जो सरकार पेट्रोल डीजल के भाव नही सम्हाल सकती तो ना उसे शासन चलाने का हक है ना दुनियाभर में हीरोपंक्ति करने का नैतिक अधिकार है
दुनियाभर के मूर्ख और विध्वंसक नेताओं को हमारे पवित्र त्योहारों पर अतिथि बनाकर बुला लेते है और बाद में हमारी मेहनत की कमाई का रुपया उन्हें सौंपकर हथियार हजार गुना दामों पर खरीदकर उपकृत करते है - ऐसे नेताओं का बहिष्कार किया जाना चाहिए
बहरहाल, यदि अन्तर्राष्ट्रीय भाव का मुकाबला करो और निकम्मों अपने बस में जो है टैक्स , वह तो कम करो - मसलन मप्र में शिवराज सरकार देश मे सबसे महंगा पेट्रोल डीजल बेच रही है, रोज जूते खा रहे है जनता से फिर भी अक्ल नही आ रही
ये सरकार नही सरेआम अपनी ही जनता को लूटने वाली संगठित भ्रष्ट व्यवस्था है जो जिले से लेकर दिल्ली तक विराजमान है और अब भी समझ नही आ रहा जब पूरा देश छात्रों, किसानों, जातीय और वर्गों के समूह सरकार के खिलाफ सड़कों पर है फिर भी इन तानाशाहों को दिख नही रहा
जनता के बर्दाश्त करने की एक सीमा होती है याद रखिये और सिर्फ प्रधान, जेटली जैसा कारपोरेट का गुलाम एवम कमजोर मंत्री और अकर्मण्य मुख्यमंत्रियों की फौज इस देश के नियंता नही है - जनता वास्तविक अर्थों में निर्णायक है और जब ये सड़क पर आ गई है तो तुम्हारे सारे प्रयास धरे के धरे रह जाएंगे - याद रखना तुम्हारा जीवन सिर्फ पांच साल है और बाकी फिर जनता के हाथ मे है
अम्बानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों के हाथों जो सरकारें बिक जाए उसे शासन करने का कोई नैतिक हक नही और दुखद यह है कि इन सरकारों ने पूरा देश और 130 करोड़ लोगों का जीवन दो लोगों के हाथों में गिरवी रख दिया, यह मत भूलो कि ये भी लक्ष्मी के गुलाम है और किसी के सगे नही, अपनी माँ कोकिला बेन को जो औलादें सम्मान नही दे सकी वो तुम्हारे हो जाएंगे, खैर परिवार समझने के लिए रोज जूझना पड़ता है गैस की रिफिल लाने से लेकर सब्जी वाले से भाव करने में और तुममे से अधिकाँश तो समाज के टुकड़ों पर पलें हो तो तुम क्या समझो महंगाई, संघर्ष और जिजीविषा का आख्यान
धिक्कार है तुमपर और शर्म आती है कि साधारण परिवारों से आये तुम लोगों की ऐयाशियों और रुपये की हवस इतनी बढ़ गई है कि समानुभूति, सहानुभूति और औकात भी भूल गए हो - गरीब लोगों की हाय लेकर कहां जाओगे जबकि तुम्हारे अपने लोगों को मरते सड़ते और मौत के लिए तरसते हुए सामने देख रहें हो कि जीवन बख्शता नही किसी को
शर्मनाक, धिक्कार और जनविरोधी नीतियों का विरोध
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फिर पगलाया यह
असली भाजपाई है जब भी मोदी संकट में हो ये आ जाता है दल्ला
इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई शब्द नही है और यह बुजुर्ग नही बुर्जुआ है एकदम घटिया किस्म का और पगलाया हुआ इसलिये कोई सम्मान नही और इसकी उम्र और कृत्यों को लेकर तो बिल्कुल भी आस्था नही अब, ये वो गांधीवादी, मार्क्सवादी, कांग्रेसी या बुर्ज ख़लीफ़ा बुड्ढों की तरह है जो सोचने समझने की विचार शक्ति तो खो चुके है पर पद और कम्फर्ट ज़ोन छूट जाने के भय से चिपके हुए है - अकूत चल अचल सम्पत्ति से और कोई सच्चाई कह दें तो मंथन तो करते है पर भाग कर फिर फिर उन्हीं अंध गुहाओं में बह जाते है जो इनकी शरण स्थली है, इन्हें सच्चाई से डर तो लगता है पर स्वीकारना नही चाहते, कोई कह दें तो खाज में जलन होने लगती है और नैतिकता की दुहाई देकर ज्ञान के पाठ पढ़ाने लगते है, भाषा और तहजीब सीखाने लगते है
देश मे इसके जैसे सैंकड़ो बुर्जुआ है जो सत्यानाश कर रहें है और युवाओं को भटका रहें हैं, इसके जैसे व्यक्तियों ने इस उम्र तक आते आते अपने दोस्त कम दुश्मन ज़्यादा पैदा किये है और अब खुले आम लोग इनके जैसों के लिए नमक, घी और नींबू मिर्च लिए घूमते रहते है कि मौका मिले और छिड़क दें इस व्यक्ति ने आंदोलन नामक शब्द की गरिमा का भट्टा बैठा दिया है और ये सब जानता है कि क्या कर रहा है
इससे बड़ा धूर्त और काईयाँ कोई नही
कटु शब्द जरूर है और साफ़ कह रहा हूँ कि इसके बहाने मैं कई और को साध रहा हूँ यह भी एकदम साफ़ है और यह भी भाषाई कमज़ोरी नही है और शब्दों के अर्थ और प्रयोगों से भी वाकिफ हूँ
पिछले दिनों गांधी के आश्रम और वहां की गतिविधियों को जब अपने "पूर्वाग्रही चश्मे" से देखा, विश्लेषण किया तो कई गांधीवादी मित्रों को खरी ख़री बहुत चुभी, और कई प्रकार की दुहाई दी - मुझे नैतिकता, भाषा, लहज़ा, बुजुर्गों के सम्मान और तमाम तरह के पाठ पढ़ाये जाने के प्रसंग हुए पर एक सवाल यह भी है कि क्या देश भर के सम्पादक या अन्य लोग एकदम मूर्ख है जो बड़े अखबार या पत्रिकाओं में बैठे है और उन्हें भाषाओं की तमीज और शुचिता का ज्ञान नहीं जो उन्होंने मेरे लिखें को ज्यों का त्यों छापा, ऐसे बुजुर्ग होने से ना होना बेहतर है
सवाल बहुत है पर जवाब सिर्फ एक है कि सच्चाई से भागिए मत और देखिये कि आपके कर्मों का क्या हो रहा है और अण्णा जैसे धूर्त और मक्कार लोग किस कदर जनता को टूल समझकर इस्तेमाल करने पर उतर आए हैं, ख्याल रहें यह आपकी ही गलतियाँ हैं जो भारत भुगत रहा है
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होना तो यह चाहिए था कि 71 वर्षों में राधा कृष्णन के अलावा करोड़ो नाम हमारे पास और साथ होना थे, देश की इस भयावह हालत के लिए मूल रूप से शिक्षक ही जिम्मेदार है जिन्होंने विशुद्ध मक्कारी और हरामखोरी की और पीढियां बिगाड़ कर एक भ्रष्ट, लापरवाह और उज्जड देश बना दिया, अगर हम सच मे मानते है कि शिक्षक ही राष्ट्र निर्माता है और चाणक्य को केंद्र में रखते है, द्रोणाचार्य और सांदीपनि को गुरु का आदर्श मानते है तो
बावजूद इसके आज भी यह नोबल व्यवसाय बना हुआ है और यही वो केंद्र भी है जहाँ से बदलाव की आहट भी सुनाई देती है और क्रांतिकारिता की सम्भावना नजर आती है
मनमोहन सिंह , रघु राम राजन, अरविंद पनगढ़िया, जॉन द्रेज रीज़, इलीना सेन, सुधा भारद्वाज, बेला भाटिया , पुरुषोत्तम अग्रवाल से लेकर देश के कोने कोने में अभी भी कुछ लोग है जो अलख जगा रहे है और इनसे सत्ताएं भी डरती है - क्योकि ये देश क्या है जानते है और देश के संदर्भ में सत्ता से लेकर कार्य पालिका, न्याय पालिका और विधायिका को कैसे मोल्ड करना है - यह भी जानते है
बहरहाल, शिक्षक दिवस की बधाई इस उम्मीद से कि शिक्षकों के लिए आज बड़ी चुनौती समाज , देश और संस्कृति को बचाने की नही बल्कि इसी देश मे विलुप्त हो गए मनुष्यगत मूल्य और मनुष्यता को बचाने की है, बाकी सब तो हो जाएगा हमारे बच्चे, किशोर और युवा अभी इतने नही बिगड़े है कि उन्हें संवारने में सदियां लगेंगी, बस जरूरत है तो सच को सच कहकर दिखाने , समझाने और अमल करने की
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