हमारे यहां देवास में एक खाँटी कवि थे, उनका नाम था रामचंद्र राम, बहुत साल पहले गुजर गए
उनकी कविता की एक पँक्ति अक़्सर दिमाग़ में जमी रहती है बर्फ की सिल्ली की तरह - "बेटा बड़ा होता है तो ताप नहीं आंच देता है" , शायद समझ पाना थोड़ा टेढ़ा है पर मैं क्या कह रहा हूं - स्पष्ट है ना - यह दोस्तो के लिए भी उतना ही फिट है जितना बच्चों के लिये
बहरहाल, वर्चुअल वर्ल्ड का रिश्ता ही ज्यादा अच्छा है - सबको अपनी प्राथमिकता या देशी भाषा में कहूँ तो औकात पता होना ही चाहिए और यह जितनी जल्दी विकसित हो जाये - बढ़िया है
नाराजी लड़ाई अपनों से ही होती है - यह भी तथ्य है , कभी अपनी किसी कहानी में लिखा था "अपने लोगों को मुआफ़ करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है "
◆ किसी से बातचीत में एक प्रसंग के संदर्भ में
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लौट आया आखिर, लौटना ही था, कहाँ जाता नही तो
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चीन में चौथी लहर
लॉक डाउन शुरू
बाज़ार का पेट भरा नही, हो जाओ तैयार अप्रैल तक ले लो अपने यहाँ भी वैसे भी अपने देश की हालत खराब है ही
चुनाव खत्म, हिजाब पे फ़ैसला आ गया, कश्मीर फाइल्स ने माहौल बना दिया है, देश में बेचने को अभी बहुत कुछ बाकी है ही और सरकार हमेंशा की तरह कंगाल है - तो बोलो सारा रा रा
हे कोरोना देव अबकी बार मत आना, दिशा बदल लो मेहरबानी करके
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|| नई सुबह से नया आग़ाज़ ||
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एक बेहतरीन दिन की सुबह कविताओं से हो और वो भी कवि से सुने तो इससे अच्छा क्या हो सकता है
कई दिनों से मिलना ड्यू था और भोपाल में था 3 दिनों से तो अभिषेक जी का बार बार फोन आता था कि मिलो, आप जब भी फ्री हो मैं आ जाऊँगा पर एक शहर में आओ तो काम और दोस्तों से फुर्सत नही मिलती, लगातार बड़े बड़े फ़ासले तय करके यहां वहाँ भटकते रहते हो आख़िर आज जब घर के लिए निकल रहा था तो तय हुआ कि सुबह की चाय साथ पी जाये
सुबह पहुँच गया था उनके घर, बड़ा सुंदर और हरियाली से आच्छादित घर, हवादार एवं चमकीला घर - अभिषेक जी ने गर्मजोशी से स्वागत किया, इधर उधर की बातें हुईं देवास, महू, सीधी, उमरिया के कलेक्ट्री के किस्से और उनकी किस्सागोई की शैली - मजा आया फिर धीरे से बात कविता पर आई, अभिषेक जी ने चुनिंदा कविताएँ सुनाई - व्यवस्था, तंत्र के साथ मनुष्यता के महीन परतों को खोलती और अनेक पक्षों और जीवनानुभवी हिस्सों से जुड़ी टुकड़ों - टुकड़ों में कविताओं का आस्वाद लिया और बहुत थोड़ी बात रचना कर्म पर हो पाई
बहुत संकोच से उन्होंने बताया कि एक कविता संकलन आ रहा है जिस पर भी हमने बात की और मैंने कहा कि एक ही क्यों आने दीजिये बल्कि उन्हें गद्य पर भी काम करना चाहिये, जिस तरह के किस्से और किस्सागोई का अंदाज़ है उनके पास - वह लेखन में दर्ज हो जाये तो एक अलग तरह का अनूठा गद्य होगा
बहरहाल, अभिषेक जी इन दिनों मप्र शासन में "मप्र योजना आयोग" के प्रमुख सलाहकार है साथ ही अन्य विभागों की जिम्मेदारी है, एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जिस बेख़ौफ़ और बेलौस तरीके से अपनी बात साहित्य, संस्कृति और प्रशासन की करते है वह सीखने योग्य है , उन्होंने अपनी लंबी योजना भी बताई जिस पर मैंने कहा कि अभी यह सब ना सोचते हुए प्रदेश के लिए लम्बा सोचना चाहिये जिस पर किसी और पोस्ट में जिक्र करूँगा
बड़े उत्साह में हमने तस्वीर खींची , आज की शानदार सुबह के लिए आपका धन्यवाद, हफ़्ते का पहला दिन व्यस्तता भरा होता है और जिस विनम्रता से आपने लगभग एक घण्टा समय दिया, व्यवस्थाएं की कि मैं सही तरीके से अपनी गाड़ी पकड़ लूँ वह सराहनीय है - शुक्रिया शब्द छोटा है पर एक बड्डे वाला शुक्रिया तो बनता है
जल्दी ही लम्बी मुलाकात होती है - इंशा अल्लाह
मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर ,
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
◆ सलीम कौसर
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इकरार ए मोहब्बत अहदे वफ़ा सब झूठी बातें है इकबाल,
हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने खातिर जीता है.
◆ अल्लामा इक़बाल
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|| हम सबने अप्रत्यक्ष रूप से देश को यूक्रेन बना दिया है - ध्वस्त और खंडित, पुतिन ने नही - हमने खुद ने ||
Ravish Kumar इतनी खोखली हंसी मत हंसिये, राज काज है - सरकारें आती जाती रहती है, आपका क्या गया, आपका करोड़ो का पैकेज कम नही हो रहा, आप बटोरते रहिये यश, पुरस्कार, ख्याति और ढेर रूपया
इस देश के युवाओं को जो आप नौकरी के बहाने लताड़ कर मदद कर रहें थे न आप, वो नही चाहिए इन्हें, ये 40 - 50 साल तक कुंवारे रहेंगे, मर जायेंगे ऐसे ही पर वोट नही देंगे
गरीब पैदल चलकर 2000 किमी सड़क पर चल लेंगे, सड़क पर ये मजदूर बच्चे जनेंगे, दूसरों से लेकर जूते चप्पल, रोटी खा लेंगे माँगकर - पर वोट नही बदलेंगे अपना, 5 किलो में महीना निकाल लेंगे पर सुधरेंगे नही
लड़कियों महिलाओं को हाथरस वाले बलात्कारी स्वीकार है, बलात्कार और अपने ख़िलाफ़ हिंसा में उन्हें मज़ा आता है, पर वोट नही बदलेंगी अपना, महंगाई स्वीकार है पर बदलेंगी नही अपना मत
लोगों को गुंडाराज पसंद है, दिन में 50 बार भेष बदलने वाले भांड पसंद है, हिंदू-मुस्लिम पसंद है, मंदिरों का विस्तार पसंद है, गंगा घाट की आरतियां अच्छी लगती है, ड्रग और नशीले पदार्थ पसंद है, अय्याशी करना पसंद है - तो मरने दो - कितने दिन 5 किलो राशन खाएंगे, प्रगतिशीलता का कोई अर्थ नहीं है - इस देश में जब पूरा तंत्र जड़ और गवार हैं - 17 वी शताब्दी में रह रहा है- तो आप क्यों दुनिया की बराबरी करना चाहते हैं और वैसे भी पुतिन और बाईडन को देखकर लगता नहीं कि प्रगतिशील का अर्थ क्या है - वह सब अपने बल्लम से ज्यादा मूर्ख और गवार है - क्या किया जाए
सबको फ्री की आदत पड़ गई है - घर पर गर्भवती को लेने आई एम्बुलेंस से कंडोम, दलिया, कॉपी किताब, सायकिल, मध्यान्ह भोजन, स्कूटी, आईपैड, लेपटॉप, शादी ब्याह, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, मकान, सड़क, दारू, गुटखा, बीड़ी, तम्बाखू, मरने पर लकड़ी कंडा, सालाना श्राद्ध और बाकी फ्री का राशन है ही हर माह
महंगाई स्वीकार, पेट्रोल डीज़ल तेल 200/- ₹ मंजूर, खेती का सत्यानाश मंजूर पर वोट नही बदलेंगे - किसानों को अब समझ आएगा जब बिल दोबारा कड़े प्रतिबंधों से लागू होगा और तब बात करना सम्मान निधि की भीख पाने वालों किसानों
पिछड़ों और दलितों को, मुसलमानों को यदि गेहूँ खाकर भी अक्ल नही आई तो गोबर का गुणगान क्यों ना करें , आईये मोब लिंचिंग, गाय, गोबर, गौमूत्र, दीये जलाने में अरबो का तेल जलाने में और घर घर से बीफ खोजने के अभियान आरम्भ करें
सबसे ज्यादा गड़बड़ दलित राजनीति और दलितों ने की है, मायावती जैसों को राष्ट्रपति और बना दो ताकि झंझट ही खत्म सामाजिक न्याय का और 75 वर्षों में सुविधाएं जो गरीब - वंचित को घर बैठे फ्री में मिली है ना, उससे देश का दिमाग़ खराब हो गया है, ये सब लोग जो सिर्फ अप्रत्यक्ष कर देते है बड़ी लायबेलिटी है हम सब पर - निहायत ही जड़ और घोर साम्प्रदायिक मानसिकता
न्यूज़ एंकर्स का धंधा अपने मालिक के हर कर्म को लीपा पोती कर सफ़ेद करना है फिर काहे ना करें - उनके भी बीबी बच्चे है और शॉपिंग करना है
बाकी अम्बेडकर, नेहरू से लेकर पटेल और भगतसिंह या गांधी है ही सदाबहार चेहरे चबाते रहिये टीवी बहसों में
आप सबके लिए दुआएँ और शुभकामनाएं कि मुस्कुराते रहें - थोड़े दिनों में रिटायर्ड हो जाइए, अब 2024 के लिए कुछ करने की ज़रूरत नही, और बाकी जो है हईये है
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