मप्र में दहेज़ के लिए एक ओर हत्या
मैहर निवासी अंजलि गुप्ता को कल रात दहेज़ के लिए उसके पति और ससुराल वालों ने छह माह की बेटी सहित बाथरूम में बंद करके जला दिया। अंजलि की अपनी बेटी सहित मृत्यु हो गयी। अंजलि मेरी सहकर्मी और पुरानी साथी Santoshi Gupta की छोटी बहन थी।
संतोषी ने अभी बातचीत में इस वीभत्स घटना का जिक्र किया और ये भयावह तस्वीरें भेजी और आग्रह किया कि दादा इसे लिखो और मप्र के मुख्यमंत्री से लेकर महिला आयोग और मीडिया तक सब जगह भेजो।
यह मप्र है जहाँ महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध होते है। नवदुर्गा के उत्सव चल रहे है, कितने दोगले समाज में हम रह रहे है । मुझे शर्म आती है कि हम इस समाज में रह रहे है जहां अंजलि जैसी महिलायें और माही और भूमि जैसी बच्चियां सुरक्षित नही है।
इन्हें समाज मार रहा है और कोई नही। और एक नपुंसक समाज में जब तक गैर बराबरी और भेदभाव महिलाओं के साथ होता रहेगा तब तक ये हत्याएं होती रहेंगी।
ये भयावह तस्वीरें शेयर करने के लिए माफी चाहता हूँ पर संतोषी का आग्रह था अस्तु सिर्फ इसलिए भी और नवरात्रि पर दोगले समाज का असली चेहरा दिखाने के लिए पोस्ट कर रहा हूँ। पहला चित्र अंजलि का है और दूसरा छह माह की बेटी का है।
आप लोग बताएं कि इन जल्लादों का क्या करें और सरकार क्या करें। आखिर समाज को ही जिम्मेदारी लेना होगी सरकार से अब नहीं होगा, क़ानून से नहीं होगा। हम जो आसपास रहते है अपनी बहू बेटियों की सुरक्षा के लिए हमे ही आगे आना होगा।
आज का दिन बहुत पीडादायक है
आज दिन भर कई मित्रों के सन्देश आये, फोन आये और कई मित्रों से बातें भी हुई. कई साथियों को लगा कि ये चित्र हटा देना चाहिए और मुझे भी एक बार लगा परन्तु बाद में लगा कि क्या चित्र हटाने से यह वीभत्स मानसिकता खत्म हो जायेगी. मै ये चित्र रखना चाहता हूँ ताकि मुझे और हम सबको यह सनद रहे कि महिलाओं और बेटियों को लेकर हमारी क्या मानसिकता है और हम उनके साथ कैसा व्यवहार करते है. यह हम सबके लिए एक चुनौती है.
यहाँ मै किसी सरकार को गाली नही दूंगा और कोसुंगा नहीं, पर यह हम सबकी साझी जिम्मेदारी है. जैसाकि Mahendra Sanghi जी ने लिखा है यह एक परिवार का नही पूरे समाज का मामला है. पति पत्नी के बीच होने वाली हिंसा या किसी भी महिला के साथ हुई छेड़ छाड़ उसका व्यक्तिगत नहीं बल्कि हम सबका मामला है और हमारी साझी जिम्मेदारी.
ये चित्र हमे याद दिलाएंगे कि हम कहाँ आ गए है और कितने वीभत्स हो गए है जहां हम गाय को लेकर दुनियाभर में चिंतित है परन्तु हमारी बेटियाँ और महिलायें ऐसे ही मरती रहेंगी?
घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण जैसा कडा क़ानून 2005 में आया, निर्भया के बाद जस्टिस वर्मा समिति ने उसमे संशोधन करके कड़े प्रावधान बनाए पर जब तक समाज नहीं जागता तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता.
संतोषी ने अभी बातचीत में इस वीभत्स घटना का जिक्र किया और ये भयावह तस्वीरें भेजी और आग्रह किया कि दादा इसे लिखो और मप्र के मुख्यमंत्री से लेकर महिला आयोग और मीडिया तक सब जगह भेजो।
यह मप्र है जहाँ महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध होते है। नवदुर्गा के उत्सव चल रहे है, कितने दोगले समाज में हम रह रहे है । मुझे शर्म आती है कि हम इस समाज में रह रहे है जहां अंजलि जैसी महिलायें और माही और भूमि जैसी बच्चियां सुरक्षित नही है।
इन्हें समाज मार रहा है और कोई नही। और एक नपुंसक समाज में जब तक गैर बराबरी और भेदभाव महिलाओं के साथ होता रहेगा तब तक ये हत्याएं होती रहेंगी।
ये भयावह तस्वीरें शेयर करने के लिए माफी चाहता हूँ पर संतोषी का आग्रह था अस्तु सिर्फ इसलिए भी और नवरात्रि पर दोगले समाज का असली चेहरा दिखाने के लिए पोस्ट कर रहा हूँ। पहला चित्र अंजलि का है और दूसरा छह माह की बेटी का है।
आप लोग बताएं कि इन जल्लादों का क्या करें और सरकार क्या करें। आखिर समाज को ही जिम्मेदारी लेना होगी सरकार से अब नहीं होगा, क़ानून से नहीं होगा। हम जो आसपास रहते है अपनी बहू बेटियों की सुरक्षा के लिए हमे ही आगे आना होगा।
आज का दिन बहुत पीडादायक है
आज दिन भर कई मित्रों के सन्देश आये, फोन आये और कई मित्रों से बातें भी हुई. कई साथियों को लगा कि ये चित्र हटा देना चाहिए और मुझे भी एक बार लगा परन्तु बाद में लगा कि क्या चित्र हटाने से यह वीभत्स मानसिकता खत्म हो जायेगी. मै ये चित्र रखना चाहता हूँ ताकि मुझे और हम सबको यह सनद रहे कि महिलाओं और बेटियों को लेकर हमारी क्या मानसिकता है और हम उनके साथ कैसा व्यवहार करते है. यह हम सबके लिए एक चुनौती है.
यहाँ मै किसी सरकार को गाली नही दूंगा और कोसुंगा नहीं, पर यह हम सबकी साझी जिम्मेदारी है. जैसाकि Mahendra Sanghi जी ने लिखा है यह एक परिवार का नही पूरे समाज का मामला है. पति पत्नी के बीच होने वाली हिंसा या किसी भी महिला के साथ हुई छेड़ छाड़ उसका व्यक्तिगत नहीं बल्कि हम सबका मामला है और हमारी साझी जिम्मेदारी.
ये चित्र हमे याद दिलाएंगे कि हम कहाँ आ गए है और कितने वीभत्स हो गए है जहां हम गाय को लेकर दुनियाभर में चिंतित है परन्तु हमारी बेटियाँ और महिलायें ऐसे ही मरती रहेंगी?
घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण जैसा कडा क़ानून 2005 में आया, निर्भया के बाद जस्टिस वर्मा समिति ने उसमे संशोधन करके कड़े प्रावधान बनाए पर जब तक समाज नहीं जागता तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता.
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