यह एक देस की कथा है जहां बड़ी नदी बहती थी जंगल में से होकर छल छल, एक बार जंगल की सरकार ने उस नदी पर बाँध बनाने का तय किया और जानवरों की पंचायत ने उस पर बाँध बनाने की इजाजत दे दी, कुछ जन-जानवरों के घर - खेत जब डूबने लगे तों इन्ही जन्-जनावारों ने हडताल कर दी. सारे जन-जनावर पानी में बैठ गये राजा को तों कोई खबर ही नहीं थी, वो घूम रहा था यहाँ- वहाँ और मजे कर रहा था, जंगल के सूबेदारों के साथ बैठक ले रहा था, पर जब बात गले से ऊपर हो गई और पूरी दुनिया के लोग चिल्लाने लगे तों राजा को होश आया तब उसने पुरे कृष्णपक्ष के पन्द्रह और दो दिन बाद अपने दरबार में जानवरों के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा कि सरकार और दरबार आपके साथ है. आप लोग पानी से निकलो, हम आपके खेतों में पानी नहीं भरेंगे. और इस अवसर पर राजा ने अपने तीन चतुर मंत्रियों समेत दो सूबेदारों को मिलाकर एक समिति बनाने की भी सिर्फ घोषणा की, तीनों चतुर मंत्री जंगल के बड़े प्रभावी मंत्री थे जों गलेगले तक सुख सुविधाओं में डूबे थे, इलाके की खरबों की जमीन के मालिक थे, और दो सुबेदारों में से एक तों बड़ा ही घाघ किस्म का था, जाति से वणिक, वो प्रदेश में निर्दयी सूबेदार के रूप में जाना जाता था, उस पर जंगल के मराठी क्षेत्र के पास वाले सूबे में १९ जानवरों को ज़िंदा मारने का इल्जाम था जब एक बार ये निरीह १९ जानवर अपनी सड़ी हुई फसल का मुआवजा माँगने उसके पास आये थे, तों इसने उन्हें गोलियों से उन सबको भून दिया था, मामला गंभीर होने पर जांच समिति की नौटंकी हुई, जब जांच समिति बैठी थी तों ये उसी मराठी बहुल जंगल में, जहां का यह निरंकुश तानाशाह था, एक अखबार के भेडिये के साथ शतरंज की बाजी लगा रहा था, वहाँ से उठकर आने के बाद यह निरंकुश सूबेदार नदी और पानी के विभाग में ही पिछले कई बरसों से जमा हुआ है, इस सूबेदार पर जों बेहद निर्दयी, कट्टर और जानवर विरोधी था, को इस समिति का सदस्य बनाए जाने पर पुरे जंगल के लोग सशंकित थे पर कहा क्या जा सकता था .......हरि अनंत और हरि कथा अनंता, बोलो जय जय, प्रशासन की जय जय और राजा की जय जय.....(प्रशासन पुराण 56)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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