|| चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से ||
वर्षारानी बकला - ग्राम लूँगा, ब्लॉक रायडी, जिला गुमला की निवासी है, उन्होंने गुमला के एक महाविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए किया है, वर्षा के गांव में लगभग 85 परिवार रहते हैं - जिसमें सरना आदिवासी प्रमुख है, सरना आदिवासी के अतिरिक्त गांव में अनुसूचित जाति और सामान्य वर्ग के साथ ओबीसी आदि समुदाय के लोग भी रहते हैं
सभी लोगों को पानी की समस्या से लगातार जूझना पड़ रहा था और समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, पंचायत में बार-बार बात करने के बाद भी जब समस्या का हल नहीं हुआ तो सब लोग चुप बैठ गए और जैसे - तैसे भगवान भरोसे जिंदगी काटने लगे
#विकाससंवाद भोपाल ने #एचडीएफसीबैंक के साथ मिलकर गुमला जिले के दो ब्लॉक में जब काम शुरू किया तो वर्षा को मालूम पड़ा और उसने इस परियोजना में "विकास मित्र" के रूप में ज्वाइन किया तब से उसका पहला स्वप्न था कि अपने गांव की समस्या का हल कैसे किया जाए, उस पर काम हो, बात हो तो वर्षा ने अपने संयोजक से उसने बात की और लोगों को तैयार किया कि वे इसमें भागीदारी निभाये, आखिर काम शुरू हुआ, कल गांव के लोगों ने स्टॉप डेम के रिनोवेशन वाली जगह पर परम्परागत पूजा की, आज गांव के नदी पर जो स्टॉप डेम टूट गया है और जिसका रिपेयर वर्षों से नहीं हुआ है, का काम आरंभ हुआ है
सबसे अच्छी बात यह है कि लोगों को इकट्ठा कर समझाने का काम वर्षा ने किया है, सब लोगों ने मिलकर योजना बनाई #विकाससंवाद ने इसमें सहयोग दिया है और लोगों ने पूरे काम में 20% की जनभागीदारी की है
टेढ़े मेढ़े रास्ते से गुजर कर घना जंगल और पहाड़ देखते हुए जब हम लोग आज सुबह-सुबह इस जगह पहुंचे और वर्षा से मिले तो काफी अच्छा लगा ; एमए करने के बावजूद भी शासकीय नौकरी वर्षा और वर्षा जैसे अनेक युवाओं के लिए नहीं है, बावजूद इसके कि वह आदिवासी समूह से आती है और वर्षा के कई मित्र तो विशेष अनुसूचित जनजाति से आते हैं एमए बीएड या इंजीनियरिंग भी उन्होंने किया है पर शासकीय या प्रशासकीय सेवा का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है - जो मैं हमेशा कहता हूं कि अजा, अजजा में भी आरक्षण का लाभ सिर्फ मलाईदार लोगों को मिल रहा है और यह लाभ लेते - लेते हुए उनकी चौथी - पांचवी पीढ़ी आ गई हैं और अभी भी अपने ही समुदाय के बारे में ये लाभान्वित सोचना नहीं चाहते, बल्कि एक प्रक्रिया में ढलकर ये सवर्ण हो गए है, असली लोग मुझे नही लगता कि आरक्षण का लाभ ले भी पाएंगे कभी
खैर, वर्षा का चेहरा सुबह की धूप में चमक रहा था - उसके चेहरे पर जो आत्मविश्वास था और काम को सामने होते देखने की खुशी थी - वह अकल्पनीय है - "मेरे गांव के 85 परिवार अब साल भर तक खेती कर पाएंगे और हम सब लोग कम से कम दो फसलें ले पाएंगे तो हमारे घर के दरिद्र भी दूर होंगे, स्वास्थ्य भी सुधरेगा, पोषण भी ठीक होगा और हम अपने गांव के बच्चों को पढ़ाई करवा पाएंगे" - जब वर्षा या कह रही थी तो मुझे याद आ रहा था
ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के.....
गुमला रांची से 90 किमी दूर जिला है, एक समय में माओवाद और नक्सल प्रभावित जिला था, धमक अभी भी बनी हुई है शाम को दुकानें 7 - 8 बजे अमूमन बन्द हो जाती हैं, हमारे वाहन की चेकिंग हुई, इंट्री की गई थाने पर , आये दिन माओवादी यहाँ "बंदी" करवाते रहते है पास ही नेतरहाट है जहाँ हर वर्ष 22/23 मार्च को जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ सामूहिक धरना होता है जिसमे हजारों किसान आते है, कल हम जाने वाले थे पर गए नही - क्योंकि राकेश टिकैत वहां थे और जंगी प्रदर्शन हुआ , बहरहाल, लोग बहुत प्यारे है यहां के सहज और सरल - ईमानदार और मेहनती
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एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के तीन मालों में बड़ी सुंदर कलाकृतियों से बना और बेहतरीन पेंटिंग के साथ इन पाँच समुदाय के लोगों के बर्तन, आभूषण, कपड़े, खेती के उपकरण और बाकी चीज़ों से अवगत हुआ
तीसरे माले पर हेनरी केरकेट्टा, चार्ल्स कच्छप और सुमन टोप्पो के बनाये बड़े बड़े चित्रों ने - जो अधिकतर आयल पेंट से बने है, श्याम जनगढ़ सिंह, दुर्गा बाई और मप्र के श्रेष्ठ आदिवासी कलाकारों की याद दिला दी - कितना उम्दा काम किया है, झारखंड के इन कलाकारों का काम देखना झुरझुरी पैदा करने जैसा था इतना बारीक और महीन कि बस निहारते रहो
फ्रेडरिक एक्का जी, जो यहाँ के केयर टेकर है, ने जिस तन्मयता से यह सब समझाया और दिखाया - वह काबिले तारीफ़ है, इन पाँच समुदायों के बारे में उनका ज्ञान विलक्षण और अदभुत है, भोपाल के आदिवासी संग्रहालय के बाद यह शायद दूसरा शैक्षिक संग्रहालय है देश का जहाँ इतना वृहद और विपुल काम हुआ है और इसे एक निजी संस्थान मैनेज और मेंटेन करता है
फ्रेडरिक जी जैसे लोगों की समझ और मेहनत को सौ - सौ सलाम है, तस्वीर लेना प्रतिबन्धित था, सो मैंने नियम का पालन किया, स्व फादर बनफूल, जो बेल्जियम से आये थे, ने यह स्वप्न दशकों पहले देखा था, उन्होंने गांव गांव जाकर सामग्री एकत्रित की, इसे एक मजबूत और संसाधनों से भरपूर बनाया और आज यह संग्रहालय पूरे देश में अपनी जगह से आदिवासी विरासत का प्रकाश स्तम्भ है
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अधिकांश बच्चे पहली पीढ़ी के पढ़ने वाले आदिवासी है जो जिले और दूर दराज़ के हैं, यहाँ आवासीय होस्टल भी है, विशाल कैम्पस और बड़े - बड़े मैदान फुटबॉल से लेकर हॉकी के, व्यवस्थित स्टेडियम, लम्बे बड़े हवादार कमरे और साजो सामान से सज्जित प्रयोगशालाएँ और वृहद पुस्तकालय
जिस समर्पण और सेवा भाव से मिशनरीज पिछड़े इलाकों में काम कर रही है और संविधान के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा - स्वास्थ्य का काम दूर - दूर तक कर रहें है , वह आज के समय में कोई और करता नजर नही आता
उपलब्धियाँ खेल से लेकर अकादमिक स्तर पर हजारों है फादर मनोहर जो प्राचार्य है, का दफ़्तर कम से कम से कम दस हजार से ज्यादा ट्रॉफी, शील्ड और मेडल से चमचमा रहता है
इसी परिसर में पाँच मंज़िला भव्य आदिवासी म्यूज़ियम है जिसमे झारखंड की पाँच आदिवासी प्रजातियों के रहन सहन से लेकर खेती रसोई के उपकरण, कपड़े और रीति रिवाज़, देवी देवताओं का ज़ख़ीरा है जो वैविध्य पूर्ण है
एक छोटा सा बगीचा है जिसमे लुप्त होते वनस्पतियों को उगाकर संरक्षित किया जा रहा है यहां ब्राह्मी से लेकर चिरौटा के पौधे है जो औषधीय गुण भी रखते है और अब लुप्त भी हो रहें है
पिछले कई वर्षों में इस सरकार ने मनमर्जी और बुरी तरह के पूर्वाग्रह रखते हुए हजारों संस्थाओं के FCRA कैंसल किये है और अभी भी मार्च खत्म होने आया है और हजारों के रिन्यू नही किये है - इस वजह से आर्थिक दिक्कतें हो गई है
बहरहाल, सेंट इग्नेशियस स्कूल का काम सराहनीय तो है ही, पर इन अति पिछड़े और विशेष अनुसूचित जनजातियों (Pre Notified Premitive Tribes ) के लिए शिक्षा के प्रचार - प्रसार का काम कर रहें है - तमाम विपरीत परिस्थियों के बाद भी, वह अतुल्य है
यहाँ कुछ चित्र है भव्य परिसर के - जो शांत और खूबसूरत है
इस्तीफ़ा ना देने की परंपरा तो सनातन धर्म में नही थी, आज से हारे हुए प्रत्याशी सीधे मुख्य मंत्री बनेंगे इस महान हिन्दू परम्परा का उदभव हुआ लोकतांत्रिक देश में, अब तीन चार दिन 33 करोड़ देवता यही रहेंगे और फूलों की वर्षा करते रहेंगे आज दून में की तो कल लखनऊ में बस देवताओं को भी अब हिन्दू धर्म के नए अध्याय लिखने चाहिये
मतलब संविधान, जनता का मत, चुने हुए विधायकों का नेता को चुनना, बहुमत आदि का कोई मतलब है या नही, गंवारों ने नई शिक्षा नीति में सब जोड़ा कि नही - "लोकतंत्र का अर्थ है जनता के पैसे से जनता के लिए, जनता को बेवकूफ बनाते हुए गुंडे, मवालियों और हारे हुए लोगों की सरकार को नया उसूल और सनातन परंपरा कहते है"
मप्र से लेकर देशभर में खरीदी बिक्री और सत्ता हासिल करना तो सबको मालूम ही था, पर अब पार्टी के भीतर भी विधायकों को दबाकर अपनी मन मर्जी से दो लोग नेता थोप देते है वो भी रिजेक्टेड और हारा हुआ , क्या सबको लोयाकरण की धमकी दी जा रही है
कोई अर्थ रह गया है क्या चुनावों का, अरबों रुपये खर्च कर नाटक करने का - बंद करो बै फालतू के ड्रामे और देश का एमए पास वो भी इंटायर पॉलिटिक्स में पास, प्रधान मंत्री पार्टी को गैर वंशवादी, अनुशासित, लोकतांत्रिक बतलाता है - इससे भद्दा मजाक कभी हुआ क्या देश के 75 साला इतिहास में, इतनी चर्बी चढ़ी है कि क्या ही कहा जाए पूरे लूटियन गेंग को
क्या यह सब शर्मनाक नही है, सुप्रीम कोर्ट चुप क्यों है, राष्ट्रपति तो स्टाम्प और अनोपयोगी था ही हमेंशा से और इन्होंने उस फर्जी कानूनविद को भी घिसकर पूरा निकम्मा बना दिया है और जनता तो विशुद्ध मूर्ख है ही - समाजवादी या कोई और जीत भी जाते तो ये भ्रष्टाचार में डूबे ढपोर शंख फिर खरीद लेते सरकार
मणिशंकर अय्यर जिन्दाबाद
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कंट्रोल, कॉपी, पेस्ट और पक्का चोर निकला फर्जी श्रीमान वामपंथी - आलोक श्रीवास्तव ने बुरी तरह से कड़वा सच बताया
अब काहे पे लिख रहा कश्मीर, गांधी, गोडसे, सावरकर तो हो गया अब क्या गोलवलकर और हेडगेवार पर लिख रहा क्या
अफसोस यह कि बड़े विद्वान और लेखकों प्रोफेसरों ने इस आदमी को सिर चढ़ाया और लोगों ने इसे विद्वान माना, ये लोग भी नजरों से उतर गए है - इस आदमी को सबको बदनाम करने की आदत है यह किसी के बारे में कुछ भी बोल सकता हैं, निहायत घटिया व्यक्तिगत आक्रमण भी कर सकता है, पता नही कैसे झेलते है लोग - इस स्केंडल से किताबे ही बिकेंगी
इसी पोस्ट पर एक और श्रीमान ढपोरशंख के बारे में मालूम पड़ा जिसे साहित्य अकादमी मिला इस वर्ष - हे भगवान
हम तो पहले ही दिन से कह रहे है कि यह एकदम फर्जी कॉपी पेस्ट लेखक है जो अपने निज जीवन में ईमानदार नही वह लेखक हो ही नही सकता , दूसरों का घर उजाड़ने वाले लोग क्या खाकर ईमानदार होंगे
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हरमू हाउसिंग कॉलोनी, राँची, सतना में बीएड की पढ़ाई और देवास का एक जमाने में बहुत गहरा रिश्ता था जो आजीवन बना रहेगा, पर अफसोस यह सब एक तरफ़ा साबित हुआ - सन 1992 से 94 तक का सफर एक शानदार समय था जो हमेंशा ऊर्जा बनकर धड़कता रहता है दिल दिमाग़ में
मेरी कहानी "सतना को भूले नही तुम" में इस बात का सिलसिलेवार ज़िक्र है, यह कहानी मेरे संग्रह नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ में आखिरी कहानी है और इस तरह से हर उस बात का पटाक्षेप हो गया जो इस शहर से जुड़ी थी
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