Skip to main content

26 Sept 2018

जब राजा सिर्फ और सिर्फ निंदा रस में निर्लिप्त होकर मूल मुद्दों से हट जाए तो-
अपने राज्य के लोगों को सन्त्रास देने लगे उनके आवागमन से लेकर रोजी रोटी के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा कर दें तो -
राजा के दरबार के सभी नवरत्न विशुद्ध मूर्ख, गंवार और अनपढ़ों से गये बीते हो तो -
राज्य के बच्चों, किशोरों और युवाओं को नैतिक और सही शिक्षा देने के बजाय राजा और उसके गण उनके दिमाग़ में जहर भरने लगें और आचार्यों को मजदूर से गया बीता बनाकर श्रम करवाएं तो -
चरक , सुश्रुत और पतंजलि के देश में लोगों के वात पित्त के दोष निवारण के बजाय राज्य जँगली सियारों और शेरों के हवाले निर्दोष बीमार लोगों को चंद रुपयों के लिए चारा समझकर फेंक दें तो -
राज्य के न्यायाधीश, समस्त जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी भी भांग और नशे में धुत्त होकर उन्मुक्त हो जाएं तो -
जिस राज्य में किशोर, युवाओं को शिक्षा, मार्गदर्शन के बजाय उन्हें गधा मानकर भेड़ो की तरह से हांका जाएं और इस्तेमाल कर फेंक दें तो -
जिस राज्य में देवी स्वरूपा मातृ शक्ति की नित भ्रूण हत्या हो और उनके साथ बदसलूकी से लेकर बलात्कार होना प्रजा का धर्म हो जाएं तो -
जिस राज्य में सूचना संवाहक अपने काम के बजाय गलत काम करने के लिए राजा के खजाने का भक्षण कर अपने परिवार का पोषण करें और अपना जमीर बेच दें तो-
जिस राज्य में राजा को सलाह देने वाले सलाहकार, बायीं ओर बैठने वाले विद्वान भी शुद्र स्वार्थों के लिए राजा के हर काम को नजर अंदाज कर भीष्म की भांति चुप बैठकर सत्ता का चीरहरण देखते रहें तो -
शिखण्डियों की भीड़ जो आये दिन राजा के कुटिल इशारों पर वीभत्स कर्म करके अभिमन्युओं को चक्रव्यूह में घेरकर मार रही हो तो -
श्रीकृष्ण अपनी पटरानियों के साथ रासलीला रचाते हुए बांसुरी बजाकर किसी गांडीव धारी अर्जुन को मादक द्रव्यों में संलिप्त कर अनर्थ और अन्याय का सहारा देने लगे तो -
विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ने के बजाय अपने विश्वसनीय भांड और चारणों के निजहित हेतु अपने गुप्त ठिकानों पर प्रश्रय देकर फायदा पहुंचाएं तो -
उस राज्य को शास्त्रों में नरक कहा गया है और ऐसे नरक में ज़्यादा दिन तक कोई राजा राज नही कर सकता, राजा ईश्वर का दूत ना होकर भक्षक है जो ईश्वर के नाम पर कलंक है और समूची प्रकृति का भी दोषी है जो चंद रंगे सियारों के फायदे के लिए सृष्टि का नुकसान कर विध्वंस के पथ पर अग्रसर है
इसमें राजा के साथ इस सृष्टि का हर चर - अचर प्राणी भी इसी नरक का भागी है जो चुप रहकर ईश्वर प्रदत्त जीवन का सत्यानाश कर अपने सुंदर जीवन को कष्टप्रद बना रहा है
समय आ गया है कि निंदा , पाप, दुराचार और आततायी राजा का सिंहासन बदलकर ईश आज्ञा का पालन करते हुए मनुष्य को संरक्षित और संवर्धित रखने वाली प्रणाली की स्थापना की जाएं और नर भक्षियों को राज्य से बाहर स्थाई रूप से वनवास दिया जाये
[ चौकीदारी के आधुनिक धर्म की कथाएं - 1 ]

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही