लेखक, शोषक और रॉयल्टी विवाद पर प्रकाशकों के हास्यास्पद बयान आ रहें है, जिस तरह से कन्फेशन, फ्रस्ट्रेशन और बकवास से अपनी ही पीठ थपथपाकर काम पर लौटने के, [ मल्लब मुर्गे फाँसने के ] सेल्फ मोटिवेशनल कैम्पेन चल रहे है वे बेहद शोचनीय है - ऊपर से इनके 'अस्पष्टीकरण' पढ़िए - मतलब सबको सुतिया समझ रखा है, जो तुम्हारे यहां छपा वो महान, उसे पुरस्कार भी दिलाने की सेटिंग कर ली क्या, बाकी लेखक - प्रकाशक सब कचरा है क्या, कहां से लाते हो बै इतना कूड़ा, इतना श्रेष्ठता का बोध लेखकों से लिये रुपयों से ही खरीदते हो ना फुटपाथ के पंसारी से
इनके लेखक देखिये - ब्यूरोक्रेट्स, प्राध्यापक, पुलिसवाले, सवर्ण, अभिजात्य वर्ग, पूंजीपति, उद्यमी, रिटायर्ड खब्ती, फॉर्म हाउस वाले - अव्वल तो महिलाएँ है नही और यदि महिलाएँ है तो भी गिनी - चुनी, वो ब्यूरोक्रेट्स की बीबियाँ या उचकती - फुदकती औरतें जो कभी ना कभी काम में आधार देकर संकट मोचिनी बन जाती है
गज्जबै समझ है भाई, अपने एपिटाफ़ अपने पास रखों ना - हमें क्यों पिला रहें - हम गिरजाघर के पादरी नहीं जो तुम्हारे उजाले में किये पाप और राज दबा जाएंगे, तुम जैसे लोगों के लिए परसाई ने लिखा था कि - "जीसस क्राइस्ट जिंदा होते तो कहते कि हे ईश्वर इनमें से किसी को माफ मत करना ये सब जानते हैं कि यह क्या कर रहे हैं "
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हिंदी के बड़े विद्वान थे, दूर-दूर तक उनका नाम था कविता, आलोचना और साहित्य में और विश्वविद्यालयों में धाक थी जबरदस्त - केरल से अफगानिस्तान तक और सोमनाथ से चीन तक के विवि में उनकी कविताओं और आलोचनाओं के पाठ विश्वविद्यालयों में पढ़ाएं जाते थे , उनके पैदा किये अमानस और अमानक पीएचडी पूत पूरे देश में आग मूतते है यहाँ - वहाँ
आज सुबह मैंने उनको एक संदेश भेजा -
"खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पिया को, दोऊ भये इक रंग"
||होली मुबारक ||
अभी शायद उन्होंने संदेश पढ़ा होगा, उन्होंने मुझसे फोन करके पूछा - " नाईक साहब यह तो बहुत सुंदर है, थोड़ा यह बताइए कि यह किसने लिखा है"
मन तो कर रहा है कि घर में पड़ी एके-47 निकालूँ और सीधा उनके घर पहुंच जाऊं या फिर सल्फास की टेबलेट लाकर रखी है गेहूं में डालने के लिए - खुद ही खा लूँ और सो जाऊँ
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