और फिर एक सुबह सूरज उगा नहीं उसकी दुनिया अंधेरी हो गयी, कल सारी रात चाँद भी नहीं था और सितारे किसी हारमोनियम के सुरों में जाकर छुप गए थे, वह एक अंधेरी सुबह को अपने माथे पर उठाये आसमान के पार निकल गया और फिर उसे लगा कि सूरज और चाँद दोनों उसके साथ छल कर रहे है, उसने अपनी आँखों के आगे से उजाले का छद्म हटाया और सोचा कि इस तरह वह फिर एक बार लडेगा और इस बार सूरज और चाँद को मुठ्ठी में कैद करके ले जाएगा और अपनी किताब के उन पृष्ठों पर रख देगा जहां तुमने गुलाब का एक फूल रखा था, और फिर उन सफों को बंद करके किताब को पहाड़ के पीछे फेंक देगा ताकि सूरज और चाँद किसी को ना मिल सके.............बस आँखे मलते हुए उसने सुबह को फिर से देखा अन्धेरा गहरा हो गया था..
बिहार में मोदी की 40 रैलियां । इतना डर गए लालू नितीश से ? यह खर्च हमारे इनकम टेक्स से जा रहा है इसकी भरपाई कौन करेगा।
खुशी की बात है कि दादरी, बनारस और मुज्जफरनगर में नेताजी की सरकार है , वरना हमारी सरकार होती तो ना दंगे होते ना कर्फ्यू लगता - मितरो, इसलिए यु पी में अबकी बार मोदी सरकार ।
और बनारस में आज जो हुआ उसके लिए कांग्रेस दोषी है, अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में बैठकर दंगे भड़का रहा है और साले कामरेड वहाँ सेक्युलर होने के नए शगूफे तलाश रहे है।
ध्यान रहें मितरो " हिंसा परमो धर्म" यही अभी अमेरिका को सिखाकर आया हूँ आप लोग संयम रखे अखिलेश को कहता हूँ कि देश के मध्यमवर्ग की मेहनत और पसीने से कमाए इनकम टेक्स से कुछ पचास साठ लाख का मुआवजा हर मरे खपे हिन्दू भाई बहनों को बाँट दें।
मेरा अभी आना मुश्किल है , किसी मन की बात में जिक्र करके अशांति की अपील दोहरा दूंगा - तब तक एकाध दो देश और घूम आऊँ।
आप लोग कहे तो राजनाथ या अमित जी भाई शाह को दौरा करने भेज दूं , वैसे कौशाम्बी से गया डीएम अपना ही कार्यकर्ता है।
नमो
जो साथी पूछते है अब तक क्या किया जीवन में, नोकरी में या साहित्य में तो जवाब है अन्य की तरह नही रहा रीढ़विहीन, बस यह जवाब उन सबके नाम जो उस पार है और मैं अकेला इस तरफ....
"मेरे लहजे में जी हुजूर न था
इसके अलावा साहब मेरा कोई कसूर न था,
अगर पल भर को भी मैं बे-जमीर हो जाता
यकीन मानिए कब का वजीर हो जाता".
अचानक वह उस जुलूस के पीछे चल दिया और सारे रास्ते आंसू बहाता रहा. राम धुन बज रही थी, सिक्के उछाले जा रहे थे , भीड़ में लोग गप्प करते जा रहे थे और एक सामान्य प्रक्रिया में लोगों के लिए इस तरह की शवयात्रा में जाना अमूमन रोज की बात थी, कपड़ा बाजार के व्यापारी और आस पास के बाजारों के लोग प्रायः रोज ही इस तरह की शवयात्राओ में जाकर अपना धंधा बढ़ाते , तसल्ली से श्मशान में बैठकर डील करते और लौट आते थे.
आज इस भीड़ में उसे रोता देखकर सब अचंभित थे एक ने साहस करके उससे पूछ लिया कि ये अमृतलाल जो मर गया, क्या तुम्हारे सगे वाला था जो इस तरह से रो रहे हो..? उसने कुछ नही बोला सिर्फ खाली आसमान में ताकता रहा और फिर निरपेक्ष भाव से बोला.. नही मैं किसी को नही जानता, पर जब भी कोई मरता है , देह से मुक्ति पाता है तो मुझे लगता है कि ये मैं हूँ एक समूची देह जो सदियों जन्म ले रही हो, और मर रही है हर पल हर जगह और इसलिए मैं चला आता हूँ हर अर्थी के पीछे और कमबख्त आंसू निकल आते है मानो मैं खुद ही अपने मरने पर दुखी हूँ , संजीदा हूँ बेहद कि इस मरने को इतना देख लूँ कि अपने मरने का कोई रंजो गम ना हो और निष्काम और तटस्थ भाव से मुक्त हो सकूं...
वह जा रहा था और लोग देख रहे थे उसे.... फिर जलती हुई लाश में वहशीपन नजर आया और सबने अपनी मौत को साक्षात नृत्य करते देखा.... सब भयाक्रान्त थे, बेहद डरे हुए और कमजोर से... आँखों से आंसू कब निकल पड़े ... आज किसी को घर जाने की जल्दी नही थी ... आज वे जिंदगी की डील में मौत से हार गए थे...
- एक मौत पर , जिसका सबको बेसब्री से इन्तजार था, को देखते हुए.
ये आतुर कंठ, ये उन्मुक्त साँसे, ये चटके से सपने, ये हाथों में अंजुरी भर के कोलाहल और दीप्त सी आँखों में भयावह अँधेरे - शायद चलाचली की बेला है और थम रहा है सब कुछ, धूरी पर घूमती अवनी के किसी कोने में गोल अब ठोस तिकोन में बदल गया है और यह व्यथा ख़त्म होकर अपने ही बनाए संताप में घूम घूमकर, चक्कर लगाकर थक गयी है........तिमिर है, कही बियाबान, कही फाका और कही नवनीत, यही कही उद्दाम वेग से प्रचंड होती शास्त्रों की ऋचाएं, देखो, देखो........सुनो, सुनो.......इन्हें महसूस करो और फिर कहो... असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय ....
छोड़ा तो कुछ नहीं था पाने के लिए और पाने के बाद सब कुछ छुट गया, ना अपना रहा कुछ, ना कुछ अपना सा भ्रम देने वाला, बस बीत रहा है सब कुछ और अस्ताचल का सूर्य ठीक सामने है और दूर कही एक तारा टिमटिमा रहा है , किसी क्षितिज से चाँद की रोशनी छन कर निकल रही है और ठीक इसी समय एक सांस बेचैन है टूट जाने को और व्योम में मिल जाने को.......
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