गांधी होना, गांधी को मानना, गांधी का अनुसरण करना, गांधी को जीवन में अपना लेना और गांधी हो जाना सब अलग - अलग है
गांधी हम सबकी मजबूरी है और हम तब तक गांधी को मजबूती से पकड़े रहेंगें जब तक हमारे क्षुद्र स्वार्थ और क्षुधा शांत न हो जाये
सबसे ज़्यादा गांधी का अहित गांधीवादियों ने किया और आज वे जितने हिंसक और आततायी है उतना कोई नही और यह कहने में मुझे कोई गुरेज़ नही कि ये गांधी का चरखा तक चबा गए है, देश की कीमती जमीन जायदाद तो कब्ज़ा करके बैठे ही है, एकड़ो में कब्ज़ा जमाये ये लोग क्यों नही इन जमीनों को गरीब और तंग बस्तियों में रहने वालों को दान कर देते है ताकि वे सुख और बगैर विस्थापन के भय के रह सके
फिर राजनैतिक दलों ने जिसमे कॉंग्रेस फिर भाजपा और अंत में वे सारे दल जिनका ना गांधी से रिश्ता है ना सहजता से
दुर्भाग्य यह है कि देश में सबसे ज़्यादा गांधी मार्ग, चौराहे, भवन, संस्थान और ज़मीन गांधी के नाम पर है और इस सबका जितना दुरूपयोग हम 76 - 77 वर्षों में कर सकते थे, कर लिये है
मुझे लगता है अब इस देश से महान लोगों, नेताओं के नाम से छुट्टियाँ और जयन्तियां मनाना बन्द करने का समय आ गया है - ना हमने दूसरा जवाहर पैदा किया, ना शास्त्री, ना गांधी, ना भगतसिंह, ना अशफ़ाक, ना राधाकृष्णन, ना अंबेडकर, ना जोतीबा, ना सावित्री बाई, ना पटेल ना विनोबा, ना जेपी, ना लोहिया, ना दीनदयाल उपाध्याय ना गोलवलकर या हेडगेवार तो फिर किस बात का अहंकार है हमें और जगसिरमौर बनने की बात करते है
अपने ही आसपास के लोगों के साथ भोजन तो दूर, बैठ नही पा रहे तो किस "वसुधैव कुटुम्बकम" की बात करते है, पढ़ - लिखकर साक्षर हो गए है पर "असतो मा सदगमय" नही समझ पाए या "अप्प दीपो भव:" नही अपना पा रहें - दिलों में नफ़रत, हिक़ारत और क्रोध लिए हम कहां आ गए है - क्या सवर्ण और क्या दलित सब इस समय बदले की आग में जल रहें है और अहिंसा का मुखौटा पहनकर ढोंगी बने हुए है और यह किसी भी देश या समाज के लिये सबसे मुश्किल समय होता है
और सवाल है कि अब किसको इनसे सरोकार बचे है - सब अपनी-अपनी राह "एकला चालो रे" की तरह चल रहे है, देश में काम की ज़रूरत है , लोग मेहनत करें - बजाय एक छुट्टी लेकर पाँच दिन एन्जॉय करने के मूड बनाये
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रायता
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सभी लोग आमंत्रित है बेधड़क बहस और कमेंट्स करने को, बस मुझे सबसे ज़्यादा चिंता दिलीप सी मंडल और दलित नेताओं की है [ ध्यान रहें, नेता लिखा है - दलित अकादमिक या बुद्धिजीवी नही ]
बिहार सरकार ने जातिय जनगणना के आंकड़े जारी किए - जिसमें 63% ओबीसी ( 27% पिछड़ा वर्ग+ 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग) वर्ग, SC वर्ग 19%, सवर्ण 15.52% ( ब्राह्मण 3.66%+ राजपूत 3.45%) और मुस्लिम आबादी 17.70% हैं
बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है
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बिहार की जातिय जनगणना
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OBC का जनसँख्या में निश्चित ही प्रतिशत ज़्यादा आयेगा, अभी तो बिहार में आया है, जब देश भर की जनगणना होगी तो दलित और आदिवासी बहुत कम होंगे ओबीसी की तुलना में
दलित नेतृत्व का इस बारे में क्या ख्याल है, दलित की फलित राजनीति करने वाले [दलितों का उत्थान ना करने वाले बकवासी शेर नही ] का इस बारे में क्या ख़्याल है, आदिवासी नेतृत्व तो वैसे भी बहुत मुखर और प्रखर नही है - जो मिलेगा उसमे ही संतुष्ट हो जाएंगे पर दलित क्या करेंगे - जब यादव, भूमिहार, अहीर, कुर्मी, गुर्जर, विश्नोई, जाट, साहू, जायसवाल, धोबी, पासी या ऐसे अन्य वर्ग सँख्या के आधार पर ठोस आंकड़े लेकर सुप्रीम कोर्ट जायेंगे
बहरहाल, बिहार के परिणाम यूँही फालतू का मुद्दा है जिनका मेरी नजर में संविधानिक महत्व नही है पर इस फार्मूले को आने वाली जनगणना के बरक्स देखा जाये तो एक झाँकी तो दिख ही सकती है
नीतीश कुमार के बहाने मोदी सरकार ने यह दाँव खेलकर 24 के चुनाव और 2029 तक की वर्ण - वर्ग की लड़ाई छेड़ दी है और 2029 में हम एक विकसित राष्ट्र के बजाय जातिय, कबीलों, धर्म और गौत्र के रूप में बंटे हुए देश के रूप में छिन्न - भिन्न हालात में होंगे
इसे भी कहते है "फूट डालो और कमीनी राजनीति करो का मास्टर स्ट्रोक"
हालांकि यह अलग बात है कि सवर्णों को इस तरह की ना गणना से फ़र्क पड़ना है ना आरक्षण से, वह समझ चुका है कि उसे हम्माली करनी है, टैक्स भरना है ताकि मुफ्त की रेवड़ी - पाँच किलो राशन हो या प्रसव सेवाओं के 14000 ₹ या निशुल्क कॉपी पुस्तक दे लेकर स्कूटी या लैपटॉप या लाड़ली बहना में उसकी कमाई सरकारें फूँक ही देंगी और उज्जड आवारा और नालायक नेता उनपर धौंस जमाकर दबाते रहेंगे पर एक बात है उनकी अगली पीढियां यह देश छोड़ देंगी जहाँ इतना भेदभाव और नीचता की हद तक गंदगी, भ्र्ष्टाचार और अखंड सुतियापा है
मनोविज्ञान में जब हम किसी बच्चे को MR Child कहते है तो यह पैमाना होता है कि वह toilet trained है या नही - कहने का आशय यह है कि जो भी toilet trained होगा वह आने वाले समय में यह देश छोड़ देगा - बहुत हो गई मूर्खताएँ हमारे टैक्स के रुपयों और मेहनत की कमाई का फ्री में बंटना, अयोग्य लोगों का सरकारी नौकरी में आना और भ्रष्टाचार का चरम पर पहुंचना बेहतर है अपनी आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित कर दूसरे देशों में भेजें और वहाँ के सुयोग्य नागरिक बनायें - हम भारत के लोग नही अब हम जाति, धर्म, गौत्र, और वर्ण - वर्ग में बंटे है कबीलाई संस्कृति के ध्वज वाहक है
आपको और भक्तों को - जो ज्यादातर सवर्ण है, अभी भी लगता है कि आपने 2014 में हिन्दू राष्ट्र बनने के लिए वोट दिया था या अभी 24 में फिर मोदी सरकार को वोट देंगे और नीतीश भाजपा से अलग हो गए है या अलग काम कर नया बिहार बना रहे है तो आपकी मासूमियत पर मैं मर जावाँ - जादू की झप्पी और खूब सारी पप्पी आपको , बिहारी नेताओं से पाला नही पड़ा लगता है आपका - साँप और ये साथ हो तो साँप छोड़ दें और बिहारी नेता को मार डाले - अल्लाह जन्नत में जगह देगा आपको
रामजी भला करें सबका
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