिसंबर पश्चाताप के आंसू पीने का और नई साल की कसमे लेने का मौसम है, यह जीवन हमें फिर एक भरपूर पूरा साल पलट कर देता है और इस तरह से हम बारंबार अपने जीवन में हर पल दिसंबर मनाते हैं. दिसंबर सिर्फ सवाल जवाब और निराशा का मौसम नहीं यह सिर्फ एक महीना नहीं बारहों माह का वह अप्रतिम चक्र है जो ना पलटकर लौटेगा, दिसंबर हमारे जीवन में किसी पहाडी स्टेशन सा है जो खूबसूरत सा है - जिस पर बार-बार कैलेंडरों की रेल आती-जाती रहेंगी, हर बार नए मुसाफिर नए चेहरों के साथ आयेंगें, नए सफर नई मंजिलें होंगी इनके बरक्स, नए संकट, नई उम्मीद, नई संकल्पनाएँ नए लक्ष्यों के साथ होंगी जीवन ठहरता नही है, हम देखते रहेंगे गुजरती हुई ट्रेन को और उन पटरियों को जो समानांतर हैं, पर हमेशा साथ है सुख दुःख की तरह.
हमने हर बार नए संकल्पों से अपनी दीवाल का कैलेंडर को हटाया है नई साल की सुबह पर और नया कैलेंडर लगाया है ताकि उसमे बस जाएँ - मेथी का साग, चने के भाजी की ताकत, सरसों की साग के साथ गाजर का हलवा हमें याद दिलाये कि जीवन के स्वाद निराले होते है, दिसंबर में ताजे गुड और घी की खुशबू, छोटे मटर के दाने, संक्रांत के तिललड्डू, खुले आसमान में बेखौफ उड़ती पतंगों का सन्देश भी लाने वाला माह है, वासंती हवाओं से शुरू रंगीन फाग की मस्ती और चैत्र की सुबह का भी संदेशवाहक है.
शहनाईयों की शुरू होती गूंज के बीच मिलने मिलाने और विदाई का भी मौसम है यह नए आँगन में पैर जमाकर बाबूल और नैहर की गलियों को छोड़ने का माह है जब अभी अभी नवम्बर में देव उठे है, यह मौसम सप्तपदी चलकर दो अनजान लोगों के मिलने का भी है जो जीवन का सर्ग अपने चरम पर ले जायेंगे और संस्कृति को आगे बढ़ाएंगे. इनके स्वागत में पेड़ों की डालियाँ हरे पत्तों से लदी है, फूल खुशमिजाज़ होकर मुस्कुरा उठे है, डोलियाँ सज रही है महकते गजरों की खुशबू से समूची प्रकृति महक रही है मानो पिया मिलन और विदाई के बीच इनकी मुस्कराहट से फिजां बदलेगी. यह माह गोदड़ीयों और स्वेटर शालों का भी माह है जब नई सज धज के साथ वे संदूकों से निकलकर नर्म नाजुक त्वचा को बचाकर रखते है.
पतझड़ के बाद जैसे पेड़ शेष रह जाते हैं और थोड़े समय के बाद नई कोंपलें आ जाती है वैसे ही जीवन में दिसंबर गुजरने के बाद जीवन शेष ही रहता है और हम पुनः नए साल के आलोक में पल्ल्ववित और पुष्पित होते है. नई नर्म नाजुक पत्तियाँ आहिस्ते से खिलती हैं, तने से पानी और सूरज से रोशनी लेकर एक समय बाद स्वतंत्र और अपना भोजन बनाने को आत्मनिर्भर हो जाती है, पेड़ों के साथ वे पुरे पर्यावरण का ध्यान रखती है और हर आने जाने वाले को छाँह देकर आसरा देती है, दिसंबर इस पुरे का एक मात्र गवाह है जो यह सब घटित होते देखता है और अपने भीतर रच बसकर मथता है, यही है वो सत्व जो जीवन को चलायमान रखता है.
दिसंबर का अर्थ मीठी - मीठी धूप में बैठकर परीक्षाओं की तैयारी करने का भी है परीक्षाएं से पुस्तक - पाठ्यक्रम और डिग्रियों तक सीमित नहीं बल्कि आने वाले साल और जीवन की तैयारियों के लिए भी आवश्यक है और यही वह सब है जो नए साल से पुराने साल को जोड़ता है. नवंबर और जनवरी के बीच का यह माह सिर्फ एक माह नहीं बल्कि एक ऐसा पुल है जो हमारी स्मृतियों को संवार कर, संरक्षित कर आने वाले साल के लिए ऊर्जा और प्रेरणा देगा ताकि हम पुरानी बुरी बातें भूल कर मीठी स्मृतियाँ संजो कर रख सके और आने वाले साल के लिए अपने जेहन में बहुत सारी जगह रखें. रेशम बाई कहती हैं - ऊपर वाला है, उस पर भरोसा रखो, जीवन तनाव में नहीं खुश होकर गुजारो, जो हो रहा है - उसे होने दो, उसी में आपका भला है, अल्लाह बड़ा कारसाज है और ईश्वर के यहां आपके खाते में हजारों दिसंबर लिखें हैं और आप बस हंस खेलकर इस फड़फड़ाते हुए कैलेंडर को नए जोश और अपनी मेहनत से बदलो.
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