Thanx Prashant Dubey for lovely cup plates .................... कल भोपाल मैं बहुत दिनों बाद किसी मुशायरे और कविसम्मलेन मैं गया | कुछ तहजीबें टूटीं, वहां पर मसलन शोराँ कलाम पढ़ पढ़ कर जाते रहे और मंच खाली होता गया | बहरहाल कुछ बेहतर चीजें भी मिली | जयपुर से तशरीफ़ लाये बनज कुमार बनज ने दोहों का अद्भुत प्रयोग किया है| उनके चंद दोहे आपसे साझा कर रहा हूँ | फूलों के संग रह रहा, मैं माटी का ढेर | मुझमें भी बस जायेगी, खुश्बू देर सवेर || अंधियारे की कापियां, जा ंच रहा उजियार | डाल दिए हैं वक्त के, सूरन ने हथियार || जिसे किनारों मैं नहीं, हो बहने की चाह | वो नदिया ता जिंदगी , रहती है गुमराह || हो न सका इस बार भी, रंगों से संवाद | बस दिन भर आती रही, हमें तुम्हारी याद || कभी मोहब्बत का नहीं, छूटे मुझसे रंग | वर्ना सांसें थामकर, कौन चलेगा संग ||
The World I See Everyday & What I Think About It...