देवास विधानसभा घोषित होने की चर्चा जोरों पर है . भाजपा ने जो उम्मीदवार घोषित किया है वह पूर्व विधायक की पत्नी श्रीमती गायत्री पवार है, यानी भाजपा पिछले तीस बरसों में स्व तुकोजीराव के बाद कोई दूसरी लाइन नहीं बना पाई और अब उनकी दुखद मृत्यु के बाद उन्ही की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है. भाजपा सन 84 को याद करके राजीव गांधी की जीत की तरह से भुनाना चाहती है जब इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सहानुभूति के वोट मिले थे. श्रीमती गायत्री पवार की जनता में कोई छबि नहीं है सिवाय इसके कि वे पुर्व विधायक की पत्नी और विक्रम पवार की माँ है जो इन दिनों फरार है एक ह्त्या के मामले में. देवास, ग्वालियर, इंदौर और धार ये रियासतकालीन शहर है और दुनियाभर में जनतंत्र होने के बाद इन शहरों में अभी भी सामंतवाद ज़िंदा है और यहाँ के लोग मानसिक रूप से गुलाम है और वे इस गुलामी से मुक्ति नहीं पाना चाहते. देवास में श्रीमती गायत्री पवार पिछले दिनों से सक्रीय हुई है पर जनता में कम और होर्डिंग्स में ज्यादा, यहाँ वहाँ उनके होर्डिंग्स नजर आ रहे है और शहर भर के छुट भैये नेता अपने चेहरे दर्जनों से इन होर्डिंग्स पर नजर आ रहे है.
दूसरी ओर कांग्रेस के पास मनोज राजानी और जय सिंह ठाकुर के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, जबकि ये दोनों हार चुके है एक नहीं दो बार. रेखा वर्मा एक उम्मीदवार हो सकती थी पर उनका महापौर का कार्यकाल विवादास्पद रहा है और वे कुछ कर नहीं पाई थी इसलिए उन्हें टिकिट देना तो जमानत जब्त करवाना होगा. मनोज या जयसिंह ठाकुर फिर भी दम भर सकते है और जमानत तो जब्त नहीं होगी. और अब फिर से इनका जीतना मुश्किल लग रहा है क्योकि सामंती परिवेश और गुलामी की जंजीरों में जकडे लोग मजबूर है, साथ ही संघ का शहर में प्रभाव और जमीनी काम, सैंकड़ों प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भाजपा को जीतायेंगे ही क्योकि संघ के लिए भी कोई और विकल्प नहीं है. शरद पाचुनकर भी दमदार उम्मीदवार है जो शहर को अच्छे से जानते है और लोगों तक पैठ है.
तीसरा विकल्प है ही नहीं, लोगों के सामने भी मजबूरी है भाजपा को जिताने की. लोकसभा में आम आदमी ने एक उम्मीदवार खडा किया था जिसकी दुर्गति इतनी हुई कि अब कोई हिम्मत ही नहीं करेगा. सवाल यह है कि भाजपा ने इतने बरस क्या किया और अब क्या करने वाली है सिवाय इसके कि देवास शहर को फिर से आने वाले तीस बरसों के लिए सामंतवाद में डाल रही है क्योकि अभी ये गायत्री जी फिर इनका बेटा विक्रम.........
सोचिये देवास जनों ......ना कांग्रेस - ना भाजपा फिर क्या ? क्या शहर में कोई और लोग नहीं जो विकल्प की और विकास की बात कर सकें, क्योकि एक समय में मप्र की औद्योगिक राजधानी कहलाने वाला शहर आज अपनी बदहाली पर रो रहा है. दूर तक पसरे बंद उद्योग धंधे और बेरोजगार लोगों की पंक्तियाँ, ठंडी पडी चिमनियाँ और अस्त व्यस्त विकास, पानी के लिए आज भी मारम्मार है, बहुत ही गन्दगी से भरा यह शहर अपने अविकसित ढर्रे पर रोता है, कलपता है और चीखता है. शहर के नई उम्र के बच्चे जो रोज इंदौर आकर पढ़ते है, अपनी रोजी तलाशते है, के पास भी कुछ नहीं है सिवाय इस शहर के नेतृत्व को कोसने के.
आश्चर्य यह है कि इस निर्णय में शामिल कैलाशजी जोशी जैसे वरिष्ठ लोग है जो प्रतिबद्ध मीसाबंदी थे और रायसिंह सेंधव जी, तपन जी से लेकर प्रबुद्ध वकील, डाक्टर, उद्योगपति, मीडियाकर्मी और व्यवसायी भाजपा से जुड़े है उन्हें नजरअंदाज करके इस तरह से प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व ने टिकिट दिया यह घोर आपत्तिजनक होना चाहिए.
यही वंश परम्परा भाजपा रतलाम में भी निभा रही है, कांग्रेस को इस वंशवाद पर गाली देने वाली भाजपा में भी संतानों और अपनों के प्रति मोह कम नहीं है यह अब स्पष्ट हो गया है. और तो और अब मोदी किस मुंह से कांग्रेस को गाली दे रहे है या अमित शाह क्या इसी परम्परा को पुष्ट करने और संवर्धन करने भाजपा में आये है? भाजपा हो या कांग्रेस या वामपंथी या सपा या जद या तृणमूल सभी इसी बीमारी के मारे है और इनमे से किसी में दम नहीं कि कुछ नया रच सके या कर सके.
जब अपना हाथ ही पराया हो जाए और गैरों जैसा बर्ताव करें तो इससे बड़ा दुःख क्या होगा...?
कभी लगा ही नहीं की अपने आप से इतना पराया हो जाउंगा और फिर लगा कि चलो ये भी ठीक रहा, कम से कम अब कोई दुःख तो नही होगा......
सुप्रीम कोर्ट के आदेशो का हम कितना पालन करते है यह देखना हो तो त्योहारों को देखे। दुर्गा पूजा का हो गणपति या मुहर्रम का जुलुस। ट्राफिक का क्या हाल होता है और पुलिस नपुंसक सी खड़ी देखती रहती है। ऊपर से मुम्बई जैसा शहर तो बस समझिये आपकी वाट लग गई।
बन्द करो ये धर्मों का सड़कों पर नंगा प्रदर्शन आप सबकी वजह से नागरिकों को कितनी तकलीफ होती है।
सड़क किसी भी धर्म के लिए नही है और जो सड़क पर जुलुस निकाले धर्म के नाम पर उसे फांसी पर टांग दो मुल्ला मौलवी हो या पण्डित या पादरी या निहंग। सत्यानाश कर दिया है इन कूप मण्डूक लोगों ने।
मप्र में कलेक्टरों की बदतमीजी बढ़ती जा रही है। कल दतिया कलेक्टर प्रकाश जांगरे ने पी डब्ल्यू डी के कार्यपालन यंत्री कमल किशोर सिंगारे को चांटा मार दिया।
यह सब भ्र्ष्टाचार की मलाई , बंदरबांट और ऊपर तक हिस्सा पहुंचाने का परिणाम है। अपने हिस्से में से लोग देना नही चाहते और एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि मप्र में सिर्फ सरकार के लोगों को नही बल्कि पार्टी और संगठन में भी देना मजबूरी है वरना लूप लाईन में जाने के खतरे ज्यादा है।
चम्बल संभाग में तो यह रिवाज ज्यादा है और जो इसको साध लेता है उसे इंदौर जैसा स्वर्ग मिल जाता है।
जब तक आप ब्यूरोक्रेसी का मूल चरित्र नही बदलेंगे तब तक कुछ नही होगा सिर्फ स्थानांतरण करने से क्या होगा?? कुन्ठित व्यक्ति को कही भी रखो ये संक्रमण तो फैलायेगा ही।
अब इनपर जब तक चौराहे पर लटकाकर फांसी नही दी जायेगी तब तक ये बद्तमीज ब्यूरोक्रेट सुधरेंगे।
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