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मोहन भागवत के कन्फेशन और संघ का मोदी शाह से मोह भंग 18 Sept 2018


संघ प्रमुख ने सम्भवतः पहली बार मुक्त कंठ से कांग्रेस की तारीफ करते हुए कहा कि आजादी के आंदोलन में कांग्रेस का योगदान महत्वपूर्ण है और कई महान व्यक्तित्व कांग्रेस ने देश को दिए है
यह बात महत्वपूर्ण भी है और संघ के खुलेपन का भी प्रतीक है , इस खुलेपन की बयार में हमने प्रणव दा को सम्बोधित करते सुना और दिल्ली में चल रहे विचार मंथन और भारत के भविष्य में संघ की भूमिका कार्यक्रम में विपरीत विचारधारा के लोगों को अपने बीच बुलाकर सुनना भी संघ के इतिहास में पहली बार हो
मोहन भागवत इस बहाने संघ को पुनः सांस्कृतिक मंच और सांगठनिक संस्थान घोषित करवाना चाहते है वे अपने पर पिछले चार वर्षों में भाजपा पर रिमोट से सरकार के आरोप को खाफीज करना चाहते हैं साथ ही वह अपने कार्यकाल को भी अब पाक साफ रखकर शांति से विदा लेना चाहते हैं जाहिर है.
2019 में सरकार तो भाजपा की ही बनेगी परंतु इस दौरान उन्हें जो प्रशासनिक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक तौर पर जो फैसले करवाने थे वह करवा चुके हैं और तंत्र में संघियों की पर्याप्त घुसपैठ भी करवा चुके हैं इसलिए अब उन्हें 2024 तक बल्कि और ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है हिंदुओं को, अब और असुरक्षा का भाव है - यह प्रलाप करने की आवश्यकता नहीं है.
मोहन भागवत का कांग्रेस को यह कहना कि वह देश में सशक्त हैं और उनकी जड़े इतिहास में है, खास करके आजादी के आंदोलन में - तो वे यह भी कह कर एक तरह का कन्फेशन कर रहे हैं कि संघ को आजादी के आंदोलन में कहीं न कहीं हिस्सेदार होना था और अगर हेडगेवार और गोलवलकर यह काम करते हिंदुओं को संगठित करने के साथ-साथ तो सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने में और तत्कालीन राज्यों में पहुंचने तक उन्हें 71 बरस नहीं लगते, शायद नेहरू की पहली पांच सरकार के बाद ही संघ दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में भारत और भारत के तत्कालीन राज्यों पर कब्जा करके सत्ता हासिल कर लेता और आज यह राष्ट्र एक हिंदू राष्ट्र होता और जो सपना गुरु जी ने देखा था वह संभव हो पाता यानी अखंड भारत का जिसमें पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान और नेपाल भूटान आदि भी सम्मिलित होते और सच में भारत जग सिरमोर होता पर अफसोस यह हो न पाया, कांग्रेस में खुद बहुत तरह के विभाजन थे - हम सब जानते थे, "हू आफ्टर नेहरु जैसे नारे से लेकर हू आफ्टर इंदिरा" तक की एक लम्बी श्रृंखला है.
अब सवाल यह है कि मोहन भागवत का यह कथन और सरेआम एक राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में जिसकी प्रतिष्ठा और यशोगान करना चाहते हैं मिद्दिया और अपने समानांतर माध्यमों से वह बेचैनी दिखाता है संघ की कि वे मोदी और अमित शाह के कार्पोरेटी मॉडल से संतुष्ट नही है और एक आम स्वयं सेवक जिस तरह से आम गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों के बीच शाखा लगाकर काम करता है उसकी फीडबेक है कि अच्छे दिन के दुश्स्वप्न ने लोगों को भाजपा से दूर कर दिया है, पेट्रोल डीजल के भावों ने लोगों की कमर तोड़ दी है, और अब जब चुनाव एकदम सर पर है तो मोहन भागवत को भी यह समझ आ रहा है कि वे संघ के जमीनी कार्यकर्ता की ना उपेक्षा कर सकते है ना नजर अंदाज - जाहिर है इतने बड़े लोक और 130 करोड़ के विशाल जन समुदाय और वृहत्तर मानसिकता वाले विविध संस्कृतियों के देश और जन अपेक्षाओं को 2019 में संबोधित करने के लिए थोड़ा ही नही बल्कि पूरा सॉफ्ट होना पडेगा ताकि मोदी को या भाजपा को संघ के 100 बरस पूरे होने का जश्न मनाने के लिए सरकार नामक हतियार को पुनः केंद्र में लाया जा सकें.
यह संघ का मोदी और कार्पोरेट्स से मोहभंग का भी नाटक है जिसमे दिल्ली में करोडो रुपया खर्च कर विचार मंथन किया जा रहा है, भारत का भविष्य बहुत ही खतरे में है जिस तरह से वैश्विक अर्थ व्यवस्था और राजनैतिक समीकरण है उसके बरक्स भारत जैसे निर्भर देश की कोई तैयारी नही है और संघ को यह काम क्यों करना पड़ रहा है यह मेरी समझ से दूर की बात है जबकि नरेंद्र मोदी अपना जन्म दिवस और इस बहाने से अपनी जड़े और जमीन टटोलने के लिए काशी की गलियों में कबीर की भाँती लिये लुकाठी हाथ घूम रहें है - जाहिर है मोदी और अमित शाह इस समय भाजपा और संघ से एकदम अकेले है और सिर्फ अपने पद और अम्बानी अडानी और मोदी बंधुओं की संपत्ति के सहारे पुरी पार्टी को हांक रहें है.
यह मोदी से लेकर शिवराज, वसुंधरा, रमनसिंह , सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, उमा भारती और अमित शाह को भी समझ आ गया है कि विपक्षी एकता - बावजूद तमाम फूट और मतभेदों के, मजबूत है और अबकी बार क्लीन स्वीप नही मिलना है , इनके मोब लिंचिंग से लेकर बीफ, मन्दिर और कश्मीर के मुद्दे नहीं चलेंगे, ना ही 15 लाख जैसे टटपूंजिया स्लोगन, बाबा रामदेव ने एन डी टीवी के कार्यक्रम में खुले आम धमकी देते हुए कह दिया है कि महंगाई सरकार को खा जायेगी और इसलिए उन्होंने अपने को अलग कर लिया है साथ ही लगभग जेटली जैसों को चुनौती देते हुए कहा है कि यदि उन्हें सरकार पेट्रोल पम्प दे दें तो वे 30 से 40 रूपये में पेट्रोल डीजल बेचकर दिखा देंगे मेरा ख्याल है कि किसी सरकार के लिए इससे बड़ी शर्म की बात नही होगी . दुर्भाग्य यह है कि यह दावा देशप्रेमी अम्बानी या अडानी को करना ही नही था बल्कि अपने आउट लेट्स से बेचकर दिखाना भी था तो जनता उन्हें भी देवता मानती......
बहरहाल मोदी अमित शाह और पुरी कार्पोरेटी पूंजीपति भाजपा को मोहन भागवत के इस बयान को गभीरता से समझने की जरुरत है कि अलग ध्रुव पर खड़ा संघ आज कांग्रेस को क्यों महत्त्व दे रहा है - निश्चित ही राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद और राहुल के तूफानी हमलों के बाद संघ को समझ आ रहा है पर राफेल डील के दलालों को यह अभी समझ नही आ रहा है

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