लों आखिर आ ही गया हिन्दी दिवस अब हफ्ते भर तक खूब श्राद्ध और तर्पण होंगे, जों भी हो अपन ने खूब इनाम बटोरे थे और नगद पुरस्कार भी लिए थे एक जमाने में देवास के बैंकों में और तमाम तरह के क्लबों में खूब जम के वाद-विवाद करते निबंध लिखते और हिन्दी-हिन्दी करते पर साला एम ए अंगरेजी साहित्य में ही किया, बाद की सारी पढाई अंगरेजी में ही की, क्योकि समझ आ गया था कि इस देश में दाल रोटी खाना है दो टाईम तों अंगरेजी के अलावा कोई और भाषा तार नहीं सकती अपने भविष्य को. पर आज अंगरेजी को अपने दायें-बाएँ करने के बाद भी दाल रोटी खाना मुश्किल हो रहा है इस देश में, तों तरस आता है अपने आप पर और दुःख होता है कि हिन्दी जानने वाले की क्या गत हो गई है और कुल मिलाकर दो कौडी का बनाकर रख दिया है.
बहरहाल, हिन्दी के बड़े मठों और गढो से डिग्रीयां बटोरकर चापलूसी से यहाँ-वहाँ नौकरी जुगाडने वाले हिन्दी के मास्टर और राजभाषा अधिकारी ही आज खुश है और अपने तथाकथित आतंक से बच्चों का जीवन बर्बाद कर रहे है, और राजभाषा अधिकारी सरकारी आदेशों को दुरूह भाषा में लिखकर हिन्दी को अबला बनाने के षड्यंत्र में शामिल है या उन लिक्खाडों को जों उल-जुलूल लिखकर पत्रिकाओं की बाढ़ में अपना उल्लू सीधा करने के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए कागज़ बर्बाद कर बकवास पत्रिकाएं निकाल रहे है, जिसमे यही हिन्दी के मास्टर अपना चुतियापा बेदर्दी से परोस रहे है. हिन्दी की बर्बादी में जितना योगदान इन टुच्चे संपादकों और मास्टरों का है उतना आम आदमी का नहीं है, आम आदमी ने तों दक्षिण से या उत्तर-पूर्व से आकर हिन्दी सीख ली है जैसे तैसे भले ही फिल्मों से पर ये धूर्त कौम तों हिन्दी की मैय्यत में शामिल होकर नुक्ते में खीर पूड़ी उड़ा रही है............शर्म, शर्म और सिर्फ शर्म..........
खैर हिन्दी दिवस की फ़िर भी घिसी-पीटी बधाई...............
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