जब तवक्को उठ गई ग़ालिब
जन्मदिन पर बधाई दो और लगातर पांच साल तक आप दुआएँ देते रहें - अगला कभी शुक्रिया कहना तो दूर, लाइक भी ना करें
जीवन भर आप मिलते रहें, पर कभी ढंग से बात की हो या तवज्जो दी हो - याद नही पड़ता
आप तारीफ़ करें सामने वाले के गुणों की और अपनी हर बात में ज़िक्र करें और अगले को कोई फ़र्क नही पड़ता - बिंदास गढ्ढे खोदता रहता है, मरेगा ससुर अपनी ही कब्र में गिरकर
आपने अपनी छपी किताब की प्रति प्यार से दी, पढ़ें ना पढ़ें , उसकी मर्जी पर अगला स्वीकार भी ना करें यह बात
अपना समझकर आपने उसे अपने हर कार्यक्रम में बुलाया पर अगला शादी ब्याह कर लें और नुक्ता-घाटा भी और आपको खबर भी ना करें
तो भैया आप मर जाओ या सौवाँ जन्मदिन मनाओ अपने को कोई फर्क नही पड़ रहा, एक नही दो नही - चार ब्याह करो, दस लड़कियों से तलाक लेकर मुआवजा भरो बाप के भ्रष्ट तरीके से कमायें रूपयों से - मेरी दुआ से तुम्हारी हर नई पुरानी या थर्ड हैंड पत्नी भी भाग जाए किसी लौंडे के साथ और तुम्हे फिर कोई पचास साला औरत मिलें अपुन को क्या
अब बहुत हो गया, साला एक ही जीवन है अपना, अपने लिये तो जी लें - तुम मरो या जियो, भाड़ में जाओ - अपुन को कोई फर्क नही पड़ रहा बाबू और भैंजी
वैसे भी संसार सबको छोड़कर जाना है - कोई स्थाई पट्टा लेकर तो आया नही और ना ही किसी से रोटी - बेटी का सम्बंध बनाना है - अकेला हूँ और अकेला ही रहूँगा अंत तक और बस मंज़िल आ ही गई है
जैसे पाँख गिरे तरुवर के ......
***
◆John Milton in "Lycidas"
________
भाई इतनी क्या जल्दी थी, अभी तो पिछले रविवार को बात हुई तुमने कहा कि "दादा उज्जैन आना है" तो मैंने कहा - जब मन करें आ जाओ घर है तुम्हारा, बहु को लेकर आना
इतना सौम्य और शांत स्वभाव का युवा मित्र और साथी - जो प्रखर गांधीवादी, समझदार और राजनैतिक रूप से एकदम परिपक्व , छतरपुर का गांधी आश्रम का सारा काम सम्हाल लेता था
बस, अफसोस यह रह गया कि अभी पिछले माह मैं भोपाल था और ये पति - पत्नी भी गांधी भवन में आये हुए थे, शाम को मिलने का तय हुआ था कि इकठ्ठे भोजन करेंगे पर बरसात होने लगी और सब रह गया -"दादा देवास ही आता हूँ अब, लम्बी गप्प करेंगे" और फिर पिछले रविवार जब पुष्पेंद्र पाल सिंह जी की याद में हम सब जुटे थे तो गांधी भवन से ही बात की थी
जब मौका मिले - मिल लो मित्रों, समय का कोई भरोसा नहीं, भले ही ज़्यादा समय मत लगाओ, किसी औपचारिकता में ना पड़े चाय - पानी के , पर मिल लो, दो घड़ी संग - साथ रह लो, मुस्कुरा लो, गले लग लो, दो बातें कर लो - कल हो ना हो और ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा
उफ़्फ़, बहुत दुखद हुआ, एक मेघावी युवा साथी का यूँ गुज़र जाना अफसोसजनक है
सादर नमन और श्रद्धांजलि
Comments