Skip to main content

Khari Khari and Stories of Vineeta and Jyoti - Posts of 3 and 4 Oct 2023

कल दिल्ली में 6,7 पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया - इन सभी को इतिहास में याद किया जायेगा, जब सब रीढ़ बेच चुके थे तो ये साहस के साथ सामने डटकर मुकाबला कर रहे थे
सीखना युवा पत्रकारों को भी चाहिए जो ब्लॉग से लेकर डेस्क तक बकवास करते रहते है और सुबह - शाम घटिया लिखकर अपनी तस्वीरों और किताबों का भौंडा प्रदर्शन करते रहते है, आत्म मुग्धता और अपनी जुगाड़ से छपी किताब बेचना छोड़कर ये लोग अपना पत्रकारिता का धर्म निभा लें तो बड़ी बात होगी, सिर्फ़ पुरस्कार और प्रशंसा के लिए ज़िंदा ये लोग समाज में धब्बा है और इसलिये आज मीडिया की विश्वसनीयता खतरे में है और लोगों ने भरोसा खो दिया है
जनवादियों तथा प्रगतिशीलों का तो पूछिये ही मत, कविता - कहानी तो दूर ये डरपोक और नौकरी करके अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे है और बाकी घाघ और परजीवी पेंशनजीवी किसी के लिखें पर लाइक करने और कमेंट करने में भी डर रहें है और सॉफ्ट टारगेट्स पर जैसे फ़िल्म या घरेलू किस्सों पर लिख रहे है - शर्म आना चाहिये इन्हें
पढ़े - लिखें और विवि, महाविद्यालयों के प्राध्यापकों से ज़्यादा शिकायत है कि ये फर्जी बुद्धिजीवी पता नही क्यों कक्षाओं में तो बहुत क्रांति करते है, लेखन में भी आग बरसाते है पर एक्शन लेते समय दब्बू और कायर बन जाते है जबकि ये तो स्वतंत्र विचारक होते है
***
इधर पाखी और उदभावना पत्रिकाओं के नए अंक में दो बढ़िया कहानियाँ पढ़ी
दोनों सशक्त महिला कवि और गद्यकारों की है और अच्छी बात यह है कि दोनों शिक्षा के पेशे से जुड़ी है इसलिये इनके पास विस्तार, प्रांजल और सहज भाषा है - जो पूरे मुद्दों को ना मात्र समझाती है बल्कि मानकीकृत और आंचलिक भाषा के शब्दों से और बारीक विवरण देकर अपनी प्रतिभा से परिचित करवाती है, दोनों कहानीकार सह्रदय कवि है और लेखन पर अधिकार है, इन दोनों में एक निपुणता है, कहानियों की समझ है और कहानी के फ्लो से लेकर कहानी की बुनावट में पारंगत है - इसलिये कहानी का बड़ा फलक साधने में सफल रहती है
"ट्रांसलोकेट @ 82 सेमी" - Vineeta Parmar की कहानी पाखी में छपी है जिसमे मोंटूआ के बहाने पीपल के पेड़ और इस बहाने पूरे पर्यावरण न्याय की चिंता है, वही Jyoti Deshmukh की कहानी "कूँ कूँ कूँ" आपको एक नई और मज़ेदार दुनिया की सैर कराती है
दोनो कहानियाँ पठनीय और बढ़िया है अच्छी बात यह है कि इन्हें प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में जगह मिली है, क्योंकि आजकल पत्रिकाओं में जिस तरह की कहानियाँ आ रही है - उन्हें पढ़कर क्षोभ ही व्यक्त किया जा सकता है, विनीता जी के कहानी संग्रह और वैज्ञानिक लेखन से हम वाकिफ़ है वही ज्योति जी के कविता जगत से हम लम्बे समय से परिचित है
उम्मीद की जाना चाहिये कि इनसे नई कहानियाँ सघन और गम्भीर विषयों पर जल्दी ही पढ़ने को मिलेंगी
जरूर पढ़िये
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...