कल से एक खबर वाईरल हो रही कि किसी इमानदार प्रोफ़ेसर ललन कुमार ने तीन साल कालेज में युवा छात्र पढने को ना मिलने पर सरकार को तेईस लाख रूपये लौटा दिए , मतलब यह भी है कि उसके पास कम से कम तेईस लाख का चार गुना रुपया होगा अपना जीवन और परिवार चलाने के लिए - काहे का इमानदार या सच्चाई है इसमें या प्रशंसा करने योग्य है , हम भिखारी को भी पांच रूपये भीख तब देते है जब हमारी जेब में पचास रूपये हो अन्यथा नही
ज़रा सोचिये इन्हें कितना रुपया मिलता है हर माह फोकट का, जब एक मास्टर को तीन साल में तेईस लाख मिलें तो देश भर के मास्टरों को कितना मिलता होगा और पिछले 75 वर्षों में इन सभी ने हरामखोरी करके कैसा देश बना दिया है और सब हजम कर गए, डकार तक नहीं ली और देश को भयानक स्वरुप में पहुंचाने वाली भीड़ में शामिल हो गए - लॉक डाउन अवधि का तो इन सबसे वसूल करना चाहिए सिवाय अपना नाम चमकाने के और लाइव पर बकवास करने के कुछ नहीं किया, आज भी देख रहा हूँ स्थानीय महाविद्यालयों और विवि में कि कोई पढाने नही आता
एक आदमी जीवन भर काम करके पसीना बहाकर भी दो जून की रोटी नहीं कमा पाता या अपने कफ़न के लिए रुपया नहीं जोड़ पाता - तो ये कितना कमाते होंगे, अब आप समझ सकते है कि क्यों शोध, नौकरी और यह सब पाने के लिए चाटुकारिता और पतन के शीर्ष तक युवा छात्र जाते है और जुगाड़ में लगे रहते है
सिर्फ कॉलेज की बात नहीं सरकारी स्कूल्स, नवोदय, केन्द्रीय विद्यालयों और बाकी जगहों पर अपवाद छोड़ दें तो हरामखोरो की एक लम्बी बड़ी फौज है जो मौज कर रही है
यह सिर्फ माड़साब जो दीन हीन और अकिंचन बताकर अपने को हमेशा सहानुभूति का पात्र बना लेता है उसकी स्थिति है, यदि ब्युरोक्रेट्स और दीगर सेवाओं की बात करें तो समझ आयेगा कि देश मक्कारों और हरामखोरों से भरा हुआ है - बात करते है निर्माता और देश का उद्धारक बनने की - कहाँ भुगतेंगे कमबख्त
[जिसे बुरा लगे वो दो रोटी ज्यादा खा लें, ज्ञानी और बकवास करने वालों को ब्लाक किया जाएगा - यदि पोस्ट और गंभीरता की समझ नहीं तो कमेन्ट ना करें]
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बाहर बूंदें बरसती है
मन भीतर गिला होता है
शोर बाहर होता है
खलबली अंदर मचती है
जीवन किसी बरसात से कम नही
बस भीगने का शऊर मालूम हो
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