06/01/2019 Naiduniya
"खुश है जमाना आज पहली तारीख है"- यह गाना बचपन की स्मृतियों में कहीं ऐसा दर्ज है कि आज तक भुलाए नहीं भूलता। हर माह की एक तारीख को मां और पिताजी जब घर आते थे तो उनके पर्स या बैग हम छीन लेते थे और उसमें रखी नोटों की चमकदार गड्डी अपने आप खुल जाती थी या पिता सिले हुए पेंट की चोर जेब में से नोटों की चमकदार गड्डी निकलती थी जिसे देख कर हम खुश हो जाते थे। कभी रेवड़ी, कभी गुलाब जामुन, कभी जलेबी, कभी रसभरी और कभी गाजर के हलवे के लिए रुपया निकाल दे देते थे और इसके अलावा हमें हाथ में थमा देते थे एक दो रुपये की चिल्लर कि जाओ मिठाई के अलावा तुम्हारी पसंद की चॉकलेट भी ले आना।
मुझे याद पड़ता है कि वह नोटों की गड्डी रात को खुलती थी और सारे देनदारों का हिसाब माँ और पिता मिलकर बनाते थे और हरेक का रुपया दिया जाता था - चाहे वह दूध वाला हो, प्रेस वाला हो, मकान मालिक या अखबार वाला और उसके बाद एक लोहे की अलमारी में या किसी संदूक में ताला लगाकर शेष बची नोट की गड्डी सुरक्षित रख दी जाती थी। धीरे धीरे पिता और मां माह के अंत तक उस गड्डी से नोट निकालते और माह भर के खर्च करते रहते थे। माह के अंत तक आते-आते वह नोट की गड्डी खत्म हो जाती और आखिरी के तीन चार दिनों में जेब की तह में रखें हुए सौ दो सौ रुपये ही आखरी सहारा होते ।
यदि यह जनवरी की एक तारीख होती और तो हमारा मजा और उत्साह दोगुना हो जाता। इकतीस दिसंबर की रात को जागते और ठीक बढ़ बजे जब पुराने चर्च का घड़ियाल सुनाई देता तो माँ मूंग या गाजर का हलवा भगवान को भोग लगाकर सबको चमकदार कटोरी में देती - जिस पर मां थोड़े से काजू बादाम बुरक देती थी और हम मां पिता के पांव पड़कर नए साल के लिए आशीष लेते।
अब लगता है कि हर साल हमें जीवन में एक जनवरी को नोटों की एक गड्डी मिलती है जिस में असंख्य पल दर्ज होते हैं और हम उन्हें पूरे साल भर तक आहिस्ता आहिस्ता निकालकर खर्च करते रहते हैं और दिसंबर तक आते-आते रुवांसे हो जाते हैं कि हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण साल और खत्म हो गया। हम बैठकर अपनी उपलब्धियों को गिनते हैं परंतु एक जनवरी की यह नोट की गड्डी जो फिर से हमें मिलती है यह सोचकर हम उत्साह से दूने हो जाते है।
नए साल का यह माह रोमन सभ्यता में दरवाजों के देवताओं जनुस के नाम पर जाना जाता है जनुस दरवाजों के देवता है अर्थात दरवाजे पर खड़े होकर हम हम आगे और पीछे दोनों ओर देख सकते हैं आज जॉर्जियन कैलेंडर के अनुसार पहला माह भी इसीलिए है कि पिछले और अगले साल को जोड़ता है। वास्तव में जनवरी का माह जहां पीछे पलट कर पिछले वर्ष की उपलब्धियों, कमजोरियों और चुनौतियों को देखने का माह है वहीं नए उग आये सूरज के सामने अर्घ्य चढ़ाकर दृढ़ संकल्प लेने का भी माह है, यह महीना प्रेरणा, सम्बल, उत्साह, जोश और नए संकल्प लेने का है - वहीं जीवन में जुड़ने जा रहे एक और महत्वपूर्ण वर्ष की शुरुआत है जिसमें हम अपने वर्तमान को मेहनत एवं लगन के द्वारा पूर्ण तैयारी और प्रतिबद्धता से आने वाले भविष्य के लिए अपने आप को तैयार कर सके, अपने घर, परिवार, समाज और देश - प्रदेश को सँवार सके ताकि मानवत हमेंशा बनी रहे और इतिहास में हम कुछ ना कुछ अमूल्य योगदान देकर रुखसत हो।
जनवरी माह में आने वाला सबसे बड़ा त्यौहार संक्रांति का है जब सूर्य देव अपनी चाल बदलते है और इस दिन तिल के लड्डू खाए जाते हैं , हम सब जानते गई कि तिल के एक दाने को पकड़ना बहुत मुश्किल है और मुट्ठी में तिल समाती भी नहीं है - परंतु यदि ये सब दाने गुड में मिला दिये जाए तो सब एक साथ इकट्ठे हो जाते हैं और मिठास के साथ साथ ताकत भी देते हैं । इसी दिन मुक्त आसमान में पतंग में भी उड़ती है बेसुध होकर उन्मुक्त भाव से - जो कहीं भी जाने आने के लिए स्वतंत्र है, परंतु उनकी डोर जमीन पर खड़े किसी के हाथ में होती है जो उसे भरपूर उड़ान उड़ने तो देता है पर हमेशा इन रंग बिरंगी पतंगों को कटने से बचाता है । जीवन संभवत: ऐसे ही होता है । जनवरी का माह जीवन के खुले आसमान में उड़ने के लिए है हम अपनी सारी इच्छाएं मुक्त आकाश में अपने हौसले और बलबूते पर पूरी करें - परंतु हमारे पांव यथार्थ के धरातल पर इतनी मजबूती से जमे रहे कि हमें कोई दिसंबर कमजोर ना कर सके। जनवरी का माह नए संकल्पों के साथ साथ नई दृष्टि और नए मिशन आरंभ करने का भी है ताकि हम अपने जीवन के साथ साथ अपने आसपास के जैव बगीचे में खूबसूरत फूलों को, पेड़ों को फलने फूलने दें - उगने दे और उसकी सुवास वातावरण को शुद्ध करें और खुशबू से भर दें - यह प्रयास अंत तक बना रहे। जनवरी हम सब के लिए शुभ हो यही हमारी कामना हो।
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