उसूलों पे जहाँ आंच आये तो टकराना ज़रूरी है
जो जिंदा हों तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों के खुदमुख्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
थके हरे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे
सलीकामंद शाखों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में ता’अल्लुक़ टिक नहीं पता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
की इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
-वसिम बरेलवी
उसूलों पे जहाँ आंच आये तो टकराना ज़रूरी है
जो जिंदा हों तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है
जो जिंदा हों तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों के खुदमुख्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
थके हरे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे
सलीकामंद शाखों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में ता’अल्लुक़ टिक नहीं पता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
की इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
-वसिम बरेलवी
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
थके हरे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे
सलीकामंद शाखों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में ता’अल्लुक़ टिक नहीं पता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
की इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
-वसिम बरेलवी
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