लो बरसात का उदघाटन और स्वागत कर रियाँ हूँ, आज निगम के चुनाव है हमारे यहाँ सो भोट डालने कूँ भुट्टे के गर्मागर्म पकौड़े कटहल के ताजें अचार के साथ ख़ाकर जा रियाँ हूँ
जे खाने के पेले का फोटू हेगा, मल्लब ये कि खत्म हो गए हेंगे - बोलना, जिसको भी खाना है एडभान्स में बता दें
बनाने की विधि -
◆ नरम भुट्टों [अमेरिकन कॉर्न हो तो बेहतर] को कीस कर रख ले, मिक्सी में दानों को पीसे नही वरना स्वाद खत्म हो जायेगा
◆ फिर उसमें थोड़ा सा बेसन और थोड़ा सा मैदा मिलाकर दो चम्मच ताज़ा फेंटा हुआ दही मिलाएं और आधा घंटा रख दे
◆ तलने के समय मिश्रण में स्वादानुसार नमक, लाल मिर्ची, हल्दी, गरम मसाला, धनिया पाउडर, काली मिर्ची का पाउडर, अमचूर पाउडर, कटी हरी मिर्च, प्याज़, ताज़ा धनिया, थोड़ा सा मोयन और थोड़ा सा मीठा सोडा मिलाकर अच्छे से हिला लें
◆ इस मिश्रण को 10 मिनट रखें और बाद में छोटे छोटे पकौड़ों के आकार में गर्मागर्म तेल में तलें
◆ परोसते समय पकौड़ों पर चाट मसाला डालकर ताजे कटहल या आम के अचार के साथ खायें और दोपहर के भोजन की छुट्टी रखें
◆ शाम को खिचड़ी या दलिया खायें - पापड़ दही के साथ, जे हो गई आपकी 1600 या 1800 किलो कैलोरी की डाइट
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शिक्षक और गुरू के अंतर को जिसने समझा दिया और जीवन को द्वंद्वों, ऊहापोहों, तनाव और प्रश्नों से भर दिया और सीखाया कि जटिलताओं के बीच से ही रास्ता निकलेगा - वही असली गुरू है
टेढ़े रास्तों पर डालकर कहा - जाओ, अपने रास्ते ढूँढो और उनपर पदचिन्ह दो - भले आँधियाँ मिटा दें और वक्त की धूल तहस - नहस कर दें उन सबको - वही गुरू
सात सुरों के आगे का सफर तुम्हें ही तय करना है, आरोह - अवरोहों को सम्हालते हुए और यह भी कि अब रियाज़ काम ना आयेगा - बस पंचम लगाओ और तान छेड़ो - वही गुरू
शब्दों से नाता जोड़कर एक पूरी कोरी कॉपी थमा दी कि - जाओ शब्द साधक बनो, ना व्याकरण दी और ना वर्तनी, बस अक्षर का ज्ञान करवा कर क्षरण के नुकसान बताते हुए हाथ में स्याही कलम देकर छोड़ दिया - वही गुरू
जीवन के प्रसन्नतम क्षणों में आगाह किया बारम्बार कि यह सब नश्वर है, गहनतम सच सिर्फ मौत है - उसकी तैयारी करो, जीवन की अंतिम यात्रा ही सफ़लता का सर्वोच्च सर्ग है इसके स्वागत हेतु आतुर रहो, मोहपाश में पड़े बिना विरक्ति रखो और निस्पृह बने रहो - वही गुरू
यदि यह सब आपने पा लिया और अपने अंतस में झाँकने का, स्वीकारने का हौसला है - तो सारी वासनाएँ, ऐषणा और सांसारिक बातें व्यर्थ है और यह सब भीतर ही खोजना होगा, दुनिया का कोई गुरू ना यह सीखा सकता है और ना कोई शिष्य यह गूढ़तम रहस्य सीख सकता है
हर क्षण खुद से ही जूझना है, अपने अस्तित्व को पहचानकर ही हर कदम पर आगे बढ़ना है, अपने भीतर का अक्स ही असली गुरू है - जो हरदम आपको ललकारता है, सीखाता है, प्रेरित करता है, डपटते हुए आगे करता है और एक दिन इसी देह को त्यागकर किसी अनजान प्रदेश में ले जाने को तैयार करता है - ऐसे गुरू को प्रणाम कर आगे बढ़े
सबको गुरूपौर्णिमा की
बधाई
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