तुम्हे याद करते हुए एक माह और आठ दिन कैसे बीत गये मानो युग और शताब्दियाँ बीत गई है, पता ही नहीं चला बस अब रोज पानी की बूंदों से आते तुम्हारे संदेस पढकर बिफर जाता हूँ अपने आप से गुस्सा होकर कई बार लड़ लिया हूँ इन बूंदों से और फ़िर कई बार अपने आपको झोंक दिया कि चलो इस बार इस बारिश में बाढ़ के पानी में निकल जाये कही दूर.............क्या नियति ने नदी के किनारे इसी के लिए लाकर पटकनी दी है मुझे......लड़ा तों उससे भी ज्यादा था और गुस्सा तों उससे भी ज्यादा था... तुमसे नहीं... अपने आप से, पर अच्छा यह लगा कि सब ठीक हो गया और अब विश्वास है कि इस जाते हुए अधिक मास में पानी की बूंदों और बाढ़ के साथ सब बह जाएगा हमेशा के लिए और रह जाएगा तों सिर्फ एक एहसास कि यहाँ इसी नदी के किनारे एक अलमस्त आवारा दरवेश आया था जिसका साया अब कही नहीं होगा इस नश्वर संसार में - जों कहता था उड़ जाएगा हंस अकेला, जों कहता था ज़रा हलके गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले.......जों कहता था हिरना समझ बूझ बन चरना, जों कहता था जिंदगी तुझको तों बस ख्वाब में देखा हमने, जों कहता था कबीरा सोई पीर है जों जाणे पर पीर, जों कहता था इस घट अंतर बाग बगीचे इसी में पालनहार, जों गाता था कि कहे कबीरा सुनो भाई साधो जिन जोड़ी तिन तोडी............जों मानने लगा था अब कि गौरी सोई सेज पर सर पर डाले केश, चल खुसरो घर आपणे रैन भई चंहु देस.............(नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा X)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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