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प्रशासन पुराण 57

यह जिले का बड़ा दफ्तर था, साहब विहीन दफ्तर था था सो स्थानीय बड़े बाबू ही बड़े सांप थे, फ़िर बड़े साब राजधानी से आ गये सो बड़े बाबू को जमकर तकलीफ होने लगी उनकी सत्ता छीन गई थी. बस फ़िर क्या था रोज नाटक होते रोज नए हंगामे, नए साब को कुछ आता नहीं था सो वे भी यहाँ-वहाँ घूमते रहते थे और हैरान होते रहते थे. दफ्तर में एक महिला थी जों अर्धविक्षिप्त थी और उस बेबस विधवा महिला को यह नौकरी अनुकम्पा के आधार पर मिली थी. इसके तीन पुत्र थे जों शादीशुदा थे पर तीनों यकीनन पागल थे और यह अपनी तनख्वाह से सिर्फ उन तीनों का ईलाज करवाती रहती थी. आज तों हद हो गई जब अचानक वो जोर जोर से जार जार रोने लगी और कहने लगी कि उसके साथ अत्याचार हो गया और सब मुझे परेशान कर रहे है और मै अभी कलेक्टर के पास जाउंगी, बस अपने कपडे फाडने लगी यह भयावह दृश्य था. सब घबरा गये, एक विक्षिप्त महिला पुरे स्टाफ में जिसमे छः राजपत्रित अधिकारी थे, एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रतिनिधि, सांसद प्रतिनिधि, तीन चपरासी, और दो बाहरी लोग थे. इस पुरे बदहवास नाटक का आगे क्या होगा यह नहीं पता पर एक अधिकारी ने कहा कि इसी पागल महिला ने एक बार उन पर यौन उत्पीडन का आरोप भी किसी के कहने पर लगाया था. अब भला बताओ कि अट्ठावन साल की महिला जों घोषित रूप से पागल है जिसके तीन बेटे सारे शहर में पागल और प्रसिद्द है पर कौन यौन उत्पीडन करेगा.......बहरहाल जिले में आये नए साब को कुछ सूझ नहीं पड रही, पुराने बड़े बाबू मुस्कुरा रहे है, सारे राजपत्रित अधिकारी अपनी- अपनी इज्जत और समाज में नाम को लेकर चिंतित है और वो पागल महिला बड़े ही सहज ढंग से सहज होकर थोड़ी देर में घर जाती है एक ताला लाती है, अपने कमरे में ताला डालकर चल देती है पर्स उठाकर मुस्कुराते हुए और बड़े बाबू खैनी फांक रहे है नए साब कलेक्टर के दफ्तर की ओर भाग रहे है कि जाकर पहले ब्रीफ कर दूँ , वरना यह नौकरी तों गई.........जय हो जय हो.........प्रशासन की जय हो, षड्यंत्रों की जय हो, बाबूगिरी की जय हो और विक्षिप्तों की जय हो. (प्रशासन पुराण 57)

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