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“आत्मबोध से आत्मसात तक करने की बारी” Review of Sachin Jain's books on the Indian Constitution Post of 26 Oct 2023

 “आत्मबोध से आत्मसात तक करने की बारी”

संदीप नाईक


जब हम किसी विषय के बारे में अनभिज्ञ होते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब हम उसके बारे में जानना शुरू करते हैं, तो फिर हर पहलू को टटोलने और जानने और समझने की आवश्यकता और ललक पैदा होती है. भारतीय संविधान एक ऐसा ही विशाल और वृहद ग्रंथ है जिसे हमने 26 जनवरी 1950 को आत्मार्पित किया था. यह संविधान मूल रूप से आजाद भारत में रहने वाले लोगों के सपनों, सच और कर्मों का लेखा-जोखा है, हमारे लिए यह सारे धर्म ग्रंथो से ऊपर है क्योंकि जिसके द्वारा हम शासित होते हैं वह हमारे लिए सर्वोच्च पवित्र ग्रंथ होना चाहिए.

इस संविधान को बनाने में प्रत्यक्ष रूप से लगभग ढाई सौ लोगों ने सहयोग दिया और हजारों लोगों ने इसके बारे में अपनी राय, सुझाव और अपनी भावनाएं व्यक्त की. 2 वर्ष आजादी के बाद के महत्वपूर्ण थे - जिसमें संविधान सभा की अनेक बैठकें हुई, लगातार लंबी-लंबी बैठकों में संविधान के हर शब्द और मूल्य पर बातचीत हुई और उसे अंतिम रूप दिया गया. दुर्भाग्य से अंत में अंतिम स्वरूप देने वाले मात्र बाबा साहब भीमराव अंबेडकर थे और 26 नवंबर 1949 को यह पूर्ण हुआ और 26 जनवरी 1950 से इसे राष्ट्र को समर्पित करके लागू किया गया.

संविधान की पृष्ठभूमि उस समय का तत्कालीन भारत ही नहीं थी बल्कि आने वाले भारत का एक बड़ा सपना, समझ, विचार और समाज को गुनने – बुनने का भी सपना इसमें निहित था. यह संविधान उस समय की जाति व्यवस्था को ही नहीं, भेदभाव और छुआछूत को ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में कैसे यह सब समाप्त हो, कैसे हम एक समता मूलक समाज की रचना कर पाए, कैसे हम संप्रभु बनकर एक चुनावी व्यवस्था के द्वारा लोकतंत्र को मजबूत कर पाए - इसकी झलक भी प्रस्तावना में ही नजर आती है. समता, समानता, स्वतंत्रता, भ्रातत्व और पंथ निरपेक्षता जैसे महत्वपूर्ण मूल्य इसकी प्रस्तावना में निहित है. हम जानते है कि समय-समय पर संविधान में बदलाव हुए और उन बदलावों को भारत की सर्वोच्च संसद ने पारित किया जो आवश्यकता अनुसार महसूस किए गए थे - फिर चाहे वह त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था हो या हाल ही में आया नारी शक्ति वंदन अधिनियम.

किसी भी राष्ट्र को चलाने के मूल्य और नियम कायदे ही संविधान को सशक्त बनाते हैं हमने दुनिया भर के देशों से अच्छी-अच्छी बातें लेकर इसे इतना मजबूत और ठोस बनाया है कि इसके आलोक में हम लगातार 77 वर्षों से राज कर चले आ रहे हैं, परंतु दुर्भाग्य से आज जो समाज का स्वरूप है - वह बेहद ही डरावना है और जिस तरह से हमने पंथनिरपेक्षता को जमीनी स्तर पर धर्म में बदल दिया है, और लोकतंत्र में धर्म का अत्यधिक हस्तक्षेप हो गया है और सरकारें जिस तरह से अपनी नीतियों में और अपने रोजमर्रा के क्रियान्वयन में संविधान की मूल भावना को छोड़कर व्यक्ति विशेष या दलगत राजनैतिक क्षुद्र मूल्य और विचार जनता पर थोप रही है - वह घातक है, साथ ही यह सब एक कमजोर लोकतंत्र की ओर हमें ले जा रहा है.

ऐसे में आवश्यक है कि हमें संविधान की बनावट, संविधान सभा की बहस, संविधान बनाने में पारित किए गए प्रस्तावों पर हुई बातचीत को नए संदर्भ में समझना होगा - ताकि हम आज के समय में साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए संविधान को एक दर्पण भी बना सके और मार्गदर्शक भी बना सके. सचिन कुमार जैन पेशे से पत्रकार हैं और भोपाल में रहकर विकास संवाद नामक संस्था से जुड़े हुए हैं. हाल ही के वर्षों में सचिन ने संविधान और नागरिकों के मूल अधिकारों पर काम के साथ-साथ नागरिकों के क्या कर्तव्य होने चाहिए - पर भी जमीनी काम किया है. सचिन अशोका फेलो भी रहें है. “संविधान संवाद श्रृंखला” में उनकी चार पुस्तक आ चुकी हैं, अपनी नई श्रृंखला में वे 20 नई पुस्तिकाएं लेकर आये है जो संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि से संवैधानिक व्यवस्था, संविधान की रचना प्रक्रिया, संविधान सभा में स्वतंत्रता का घोषणा पत्र, संविधान की उद्देशिका, भारतीय संविधान में मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्व, भारतीय सभा संविधान और रियासतें, संविधान दिशा और संवैधानिक नैतिकता, भारतीय संविधान के रोचक किस्से, भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की कहानी, डॉक्टर बीआर अंबेडकर और भारतीय संविधान, इंसानी व्यवहार में लोकतंत्र, बंधुता का अर्थ और व्यवहार जैसे विषयों पर सरल, सहज और रोचक भाषा में पुस्तिकाएं लिखी है.

ये पुस्तिकाएं उन सभी बहस और चर्चाओं पर आधारित है जो संविधान सभा की निर्मात्री समिति ने लगातार की थी और संविधान की अंतिम रचना की. सभी पुस्तकों में सबसे ज्यादा केंद्र में जिसे रखा गया है वह मूल्य है, जो हमारे सारे लोक अनुशासन, लोक और लोकतंत्र के समस्त प्रणालियों को संचालित करता है. जब तक हम लोग इन सब बातों को नहीं समझेंगे सीखेंगे तब तक हम ना लोकमत तंत्र का सम्मान कर सकेंगे और ना ही भारतीय संविधान की पूछ परक  कर सकेंगे. अतः यह आवश्यक है कि हर बात को समझा जाए कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा क्यों है, या भाषा के मुद्दों पर संविधान सभा में क्या बहस हुई थी, मूल अधिकारों को नीति निर्देशक तत्वों से कैसे अलग रखा गया है, या राज्यों के और केंद्र के अधिकार क्या है, इनके बीच जो पतली महीन सी रेखा है - उसे कैसे समझा जाए, सुप्रीम कोर्ट की भूमिका हाईकोर्ट की भूमिका से कैसे अलग है, और राज्यपाल और राष्ट्रपति में क्या अंतर है, बात आपातकाल की हो या शिक्षा-स्वास्थ्य की, छुआछूत की हो या भेदभाव की, महिला समानता की हो, या शिक्षा की, दलित और वंचित वर्ग को आरक्षण देने की हो या डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर का योगदान की बात हो - इन साड़ी बहस और बातचीत का बारीक ब्यौरा आपको इन किताबों में नजर आता है.

यूं तो राज्यसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित 14 मोटे ग्रंथ हैं जिनमें इन सभी चर्चाओं का विस्तृत रूप में वर्णन किया गया है, परंतु भारत के हर नागरिक के लिए यह संभव नहीं है कि वह इन 14 मोटे ग्रन्थों को खरीद सके या इन ग्रंथों को खरीद सके, पढ़ सके और समझ सके - उससे बेहतर है कि विकास संवाद के सचिन जैन द्वारा लिखी गई यह 25 किताबें जो बहुत आकर्षक रूप में छपी हैं और सरल, सहज भाषा में लिखी गई हैं - को पढ़कर संविधान की बुनियादी बातों और समझ को समझा जा सकता है. आगे सवाल यह है कि इन सब बातों को अपने जीवन में हम कैसे उतारे ताकि सही मायनों में एक समता मूलक समाज का निर्माण कर सके. ये किताबें शोधार्थियों, विद्यार्थियों, शिक्षकों, जन प्रतिनिधियों, गृहिणियों, और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए अति आवश्यक है  - बल्कि यूं कहां जाए कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए ये पढ़ना सिर्फ कौतुहलवश नहीं बल्कि आवश्यक होना चाहिए. लगभग ₹500 में इन सारी किताबें का सेट विकास संवाद भोपाल से लिया जा सकता है.


संविधान संवाद श्रृंखला

लेखक – सचिन कुमार जैन  

विकास संवाद

ए -5, आयकर कॉलोनी, बावडिया कलाँ,

भोपाल, मप्र, 462039, दूरभाष क्रमांक 0755 – 4252789



 

 

 

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