प बंगाल, छग, दिल्ली, राजस्थान और केरल जैसे भ्रष्ट राज्यों में सीबीआई, ईडी और पुलिस की कार्यवाहियों का स्वागत है
बस मप्र जैसे राज्य ही बेहद ईमानदार है जहाँ व्यापमं, अवैध खनिज और कुपोषण के मामलों में सबसे ज्यादा प्रक्रियाओं का पालन किया गया और मज़ाल कि एक चवन्नी का घोटाला हुआ हो या किसी की मृत्यु तो क्या सांस लेने में दिक्कत हुई हो, हमारा मीडिया भी लगातार यही कहता रहा है और हम सबने पोजिटिव्ह रिपोर्ट्स ही पढ़ी अभी तक - स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन देकर मामाजी ने हमें यह तय करने पर मजबूर कर दिया कि अगली सभी योनियों में जन्म इसी उर्वर 7 बार कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त ज़मीन पर हो, धन्य हो गए हम - जो कमलनाथ से भरीपूरी सरकार खरीदने की क्षमता रखते हो उन पर कैसा शक
बस कारण एक ही है इस विश्व विख्यात रिकॉर्ड का कि आदरणीय मामाजी पिछले 18 वर्षों से प्रदेश और भाजपा में एक छत्र राज कर रहें है मानो मुख्यमंत्री का पद ना हुआ कोई सरकारी पक्की वाली नौकरी हो और इसको बनाये रखने के लिए कुछ भी करेगा - जो भी भ्रष्ट या बेईमान बीच में आएगा उसे तगड़ा सबक सीखाया जाएगा
आखिर प्रदेश का सवाल है, कोई इज्जत है कि नई , और ख़बरदार जो केंद्र ने मुंह उठाकर इधर देखा भी तो
शाबाश, मामाजी , 2050 तक का सीएम नियुक्त करती है मप्र की शानदार जनता ,
We all Love You
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|| छात्र 100% - शिक्षक फेल ||
शिक्षको की योग्यता अब संदेहास्पद है जो - निश्चित ही या तो मक्कार है या लापरवाह या अज्ञानी या घोर षडयंत्रकारी
शत प्रतिशत अंक देकर इन सबने यह सिद्ध कर दिया कि ना कोई पढ़ रहा है और ना समझ रहा है, सवाल यह है कि जब विषय की समझ नही, दिन भर मोबाइल हाथ मे लेकर कक्षा में टाइम पास करना है तो कहाँ से क्या पढ़ेंगे, यही देख लीजिये कालेज से लेकर नवोदय के कई मित्र अध्यापक है जो हर पल उपस्थित है, आत्म मुग्ध है, आपने उनकी पोस्ट पर कमेंट किया नही कि वे स्पष्टीकरण लेकर हाजिर - मतलब यार पढ़ाते लिखाते हो या बैठे रहते हो हर जगह मोबाइल लेकर ही
सही भी है जब फेसबुक पर चार लाईन नही पढ़ पाता कोई तो हजारों कॉपी कैसे पढ़ेंगे जिसमे चालीस पचास पन्ने होते है और बच्चे खूब पेलकर लिखते है, लॉ कर रहा हूँ तो देख रहा हूँ कि कंटेंट के बजाय पन्ने भरने पर जोर है, प्राध्यापक भी पन्ने गिन रहें है, किसी माई के लाल में दम नही कि विवि के दस हजार बच्चों के लिखे को पढ़ ले
दसवी बारहवीं में तो लाखों छात्र है, मानदेय है, समय पर जांचने के दबाव और बाकी सब है ही
पर यह सब करके माड़साब लोग न्याय नही कर रहे बल्कि एक निकम्मा निर(सा)क्षर भारत तैयार कर रहें है, लॉ के स्नातक में और अभी मास्टर डिग्री में मेरी क्लास में ऐसे नगीने है जो एक वाक्य हिंदी अंग्रेज़ी में सही नही लिख सकते, अंग्रेज़ी माध्यम के तीन चार नमूने ऐसे है जिन्हें एक सरल वाक्य भी लिखना बोलना नही आता वे हिंदी को रोमन में लिखते है तो स्पेलिंग सही नही लिख पा रहें पर 70 -74% लेकर बैठे है
यह देशद्रोह ही नही पीढ़ियों के साथ विश्वासघात है कम्बख्तों - कहाँ भुगतोगे
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बिल्कुल अच्छा नई लग रियाँ इत्ते नम्बर देख के पता नई जी मितला रियाँ हेगा, 95 - 98 % में तो हमारे टैम पे पूरा मुहल्ला ही निपट जाता था, गिरेस वाले भी पेड़ा बांटते थे जो कुरेशी माड़साब के यहां टूसन जाते थे, लियाकत और शंकर सिंह माड़साब वाले छोरे - छोरी हूण को सप्ली आती थी, सज्जन सिंह और शोभा मैडम बाले तो सिध्धे फेल इज हो जाते थे, कित्ता मजा आता जब विजय और शकील के पिताजी इस्कूल में ई सबके सामने उनको धोना शुरू कर देते थे, माँ - बहन की याद करते हुए और माड़साब लोग्स को भी सुदेश और अख़लाक़ के पिताजी गले का कॉलर पकड़ के सुबू सुबू झुनझुना जैसा बजा देते थे, सब भैंजी लोग इस्टाफ़ रूम में कुचुर फुसुर करती रेती थी
ऐसा लग रियाँ कि फिर से एसबीएसी क्या केते है सीबीएसई की परीक्षा दे दूँ - दसवी और बारहवीं की और 600/600 ले आऊँ और फेर अपना भोत सुन्नर सा फोटू लगाऊँ
सब दिख गया, बस हिंदी - अंग्रेज्जि के माड़साब लोग्स ने अपनी 56 इंची छाती के फोटू नही लगायें कि उनके विषय की वजह से इस्कूल कित्ता आगे बढ़ गया, देख रे बाबा, पकड़ - पकड़ कही मंगल या सुक्कर ग्रह के अग्गे नी हिट जाये
जय कोरोना देब, मेरी कसम आपकूँ बस, अपनी किरपा बनाये रखना , सभी टीजीटी और पीजीटी की जय, पिरिनसिपल साहब हूण की भी जय - जो बस चेम्बर में घूमने वाली कुर्सी पर बैठे रहते है तो बोलो जयकारा माता का सिक्षा की देवी और भगवान की जय , हमदर्दी है तो कोचिंग वालों से जिनके माथे अभी नीट और आईटीआई सॉरी आईआईटी का ठीकरा फूटना बाकी हेगा - भगवान भला करें इनका
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ऐ अमित भाई
जे नीरज चोपड़ा को फोन कर बोलिये - बहुत ज़्यादा दूर तक ना फेंके, हम है ना, ससुरा 76 मीटर से ज़्यादा फेंक दिया, अरे सब यही फेंकेगा तो फिर हम क्या करेंगे, आंय
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