उधर लाईवा था फोन पर
अभी दाड़की से घर आकर मैं चाय पी ही रहा था कि साला अपशगुनी फोन में टपक पड़ा
" कैसे है भाई जी " - मिठास चाय में पड़ी शक़्कर से ज़्यादा थी उसकी आवाज़ में
"खबरदार जो रूस, अमेरिका और यूक्रेन युद्ध पर लिखी बीस - पच्चीस कविताएँ सुनाई तो" , भगवान कसम फोन काट कर फ्लाइट मोड़ पर डाल लिया है
सुबह से सौ - डेढ़ सौ कविताएँ तो लिख मारी होगी अभी तक ससुरे ने, अल्लाह बचायें कम्बख्तों से
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"सर, ये ज़ेलेंस्की कविता लिखते ही होंगे ना - राष्ट्रपति है, जब भी आपके वाट्स एप ग्रुप में इनके लाईव का लिंक आये तो शेयर करिएगा प्लीज़" उधर नई उम्र की कवयित्री थी
"जी, मुझे नही पता और ना ही किसी ग्रुप में हूँ जहाँ ऐसे लिंक आते हो" - मैंने जवाब दिया
"कोशिश करिये ना, कितना हॉट है ना वो, उसकी कोई कविता की किताब हो तो बताइये ना, उसे पढ़कर समीक्षा लिखूँगी, टैग भी करूँगी, हाय, कितना सुन्नर है - अभी वीडियो पर देखा उसे" - वो बोले जा रही थी
सोचा पुतिन का नम्बर दे दूं या अपने उजबक के मन की बात का लिंक पर.... ख़ैर
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आज का दिन सार्थक हुआ, दो गम्भीर चिंतक और विचारक, साथ ही मालवा के साथ देश - प्रदेश में ख्यात व्यक्तित्व के साथ तीन घंटे चर्चा में गुजरे, हालांकि एलएलएम की परीक्षा चल रही है पर उनके आज घर आने से दिन सफल हुआ और व्यवहारिक चर्चाएँ हुई - जो व्यापक और वैश्विक समझ बनाने में सार्थक सिद्ध होंगी, विस्तार से परीक्षा बाद लिखूंगा
एक है वरिष्ठ गांधीवादी, लेखक, पत्रकार और सम्पादक श्री चिन्मय मिश्र और दूसरे प्रसिद्द नाट्यकर्मी श्री सुशील जौहरी जी
26Feb2022
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यूक्रेन या रूस सहित बाहर जो छात्र पढ़ने गए - कुछ सवाल
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◆ भारत में जो मेडिकल कॉलेज बढ़े उसके आंकड़े फर्जी मतलब, इस सरकार से बड़ा मक्कार और झूठा कोई नही, इतने निजी मेडिकल कॉलेज खोले सरकारी बढायें नही तो यह सब होना ही था, मप्र में व्यापमं घोटाला इसका सबूत है और अब सबने समझौता कर लिया है - सत्ता, मीडिया, न्यायपालिका, प्रशासन और जागरूकता का दम भरने वाले ब्लोवर्स या ओवर्स - सबने जमकर कमा खा लिया, सत्ता हथिया ली और अब सुई पटक सन्नाटा है मतलब मैदान साफ़ है माफियाओं के लिए - जो कोर्ट में एन मौके पर उन सबूतों को देने से मना कर दें जिनके आधार पर उचकते रहें उनका क्या भरोसा करना
◆ बाहर पढ़ने जाने का क्या मतलब - यदि यहां अयोग्य है , प्रवेश परीक्षा नही पास कर रहे तो, फिर ये अयोग्य हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था में आएंगे इन्हें वही रहने दिया जाए वही की ओपीडी सम्हालें हमे नही चाहिये
◆ लगभग 20 % इंडियन मेडिकल कौंसिल की परीक्षा पास नही कर पाते आने के बाद, यदि उन्हें यह पेशा भारत मे अपनाना है तो - क्यों फिर किराने की दुकान खोलते है
◆ भारत में मेडिकल की पढ़ाई का इतना हाइप क्यों बना रखा है, यदि नीम हकीम या बंगाली डाक्टर ठीक कर सकते है तो इन्हें पढ़ने क्यों नही दिया जाता
◆ यदि योग्यता ही पैमाना है तो आरक्षित वर्ग से 10-20 या 2-3 अंक प्राप्त करने वालों को प्रवेश क्यों दिया जाता है - स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर भी , 10 - 12 वर्षों में स्नातक पास करने के बाद भी सरकारी नौकरी दे दी जाती है, कईयो को जानता हूँ जो 10 साल से मेडिकल कालेज में अड्डा बनाकर पड़े है और एमबीबीएस नही हो पा रहा
◆ लाखों रुपया खर्च करके ये बाहर पढ़ने जाते है जिसकी कोई परीक्षा नही, ना ही कोई अंकों का पैमाना - महज रुपया और सिर्फ रुपया, मेरे कई मित्रों के बच्चे जो मुश्किल से बारहवीं पास हुए - बी एस सी पास नही कर सकते थे, वो वर्षों से उज्बेकिस्तान या यूक्रेन में पड़े है डिग्री नही हो पा रही और ये सब अधिकांश ग्रामीण इलाकों के है और घर में अकूत सम्पत्ति है, पिछले तीन वर्षों में ये मुश्किल से तीस दिन वहाँ रहे होंगे, कैसे यकीन कर लूँ कि ये कौशल और दक्षता सीखे होंगे, पंचर जोड़ना सीखने में ज़्यादा समय लगता है इससे - जाहिर है यह सब दिखावे की संस्कृति है और खोखली समझ
◆ ये सरकार जो इन्हें निशुल्क लाकर वाह वाही लूटने की कोशिश कर रही है - उसके इंटेंट और इंटेंशन दोनो पर ध्यान दें - निशुल्क लाने का निर्णय किसके रुपयों के बल पर है, जाहिर है हम टैक्स पेयर्स का रुपया है - क्या ये बच्चे आने के बाद एक भी गरीब की सेवा करेंगे - नही, जो एक करोड़ खर्च करके डाक्टर बना है सिर्फ माँ बाप की नाक ऊंची रखने को वह क्या गरीब या वंचित समझेगा
◆ इन्हें फूल पत्ती देकर एयरपोर्ट पर जो स्वागत केंद्रीय मंत्री कर रहें है - वह राजनीति नही तो क्या है, क्या ये युद्ध बंदी है, क्या ये लड़कर लौटे है विजयी भाव से या कोई सेवा मिशन पूरा करके लौटे है
◆ इनके माँ बाप का रहन सहन देखिये भाव भंगिमा देखिये - ये वो लोग है जो अपनी निकम्मी और अकर्मण्य औलादों को जो यहाँ कुछ भी नही कर सकती थी, को अपने धन वैभव के आधार और बल पर डाक्टर बना रहे है, बहुत बच्चों को जानता हूँ जो तीन वर्षों से ऑनलाइन पढ़ रहे है और स्नातक हो गए कमोबेश - ऐसे फर्जी डॉक्टरों से मैं सर्दी का इलाज ना करवाऊँ बाकी तो छोड़िए
◆ अधिकांश डॉक्टरी व्यवसाय से जुड़े अभिभावक है जो अपनी इन निकम्मी औलादों को अपने धन्धे की विरासत सौंपना चाहते है ताकि इनके काले पीले काम गुपचुप चलते रहें
और अंत में
◆ भारत में मेडिकल शिक्षा का हौव्वा है और इस गोरख धन्धे में सब शामिल है डॉक्टर, सरकार, बड़े वाले दल्ले, जागरूक लोग , मीडिया और ये छात्रों की फौज जो मौज मस्ती करती है - चार पांच साल और बाद में देश पर जवाबदेही बन जाती है, बाहर की पढाई इतनी ही महत्वपूर्ण और विश्वसनीय है तो सरकार भेजें ना बाहर अपने बजट की गठरी से रूपया खर्च करके सबको फिर काहे नीट और नौटँकी
[ ज्ञानी लोग जब तक ठोस रूप से दस ऐसे बच्चों को ना जानते हो परिवार सहित ज्ञान ना दें ]
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जो पालक यूक्रेन में बीस हजार का टिकिट नब्बे हजार रुपयों में करने की बात कर रहें थे, अब सरकार फ्री में ले आई और मुम्बई दिल्ली से राज्यों में भी फ्री में भेज रही है यह दयावान सरकार - क्या देशभक्त पालक प्रधानमंत्री राहत कोष में बीस हजार रुपया स्वेच्छा से जमा कर रहें है
जितने भी छात्र आ चुके है उनकी बात कर रहा हूँ - कोसने को तो बहुत कोस लिया तब पर अब फ्री में घर आ गए बच्चे तो देश के प्रति कोई कर्तव्य है या नही, या फ्री का लेने की राष्ट्रीय बीमारी के शिकार हैं ये सब इनकम टैक्स पेयी भी
मने पूछ रहा हूँ
कल तक जो मोदी सरकार अन्यायी थी फ्री टिकिट से दयालु हो गई, सब फ्री चाहिये - कंडोम से कॉपी किताब, राशन, सायकिल, मोटी स्कालरशिप, कपड़े, जूते चप्पल, शादी ब्याह, मृत्यु कर्म के रुपये और अब नया एडिशन हो गया एयर टिकिट भी - मजेदार यह कि ये एयर टिकिट उच्च वर्ग और मालदार आसामी है
ये जो बीस हजार डाक्टर बनेंगे उससे देश के नागरिक को क्या फायदा, सेंटी होकर वीडियो डाल रहे हो किसने बोला था बाहर जाने को , तर्क की बात करो गुरु
फेल हुई मोदी सरकार यूक्रेन से लेकर चीन कश्मीर रूस और अमेरिका तक, चेहरा मेरा नही इस सरकार का सामने आया, अमानवीय मैं नही यह सरकार है और कूटनीतिज्ञ मैं नही वो सारे लोग है जो कूटनीति रचने के रुपये लेते है हर माह और जमकर फेल हुए - इतने कि चार मंत्रियों को वहाँ जाना पड़ रहा है इनका मुआवजा कौन भरेगा - ये अभिभावक, किसी पायलेट या एयरहोस्टेज को कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा सरकार या पालक और मुआवजे का खेल एक करोड़ से लगेगी बोली - अंडे बेचने दो ना बाबा बच्चों कूं
और बेटे, बेटी डॉक्टरों आर्मी मेडिकल कोर में भर्ती हो गए तो बर्फ भी पड़ेगी और गोली भी खाना पड़ेगी, काहे सेंटी हो रहें हो, घर से दूर गोवा जो 1000 किमी होता है वहां तो जाते हो फिर अब सीमा पार 800 किमी जाओ ना, आज ही एक वीडियो देखा जिसमे बच्चे एक गाड़ी में बैठकर रोने वाले संगी साथियों की नकल कर खिल्ली उड़ा रहें है - किस पर विश्वास करें - बोलो
फ्री लेना हमारी राष्ट्रीय संस्कृति है और अब बीमारी बाकी सब तर्क का कोई मतलब नही है
#अमानवीयपोस्टजो पालक यूक्रेन में बीस हजार का टिकिट नब्बे हजार रुपयों में करने की बात कर रहें थे, अब सरकार फ्री में ले आई और मुम्बई दिल्ली से राज्यों में भी फ्री में भेज रही है यह दयावान सरकार - क्या देशभक्त पालक प्रधानमंत्री राहत कोष में बीस हजार रुपया स्वेच्छा से जमा कर रहें है
जितने भी छात्र आ चुके है उनकी बात कर रहा हूँ - कोसने को तो बहुत कोस लिया तब पर अब फ्री में घर आ गए बच्चे तो देश के प्रति कोई कर्तव्य है या नही, या फ्री का लेने की राष्ट्रीय बीमारी के शिकार हैं ये सब इनकम टैक्स पेयी भी
मने पूछ रहा हूँ
कल तक जो मोदी सरकार अन्यायी थी फ्री टिकिट से दयालु हो गई, सब फ्री चाहिये - कंडोम से कॉपी किताब, राशन, सायकिल, मोटी स्कालरशिप, कपड़े, जूते चप्पल, शादी ब्याह, मृत्यु कर्म के रुपये और अब नया एडिशन हो गया एयर टिकिट भी - मजेदार यह कि ये एयर टिकिट उच्च वर्ग और मालदार आसामी है
ये जो बीस हजार डाक्टर बनेंगे उससे देश के नागरिक को क्या फायदा, सेंटी होकर वीडियो डाल रहे हो किसने बोला था बाहर जाने को , तर्क की बात करो गुरु
फेल हुई मोदी सरकार यूक्रेन से लेकर चीन कश्मीर रूस और अमेरिका तक, चेहरा मेरा नही इस सरकार का सामने आया, अमानवीय मैं नही यह सरकार है और कूटनीतिज्ञ मैं नही वो सारे लोग है जो कूटनीति रचने के रुपये लेते है हर माह और जमकर फेल हुए - इतने कि चार मंत्रियों को वहाँ जाना पड़ रहा है इनका मुआवजा कौन भरेगा - ये अभिभावक, किसी पायलेट या एयरहोस्टेज को कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा सरकार या पालक और मुआवजे का खेल एक करोड़ से लगेगी बोली - अंडे बेचने दो ना बाबा बच्चों कूं
और बेटे, बेटी डॉक्टरों आर्मी मेडिकल कोर में भर्ती हो गए तो बर्फ भी पड़ेगी और गोली भी खाना पड़ेगी, काहे सेंटी हो रहें हो, घर से दूर गोवा जो 1000 किमी होता है वहां तो जाते हो फिर अब सीमा पार 800 किमी जाओ ना, आज ही एक वीडियो देखा जिसमे बच्चे एक गाड़ी में बैठकर रोने वाले संगी साथियों की नकल कर खिल्ली उड़ा रहें है - किस पर विश्वास करें - बोलो
फ्री लेना हमारी राष्ट्रीय संस्कृति है और अब बीमारी बाकी सब तर्क का कोई मतलब नही है
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|| जमीन, दुकान, मकान, एनजीओ,
विदेशी पढाई - सब तुम लोगों की
अपनी केवल धार ||
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कल यूक्रेन किराए को लेकर एक पोस्ट लिखी थी, एक पुराने सहकर्मी मित्र की बिटिया वहाँ पढ़ रहीं है भयानक नाराज हो गए और कल से लम्बी बहस में उलझे है, रात भर सोए नही शायद, आज सुबह मुझे टारगेट करके गरियाते हुए लम्बा रायता फैलाया जिसका कुल हश्र शून्य है
अरे मोदी को बोलो न, नही बोलेंगे नौकरी करनी है हिम्मत नही किसी की उजबकों टाइप , मेरे जैसे दो कौड़ी के लोगों को निशाना बनाते हुए लिखेंगे, मैं सरकार नहीं भाई, बहरहाल, मैंने जवाब लिखा - यहाँ चैंप रहा हूँ कि रिकॉर्ड में रहें , पढ़िए मत - यह मेरा निजी मत है
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प्रिय पूंजीपति, कारपोरेट की नौकरी कर रहें एक्टिविस्ट कामरेड,
सलाम,
अपनी बात रखते पोस्ट में बजाय मुझे गाली देने के, मुझे जानते हो - इसलिए कह रहे, गरिया रहें हो, भड़ास निकाल रहे हो - जबकि पूरा देश यही कह रहा है
तुमसे मुझे वामी दक्षिणपंथी होने का या बुद्धिजीवी होने का प्रमाणपत्र नही लेना है
गोपाल राठी की पोस्ट में वीडियो में लड़की साफ कह रही है कि अनुशासनहीनता की बच्चों ने इसलिए मार खाई है, उन्हें सब फ्री दे रहे है वहां के लोग दिमाग हो तो बोलो कि बीस हजार को इकठ्ठा तो कोई फ्लाइट नही ला सकती इंतज़ार करना पड़ेगा
और बुद्धिजीवी आदि को कोसने से फ्रस्ट्रेशन बढ़ता है समस्या हल नही होती, लगता है ठीक से सोए नही लग रहा पोस्ट और जतन से गूगल किये फोटो देखकर
ख़ैर, प्रमाणपत्र बाँटना एक्टिविस्ट्स की भी आदत होती है और यहाँ एनजीओ में काम करने लिखने - पढ़ने के अनुभव का रायता फैलाने से कुछ नही हो रहा
"मोदी सरकार की गलती है" अभी भी कही नही लिखा, ना दलितों को सिर्फ 10 अंकों पर प्रवेश मिलने पर अभी भी चुप्पी है, नौकरी की बाध्यता तो नही या इसी से रोटी चलती है इसलिए यह कूटनीतिक फ़ैसला है
खैर, अपुन ना लेखक, ना प्रगतिशील , ये झंडे इंदौर, भोपाल - दिल्ली के है - अपन लठैत लेखक है, विशुद्ध फेसबुकिया - स्केंडलबाज टाईप, और विचारधारा 1998 में छोड़ दी थीं जब एकलव्य रतन टाटा के हाथों बिक गया था और आज जमनालाल बजाज परिसर में खड़ा है
अपुन आज भी मजदूरी करके खाते है किसी कारपोरेट से नही कमाते और जी हुजूरी नही करते किसी की, और एक इंच जमीन नही अपने पास, ना मकान, ना दुकान, ना एनजीओ का धंधा - तो काहे की विचारधारा बै और काहे की पंथ बाजी और तो और ना बीबी - न बच्चे, तो कोई गम ही नही
मजे लो बस यही जीवन है- जिसने ये सब पाल रखा वो जाने, देखो एकलव्य के लोग 70 पार हो गए - अभी भी कामरेड लोग घूम रहे है, एक लेखक उर्फ वैज्ञानिक उर्फ शिक्षाविद हर महीने एक विश्व विद्यालय को जन्म देता है और ढाई सौ एकड़ जमीन खरीद लेता है, उस कामरेड के गमछे तले पूरा हिंदी साहित्य दूध देता है क्योंकि कुछ मुस्टंडे गौ और सांड पालक तगड़े बिठा रखें उसने, मीडिया मजदूरों की बीबियाँ वहाँ नौकरी करती है, एनजीओ से रिटायर्ड कामरेड ही अब नई संस्थाएँ बना रहे है - वहाँ की रिटायर्ड खब्ती औरतें अभी भी कंसल्टेंसी की चाह में लगी रहती है और ये सब वामपंथी थे - तुम तो अभी भी हो, सारे प्रगतिशील कवि देखो - पुरस्कार से रुपया जुगाड़ने में लगे है
बहुत बढ़िया पोस्ट है संग्रहणीय भी है, अच्छा लिखते हो पर इससे सरकार पर असर नही पड़ता और मुझे तो घण्टा भी नही पड़ता , नोट किया जाए घण्टा अश्लील नही है मोदी जी ने कोविड में उपयोग भी किया और बजाया भी
"जमीन, दुकान, मकान, एनजीओ,
विदेशी पढाई सब तुम लोगों की
अपनी केवल धार"
(अरुण कमल से माफी सहित )
***
हूश !!!
झाली बाबा एकदाची तयारी
खजूर, साबूदाना, बटाटा, रताळी,ऊपवासाची भाजणी, राजगिरा चिक्की, शेंग दाण्याचे आणि काजू बादाम चे लाडू, बटाट्याचे पापड, शेंगदाणा चिक्की व लाङ, बटाटा किस, वेफर, खरबूज, केळी, सफरचंद, द्राक्ष, खारे काजू , बदाम, थंडाई मसाला, दूध आणिक दही, थोड़े फ़ल संतरा, शेवफ़ल, कीवी, पपीता, केळ, तरबूज आला बघा बाजारात .... बस जास्त नाही अजीबात जास्त नाही बरं का मण्डली
आता नुस्ता आणि फक्त कडक ऊपवास
हे म्हणजे आमच्या सर्वात मोठ्या अनुशासन प्रिय आणिक एकदम कड़क उपवास करण्यारा अलकनंदा साने ताइंचे मुळ सांगणे आहे
माझ्या गुरू माँ आणिक सम्माननीय Radhika Ingle मैडम सुद्धा हेच सर्व पाळतात प्रत्येक उपवासाला
सर्वानां महाशिवरात्रीच्या हार्दिक शुभेच्छा.
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