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Dr Santosh Arsh on Vihag Vaibhav's Poem - Post of 26 Oct 2023

 आधुनिक हिंदी कविता और युवा कवियों के रोष और जोश के बरक्स अनुज Santosh Arsh ने विहाग वैभव की सद्य प्रकाशित पुस्तक पर और पुस्तक के बहाने आधुनिक कविता के परिदृश्य पर एक ज़ोरदार टिप्पणी लिखी है, इसे कई - कई संदर्भों और प्रसंगों में पढ़ा और समझा जाना चाहिये

भेदभाव और जातिगत व्यवस्था में जकड़े समाज में हजारों सालों से कईयों ने उपेक्षा सही और अपना जीवन बर्बाद भी किया है पर "रास्ता किधर है" - भी खोजकर उत्तर ढूँढे है और यही एक सकारात्मक उत्तर भी है उस अवसाद, तनाव और थोपी गई कुंठाओं का और कविता का काम भी यही है कि प्रतिबद्धता से रास्ते खोजना - सिर्फ़ कोसने भर से इतिहास में उपस्थितियाँ दर्ज होती तो फिर हम उसी बजबजाते समाज में आज भी जी रहे होते और कबीलाई होकर कई तरह के घृणित कार्यों में लिप्त रहते
पेरियार से लेकर जोतीबा, सावित्री बाई, अंबेडकर और तमाम वो लोग जिन्होंने अन्याय, भेदभाव को सहकर आगे का मार्ग प्रशस्त किया और अपने गुस्से को बदलाव का प्रतीक बनाया, इस बात को बार - बार रेखांकित करने की ज़रूरत है
बहरहाल, अनुज संतोष की यह महत्वपूर्ण टिप्पणी हम सबको पढ़ना चाहिये जो हिंदी कविता के बुर्जुआ से लेकर ग्यारह रुपयों के लिये पुरस्कार लेने के लिये लालायित बूढ़े हो चुके जाति के शीर्ष और प्रलेस, जलेस या जसम में पदों पर वर्षों से बिराजे दुष्ट बेतालों को समाज और साहित्य ढो रहा है और रोज इनके प्रशस्ति गान गाता है और ये "चूके हुए चौहान" बस अब मठ बनाकर बैठे है - फिर वो किसी राजधानी में हो, विश्वविद्यालयों में हो, पत्रिकाओं के सम्पादकों के रूप में छर्रे पाल रहें हो या किसी भगवा के संग बैठकों में गुलगुले खा रहे हो स्थानीय बुद्धिजीवी होने के दम्भ में
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"कविता दुःख की तरलता में भीगे दामन की तरह भी होती है, जिसे तनिक निचोड़ने पर ही अव्यक्त पीड़ा रिसने लगती है. शायद तभी गंभीर कवि होने के लिए तरदामनी चाहिए. अच्छी और सरस, मुतास्सिर करने वाली कविता रचने के लिए झूठे व्यक्तित्व के खोल से बाहर आना पड़ता है. सभी बड़े कवियों ने इस खोल को उतार कर फेंका है, तब कविता अर्जित की है. आधुनिक कविता में आत्मनिर्वासन अपदस्थ व्यक्तित्व की यातनापूर्ण तटस्थता है. सत्य के नज़दीक पहुँचने की दुर्गम यात्रा में आत्मा तार-तार हो जाती है. देह की क्या बिसात है ? यह तो एक जीर्ण वस्त्र है, जो निसिदिन और जीर्ण होता जाता है.
युवा कविता का रोमान पके हुए हृदय को उसके कच्चेपन का स्मरण दिलाता है. उस प्यास की याद दिलाता है जो बुझी नहीं थी. खो गयी थी, कहीं शून्य में. अँग्रेज़ी के कई रोमांटिक कवि अत्यन्त युवावस्था में ही पकी हुयी कविता रचकर गुज़र गये थे. कवि के लिए यह भी एक त्रासदी है कि असमय उसका मन पक जाता है. वक़्त से पहले ही वह बुज़ुर्ग हो जाता है. जो कवि वक़्त से पहले परिपक्व नहीं होता, कविता उससे दूर भागती है. युवा कविता में निरीहता, आक्रोश, प्यार होता है और मोर्चे पर जाने की बेला प्यार के लिए गाया जाने वाला विदागीत भी होता है. Bella Ciao की तरह, जिसे कभी इतालवी खेतों में रोपाई करने वाले खेतिहर मज़दूर गाया करते थे और बाद में जो फ़ासिस्टों के विरुद्ध प्रतिरोध का पर्याय बन गया "
◆ डॉक्टर संतोष अर्श

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