Skip to main content

Posts of 18 Oct 15


हिन्दी में इन दिनों जब एक अस्मिता की लड़ाई हो रही है तो कुछ कवि, कथाकार और कवियित्रियां इतनी मूर्खतापूर्वक हरकते करके लिख पढ़ रहे है उससे शर्म आती है और सर नीचे झुक जाता है. 

दुखद है इन मूर्खों के सामने कुछ कहना और इनकी बेवकूफाना हरकतें देखना, तरस आता है उन पर भी जो इन लोगों को सराह रहा है..........और इनकी आत्म मुग्धता में चारण बनकर भांड बन गए है. 

कुछ लेखक सिर्फ अपनी कुंठा के प्रत्यार्थ एनजीओ के पीछे  पड़े है,  कमबख्तों एनजीओ से फ़ायदा नहीं मिला तो अपनी योग्यता को कोसो - बजाय किसी और को दोषारोपित करने के......


यह हिन्दी और समूचे साहित्य जगत के लिए मुश्किल समय है, थोड़ा सोचिये तो सही आखिर साहित्य में क्यों आये थे..........???

उपवास मतलब परमात्मा के पास होना - हिन्दू धर्म कहता है. 
देश के परिधानमंत्री खा पी नही रहे उपवास कर रहे है - संबित अपात्र कहता है. 
मोदी जी बयान देने वालों से भयानक नाराज - अमित शाह कहते है. 

सच क्या है मितरो ?

लगता है नया देश जाने की तैयारी है , बहुत दिन हो गए देश में दाल और प्याज पर ताने सुनते हुए , जयकारें सुनने वाले निंदा नही सुनते ना सुन सकते है।

उपवास वो बरसों से कर रहे है और उपवास सिर्फ गोधरा काण्ड से अखलाख से ही छोड़ते है, किसके लिए करते है यह बताने की जरूरत है ? इतने अधनंगे घूम रहे है और इतने उद्योगपतियों की रूपगों की हवस एक आदमी ही तो मिटाएगा आखिर सत्तर सालों में पहली बार भूखे और अधीर लोग आये है पहली बार । इन्हें साहित्य मतलब सामना और बहस मतलब फासीवाद आता है सिर्फ।
आधे से ज्यादा लोग उपवास करते है और भूखे रहते है काश हरेक को सम्बित पात्रा जैसा उजबक आदमी मिल जाता जो एक निहायत व्यक्तिगत निर्णय और जीवन पद्धति को वोट बैंक से कैश कराना चाहता। उपवास करना या ना करना व्यक्तिगत निर्णय है और क्या खाता है वह शख्स और क्या पीता है यह उसका सर दर्द है देश का नहीं पर आप तो दूसरों की पतीली में क्या पक रहा है वह देखेंगे ना क्योकि ये ही तो आपके संस्कार है और अगर आपकी मर्जी का ना पका हो तो मार डालेंगे।

उपवास रखकर कोई देश या संविधान पर एहसान नहीं कर रहा और ना किसी को किसी डाक्टर ने लिखकर दिया है समझ रहे हो सम्बित पात्रा । ये इमोशनल अत्याचार अब नहीं चलेगा , बहुत हो गया ये घटिया नाटक और हर आदमी अपने घर परिवार के लिए चौबीसों घंटे मेहनत करता है । सत्ता का सुख भोगना है तो 24×7 काम करना पडेगा वरना घर बैठो, बहुत खड़े है देश सेवा करने वाले और इतना करके भी क्या उखाड़ लिया ? दाल 210 बेच रहे हो न और फायदा दे रहे हो ना अपने दल्लों और व्यापारियों को जिन्होंने चुनाव में चन्दा दिया था।

साला हद है बकवास की !!!
अभी देखना यहां भोंकने वाले कितने अधकचरे कूढ़ मगज उल्टी करेंगे और अपने संस्कार दिखाएँगे।

सम्बित पात्रा जैसे मूर्ख लोग संस्कृति और बहुमत के प्रतिनिधि हो तो देश का कबाड़ा निश्चित ही होगा और जल्दी होगा।
मुन्नवर राणा जिंदाबाद। आप अवाम के शायर हो कहाँ इन टुच्ची सरकारों के लोगों को उठा रहे हो कांग्रेस हो या भाजपा सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है और ऊपर से सम्बित जैसे अधकचरे और गंवार लोग !!! उफ़ !!!!


कुछ लोगों को एनजीओ को गाली दिए बिना पेट नही भरता क्योकि उन्हें एनजीओ से मिला नही कुछ। एनजीओ सिर्फ शत प्रतिशत सही और योग्य लोगों के लिए है नाकि आधे अधूरे और नकचढ़े लोगों के लिए।
दरअसल में इन टुच्चे लोगो को लगा कि एनजीओ गऊ है और वे चाहे जैसा हांक लेंगे पर जब देखा कि अयोग्य और अधूरेपन में डूबे है और पहले से ही सुविधाओं को भकोस रहे है चाहे सरकारी हो या सामन्ती तो उन्हें हकाल दिया और इस तनाव में अब वे एनजीओ को कोसते रहते है और अपनी सड़ी मानसिकता का यशगान हर जगह और मौके पर करते रहते है।
पुरस्कार पाने और चर्चा में बने रहने को किस कदर गिर जाते है लोग !!!!!

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...