Skip to main content

Posts of Last Week August 2018



एक उदास शाम में विशाल एवम खुले रँग के हर पल बदलते आसमान को भी तन्हा और उदास देखकर साहिर को याद कर रहा हूँ, अपने आप से बात कर रहा हूँ और शिद्दत से लगा कि अब आगे क्या 
------------
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम 
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम

मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए 
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम

लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद 
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम

गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से 
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम!

- साहिर लुधियानवी
[ प्यासा 1957 ]


*****
। बोध कथा ।।
_____________

एक जंगल में एक चन्दन-वृक्ष था, जिस पर अन्य पक्षियों के साथ एक हंस का भी बसेरा था । एक बार जंगल में आग लगी । चन्दन का पेड़ भी जलने लगा । सभी पक्षी उड़ गये लेकिन हंस जलते हुये चन्दन-वृक्ष की डाल पर बैठा रहा । चन्दन के वृक्ष ने हंस से पूछा :
"आग लगी बनखण्ड में, दाझ्या चंदण-बंस, 
हम तो दाझे पंख बिन, तू क्यों दाझे हंस"

अर्थात - हे हंस, जंगल में आग लग गयी है और यह चन्दन-वृक्ष भी झुलस रहा है । हम तो बिना पंखों के झुलस रहे हैं, लेकिन तुम क्यों जलकर अपने प्राण गंवाना चाहते हो
तब हंस ने चन्दन-वृक्ष को जवाब दिया -
"पान मरोड्या रस पिया, बैठ्या एकण डाळ 
तुम जळो हम उड़ चलें, जीणों कित्तीक-काळ"

अर्थात - हे चन्दन, मैंने जब चाहा तुम्हारे पत्तों को निचोड़ कर रस पिया । तुम्हारी डाल, तुम्हारी छत्रछाया में रहा - और अब जबकि तुम जल रहे हो, मैं तुम्हें छोड़कर उड़ जाऊँ; यह मुझसे नहीं हो सकता । कब तक कोई जियेगा, आख़िर तो सब को मर जाना है
*****
राहुल और मीडिया के कुछ जागरूक लोगों के राफेल डील को लेकर किये गए सवाल और राहुल के विदेशों में हुए चौतरफ़ा तेज़ हमलों की बौखलाहट इतनी गम्भीरता से सरकार लेती है - वह तो पप्पू था फिर इतनी हड़बड़ाहट और घबराहट कि कुछ भी करने लगें प्रभु
मुंबई के अपने लोगों की किरकिरी को बचाने का क्या यही तरीका है
पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ाने और भुलाने के लिए यही शेष है
अब हमले और तेज़ होंगे, हार का डर यकीन में बदल रहा है मित्रों
उदारवादी दलित, प्रगतिशील सवर्ण और सभी अल्पसंख्यकों को एक होकर रहना होगा - समझ रहें है ना
गुस्से और क्षोभ का समय नही
गाली देने और कोसने का ही समय नही
इन्हें माफ़ कर दो, सच में मुआफ कर दो, बहुत शातिरों को भी माफ़ ही किया जा सकता है
ये सब जानते है कि ये क्या, क्यों और किसके इशारों पर क्या साधने के लिए कर रहे है
अब समय भी नही कि कहूँ जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध
*****
वो कहां गया रामदेव नामक कालाधन का जनक आज कुछ बोला नही - चतुर ठग , शर्मनाक है कि देश का प्रधान मंत्री झूठ झूठ बोलता रहा, 15 लाख से लेकर नोटबन्दी तक और अभी भी चुप नही बैठ रहा - रोज रोज नए नए शगूफे छोड़कर अब देश के बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों से बदला लेने पर उतर आया , यह सरकार हर बार ध्यान भटकाने को नए औजार ढूंढ़ते है कितना अफसोसजनक है यह सब
यह फर्क होता है पढ़े लिखें नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, वीपी सिंह, गुलजारीलाल नंदा या राजीव गांधी में और इस वर्तमान प्रधानमंत्री में, जिसे अपनी डिग्री दिखाने के लिए दिल्ली विवि में जाकर धमकाना पड़े या सूचना के अधिकार कानून को धता बता कर जनता को मना करना पड़े उस पर क्या भरोसा , उर्जित पटेल को भी लाया पर उसकी भी रीढ़ कभी तो सीधी हुई ही होगी और उसकी भी औलादें है और भविष्य है
जिन लोगों को उस दौरान जान देना पड़ी क्या उनकी मौत के लिए इस सरकार के निर्णय लेने पर गैर इरादतन हत्याओं का मुकदमा दर्ज नही होना चाहिए , जिन लोगों को शादी ब्याह से लेकर नौकरी में जलील होना पड़ा या बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ा क्या उनके लिए मानहानि का मुकदमा नही बनता, जबकि संविधान सबकी गरिमा की बात करता है
नितिन गडकरी के यहां या कर्नाटक और आंध्रा में करोड़ों की शादी नगदी से हुई उनके खिलाफ कोई मुकदमा नही बनता, जेटली तो बीमार हो गया और छह माह से मुझे लगता है रिजर्व बैंक में यह मामला सुलटाने में लगा था और अब लौटा तो 3 दिन में ही नोटों की गिनती हो गई और सब यही निकला तो मामला क्या है
सिर्फ और सिर्फ उप्र में चुनाव जीतने के लिए यह नाश किया गया और देश को अंधी गुफा में धकेला गया , कमाल यह है कि जो राष्ट्र भक्त थे वही चिरकुट देश भक्ति में देश को अँधेरे में ले गए और अब चेहरे पर शिकन भी नही
ये अकड़ और ये भ्रम, झूठ और खोखलापन कहाँ से लाते हो, ना शिक्षा - ना दीक्षा, ना समझ और ना दृष्टि और इतने बड़े देश को दो लोगों की जिद और तानाशाही ने बर्बाद कर दिया वो भी अम्बानी और अडानी जैसे दो टुच्चे लोगों के लिए
जस्टिस काटजू की उर्फ भारत की मूर्ख जनता को अभी भी यकीन है कि ये ही दो लोग उनके उद्धारकर्ता है तो भगवान करें यह भरम बना रहे जिस दिन सड़क पर नंगे होकर भूख से मरेंगे , अपनी औलादों को रोटी नही दे पाओगे, अपनी बीबी बेटियों की सुरक्षा नही कर पाओगे या खुदको नौकरी धंधों के अभाव में सल्फास खाना पड़ेगी - तब याद करेंगे और कहेंगें कि "एक था मोदी"
अभी भी समय है 31% लोगों की गलतियों का खामियाजा रेलवे से लेकर किसान तक भुगत रहे हैं यदि ये 5- 10 % भी बढ़े तो जीवन मे नरक यही देखना पड़ेगा - वैसे भी अभी कौनसा कम भुगत रहे है , अब तो सुप्रीम कोर्ट भी रोज खुलकर अपनी बात कह रहा है

*****
वो रामदेव के शिष्य बालकृष्ण के नेपाल निवासी होने का, नकली पासपोर्ट, नागरिकता और बाकी सबका क्या हुआ
उप्र में जमीन विवाद था पतंजलि का, क्या हुआ
रामदेव के अधिकांश प्रोडक्ट क्वालिटी से कम थे उसका कोई अपडेट
रामदेव का सलवार प्रकरण का कुछ हुआ
पतंजलि पीठ में हड्डी का मिश्रण मिलाया जा रहा था, क्या हुआ
पतंजलि पीठ में कार्यरत मजदूरों पर दमन और हत्या के मामले दर्ज हुए थे क्या हुआ
रामदेव की नई प्रोडक्शन यूनिट का उदघाटन मोदीजी करने गए थे केदारनाथ जब गए थे, वहां टैक्स लगाने की बात कर आये थे, क्या हुआ
रामदेव का पुत्रजीवक चूर्ण बन रहा है ना, अपडेट दो भाइयों - बहनों
आजकल लोग कपाल भारती, फूं - फां कम करते है और दोनों हाथों की उंगलियां के नाखून भी कम रगड़ते है - सबके बाल काले हो गए क्या या डॉ बत्रा का तेल रामदेव घर भेज रहा है
एक महिला ने रामदेव पर किताब लिखकर कई संगीन आरोप लगाए थे, क्या हुआ
क्या हुआ, क्या हुआ, क्या हुआ ....
सई परांजपे की फ़िल्म कथा का गीत याद आ गया - सही बोल रहा हूँ ना मैं - क्या हुआ

और अंत मे आर्ट ऑफ जीवन के गुरु घण्टाल पर एनजीटी ने जो दण्ड लगाया था और मुकदमा दर्ज किया था यमुना मैली करने का उस पर कुछ हुआ
मीडिया के खोजी / फेलोशिप डकारने वाले शोधार्थी जाओ बेटा रोज़गार दे दिया - ऐश करो
जागो देशभक्तों जागों , देश खतरे में है ...
*****


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही