Skip to main content

भारतीय शिक्षा के आधुनिक कालजयी पुरुष श्री अनिल बोर्दिया को नमन



 देश के प्रख्यात शिक्षाविद श्री अनिल बोर्दिया का निधन हो गया अभी मैंने अपनी मित्र शबनम से जयपुर में बात की तो पता लगा. अनिल जी से एक लंबा सम्बन्ध था शिक्षा के सारे प्रयोग बांसवाडा के गढी ब्लाक से अनिल जी ने शुरू किये थे जब वे केन्द्र सरकार में शिक्षा सचिव थे तब उन्होंने राजस्थान में लोक जुम्बिश जैसी महती परियोजना शुरू की थी बाद में यह परियोजना प्राथमिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लिए एक आदर्श बनी जिसमे समुदाय को जोडकर शिक्षा की बात की गई थी, अनिल जी बेहद गंभीरता से और खुले मन से सभी का आदर करते हुए नए विचारों को सम्मान देते थे. मेरे जैसे युवा जो कुछ करने की सोचते थे को उन्होंने  भरपूर अवसर दिए जो कालान्तर में मुझे काम आये और शिक्षा पर मेरी ठोस समझ बनी. बाद में अनिल जी ने हमेशा  राजस्थान बुलवाया और खूब घुमाया बीकानेर से डूंगरपुर और ना जाने कहाँ कहाँ. ढेर सारी यादें शिक्षक प्रशिक्षण, पाठयक्रम निर्माण, शालात्यागी बच्चों/किशोरों के साथ किये गये तीन माह के लंबे शिविर, बारां में संकल्प के साथ काम, तीन डाईट में सघन प्रयोग और काम, स्थानीय आदिवासी बोली, संस्कृति और मूल्यों के साथ काम.......बाद में राजनीति के चलते लोक जुम्बिश जैसी योजना बंद हो गई लाखों लोग जयपुर में सड़क पर उतरे और तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री अशोक गेहलोत को सोचना पड़ा कि सरकार ने यह बंद करके ठीक नहीं किया पर निर्णय हो चुका था. यह एक बड़ा झटका था पर अनिल जी ने हिम्मत नहीं हारी और वे लगे रहे और फ़िर वे एक नई संकल्पना के साथ अपने साथियों के साथ फ़िर जोश खरोश से मैदान में उतरे "दूसरा-दशक' जैसा काम लेकर जिसमे १० से २० साल तक के किशोरों के लिए वे शिक्षा की नई परिकल्पना लेकर आये थे. आज भी यह महत्वपूर्ण कार्य राजस्थान के कई जिलों में हो रहा है. और मै फ़िर इस काम से जुडा मुझे फक्र है कि एक हिस्से के पाठ्यक्रम को मैंने उनके सान्निध्य में संपादित और तैयार किया था. बाद में अनिल जी आग्रह करते रहे कि आकर दूसरा दशक परियोजना का काम पूर्णरूप से मै सम्हाल लू पर किन्ही पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते मै जयपुर नहीं जा पाया अभी विभा से बात हो रही थी तो मैंने फ़िर इस बात का जिक्र किया था, जयपुर में जाने पर उनका आतिथ्य और मिलना एक सहज प्रक्रिया थी देर तक उनसे बातें करना हमेशा मन में उत्साह  भर देता था. वे ठीक दस बजे दफ्तर आ जाते थे और इस बुजुर्गियत के बाद भी देर शाम तक दफ्तर में काम करते थे. देश में शिक्षा का शायद ही कोई ऐसा दस्तावेज होगा जिसे अंतिम रूप देने में उनकी भूमिका ना हो, शिक्षा का क़ानून बिल उन्ही की अध्यक्षता में ड्राफ्ट किया गया था.
आज अनिल जी के निधन का दुखद समाचार सुनकर लग रहा है कि देश ने ना मात्र एक बड़ा शिक्षाविद खो दिया बल्कि गरीब और वंचित बच्चों /किशोरों की शिक्षा की चिता करने वाला व्यक्ति चला गया और वे सब अनाथ हो गये है. मेरे लिए यह अपूरणीय क्षति है मेरे बायोडेटा में आज भी उनके नाम का सन्दर्भ हमेशा जाता था और हर बार कही भी चयन होने की दशा में वे नई नौकरी में वो मेरे बारे अच्छा सन्देश देते थे और मुझे नौकरियां मिल जाती थी.
मेरे लिए पितृ तुल्य अनिल जी का जाना एक बहुत बड़ी क्षति है जिससे मै कभी उबार नहीं पाउँगा.
भारतीय शिक्षा के आधुनिक कालजयी पुरुष श्री अनिल बोर्दिया को नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...