दो दिन भोपाल के दो - एक साहित्यिक सम्मान समारोह में था, पूरे दो दिन संचालको ने भी भयानक ज्ञान बांटा, मुख्य समारोह में तो पूरे कार्यक्रम में संचालक नाम का बन्दा अकेला ही 40 से ऊपर मिनिट खा गया , इसके पहले छिंदवाड़ा, नागपुर, सेवाग्राम, मुंबई, बड़ौदा, मेरठ, दिल्ली, गांधी नगर, अहमदाबाद, बनारस, इलाहाबाद और जबलपुर में भुक्तभोगी रहा हूँ- भोत बुरे अनुभव है भिया - कसम से
एक अध्यक्ष बनें तो दो तीन कविताएं अपनी भी पेल दी, एक सम्मानित ने तो जीवन भर का ज्ञान और वेद ऋचाएं पढ़ा दी ! अरे भाई श्रोता, पाठक या दर्शक मूर्ख नही है, एक कवि सम्मेलन में मेरे सहित गजब के कवि थे मतलब जमावड़ा ऐसा कि हरेक नोबल का अधिकारी - तो अब कविता भी नही सुननी, कहानी तो सुनना ईच नई - बिल्कुल नही - साला 25 से 37 मिनिट कोई कहानी सुनाती है क्या , अपुन का भेजा डायवर्ट होता है मालिक और इनका पेट ही नही भरता पेल पेलकर भी
बहुत साल पहले देवी अहिल्या विवि सभागार में इंदौर के एक ख्यात तथाकथित लेखक और किसी बैंड वाले जैसा बहुरूपिया स्थानीय मुहल्ले के एलाउंसर टाईप बन्दे ने संचालन करते हुए हर वक्ता और कवि के बीच अपने ठिठके और थोथे ज्ञान का भौंड़ा प्रदर्शन शुरू किया , विदेशी लेखकों को उद्धत करना आरम्भ किया तो शशांक ने उसे मंच पर ही सबके सामने जमकर लताड़ा और कहा कि "हमने सब पढ़ा है - आगे बढ़" और इसी बुद्धिजीवी को बाद में और अभी भी कई बार इस तरह की लताड़ खाते देखा है पर यह अभी भी नही सुधरा है
और कालजयी वक्ताओं को तो समय का भान ही नही रहता, घर वाले उन्हें भेजकर मुक्त हो जाते है और ये श्रोताओं की बैंड बजा देते है, सम्मान अपनी जगह है पर इनके चक्षु सामने उबासी लेती भीड़, गपियाते लोग और हॉल के बाहर से आती भीड़ का अलभ्य कोलाहल भी सुन नही पाते, सरस्वती जिव्हा पर आ घायल हो बिराजति है और बाकी इंद्रियां तटस्थ होकर क्षीण हो जाती है - यह भी बहुत घातक है
मेरी व्यक्तिगत राय है कि 60 - 62 के पार लोगों को किसी भी आयोजन विशेषकर साहित्यिक आयोजन में बुलाना ही नही चाहिए - उन्हें बुलाओ पर श्रीफल देकर सबसे अंततिम पंक्ति में बिठा दो - दीवान बिछाकर ताकि वे लेटे रहें और चुपचाप खाँसते रहें , 60 पार के साहित्यकार हो, पत्रकार, फर्जी एक्टिविस्ट या कोई अन्य - इनके पास अतीत की कहानियों, निंदा, द्वैष और नए लोगों को कोसने के सिवा कुछ नही, हॉल या मंच पर बार बार पेशाब करने उठते है, सामने बिठाओ तो बात करते है और माइक दे दो तो छोड़ते नही है
साहित्यिक समारोह अब ज़्यादा प्रोफेशनल होने चाहिए बजाय लिजलिजी भावनाएं उकेरने के और ज्ञान सरिता बहाने के, मार्क्स हो , गांधी हो , अंबेडकर हो या गुरुजी गोलवलकर किसी भी वाद को सुनना ही नही, ना बोलना - ना सूँघना, ना सुनना - नईं मतलब नई - आप होंगे कोई भी तुर्रे खान,
अभी सेवाग्राम , जबलपुर और छिंदवाड़ा में तो कई लोग रात के 8 - 9 बजे तक झिलवाते रहें - फिर दूसरे दिन सुबह भी वही से चालू हो गए - बहुधा ऐसे कार्यक्रमों में संचालकों को उद्धेलित होकर झगड़ते और गाली गलौज पर उतरते भी देख लिया है, कई बार यह गुस्सा भोजन के समय टेबल पर निकलता है - एक बुजुर्ग किस्म के स्वयम्भू एक्टिविस्ट सह संचालक तो हाथापाई पर उतर आते है, गत 10 - 12 वर्षों से यह प्रवृत्ती लगातार बढ़ते हुए देख रहा हूँ , खुद अपडेट होंगे नही दूसरों को अपढ़ और मूर्ख समझेंगे - अपने को ज़्यादा पठन पाठन में संलग्न समझेंगें - अन्य को दारूबाज और निठल्ला और आत्ममुग्ध इतने कि सब सिर्फ और सिर्फ इन्हीं की मानें और हथियार लेकर जंग में कूद जायें - कुल मिलाकर गजब का खेल हो गए ये कार्यक्रम - निहायत ही फरेबी और मसखरे
अपुन ने तो 52 की इस परिपक्व जिंदगी के पड़ाव पर ही यह पक्का तय किया है जो भी साहित्य की या पत्रकारिता की सेवा करना है निजी तौर पर करेंगें - ना सुनने जायेंगें , ना पेलने - हाँ मिलना जुलना है मित्रों से तो पहले मिल लो या बाद में - पर झेलेंगे नई - भगवान , अल्ला, वाहे गुरु और जीसस की कसम
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जो सरकार पेट्रोल डीजल के भाव नही सम्हाल सकती तो ना उसे शासन चलाने का हक है ना दुनियाभर में हीरोपंक्ति करने का नैतिक अधिकार है
दुनियाभर के मूर्ख और विध्वंसक नेताओं को हमारे पवित्र त्योहारों पर अतिथि बनाकर बुला लेते है और बाद में हमारी मेहनत की कमाई का रुपया उन्हें सौंपकर हथियार हजार गुना दामों पर खरीदकर उपकृत करते है - ऐसे नेताओं का बहिष्कार किया जाना चाहिए
बहरहाल, यदि अन्तर्राष्ट्रीय भाव का मुकाबला करो और निकम्मों अपने बस में जो है टैक्स , वह तो कम करो - मसलन मप्र में शिवराज सरकार देश मे सबसे महंगा पेट्रोल डीजल बेच रही है, रोज जूते खा रहे है जनता से फिर भी अक्ल नही आ रही
ये सरकार नही सरेआम अपनी ही जनता को लूटने वाली संगठित भ्रष्ट व्यवस्था है जो जिले से लेकर दिल्ली तक विराजमान है और अब भी समझ नही आ रहा जब पूरा देश छात्रों, किसानों, जातीय और वर्गों के समूह सरकार के खिलाफ सड़कों पर है फिर भी इन तानाशाहों को दिख नही रहा
जनता के बर्दाश्त करने की एक सीमा होती है याद रखिये और सिर्फ प्रधान, जेटली जैसा कारपोरेट का गुलाम एवम कमजोर मंत्री और अकर्मण्य मुख्यमंत्रियों की फौज इस देश के नियंता नही है - जनता वास्तविक अर्थों में निर्णायक है और जब ये सड़क पर आ गई है तो तुम्हारे सारे प्रयास धरे के धरे रह जाएंगे - याद रखना तुम्हारा जीवन सिर्फ पांच साल है और बाकी फिर जनता के हाथ मे है
अम्बानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों के हाथों जो सरकारें बिक जाए उसे शासन करने का कोई नैतिक हक नही और दुखद यह है कि इन सरकारों ने पूरा देश और 130 करोड़ लोगों का जीवन दो लोगों के हाथों में गिरवी रख दिया, यह मत भूलो कि ये भी लक्ष्मी के गुलाम है और किसी के सगे नही, अपनी माँ कोकिला बेन को जो औलादें सम्मान नही दे सकी वो तुम्हारे हो जाएंगे, खैर परिवार समझने के लिए रोज जूझना पड़ता है गैस की रिफिल लाने से लेकर सब्जी वाले से भाव करने में और तुममे से अधिकाँश तो समाज के टुकड़ों पर पलें हो तो तुम क्या समझो महंगाई, संघर्ष और जिजीविषा का आख्यान
धिक्कार है तुमपर और शर्म आती है कि साधारण परिवारों से आये तुम लोगों की ऐयाशियों और रुपये की हवस इतनी बढ़ गई है कि समानुभूति, सहानुभूति और औकात भी भूल गए हो - गरीब लोगों की हाय लेकर कहां जाओगे जबकि तुम्हारे अपने लोगों को मरते सड़ते और मौत के लिए तरसते हुए सामने देख रहें हो कि जीवन बख्शता नही किसी को
शर्मनाक, धिक्कार और जनविरोधी नीतियों का विरोध
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एक भी बन्दा बता दो अम्बानी अडानी सहित इस देश में जो इस उबलते समय में ख़ुश तो दूर संतुष्ट हो
चलो भाजपा या संघी ही बता दो या कोई भक्त भी चलेगा
क्या राज्यपाल या राष्ट्रपति भी एक नागरिक होने के नाते ख़ुश है
अगर हां तो चलने दो जो चल रहा है और अगर नही तो फिर तख्त बदल ताज बदल दो यह भ्रष्टाचारी कुराज बदल दो
और अगर चाटुकारिता, चापलूसी और चारणी करना है तो बने रहो निठल्ले, नालायक और नाकारा और चाटते रहो तलवे , अपनी औलादों को विरासत में देने में तो कुछ रहेगा नही - बेहतर है गला घोंट दो उनका आज अभी
जिस देश में अपने निजी काम के लिए दोपहिया चलाना दूभर हो जाये और निकम्मा वित्त मंत्री रोज सुबह उठकर ब्रश करने के बजाय कमोड पर बैठकर पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ा दें वह देश रहने लायक नही बल्कि छोड़ने लायक है , ये जन प्रतिनिधि नहीं जन भक्षक है और ये सेवक नही कार्पोरेट्स के गुलाम है और टैक्स वसूलकर लोगों का संहार कर रहे हैं
धिक्कार, शर्मनाक और जनविरोधी सरकार
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हम लोग फ़ोटू हीचक समाज में रह रहें हैं और यह विडम्बना नही अब गर्व की बात है
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हिंदी के अतुकांत कवियों को तुक और तरन्नुम में कविताएँ सुनाने वालों को चार पाँच घंटे लगातार कविताएँ सुनाना चाहिये
तब सुधरेंगे
क़सम से फाँसी की सज़ा मत दो , बस बिठा किसी सम्मेलन में बिठा दो झकास , ससुर सब सुधरेंगे
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मोदी सरकार हर मोर्चे पर फेल, नाकाम और नाकारा साबित हुई है, जिस अंदाज ने कैबिनेट मंत्री ने पेट्रोल डीज़ल के भावों को लेकर टिप्पणी की है वह बेहद आपत्तिजनक, अकर्मण्य और लापरवाही का घिघौना वक्तव्य है
राष्ट्रपति को तुरंत प्रभाव से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से सलाह कर सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए
जिस अंदाज में जनता, कर्मचारी से लेकर लोकतंत्र का हर तबके को महंगाई और अव्यवथा ने परेशान कर दिया है वह बेहद गम्भीर और चौकानें वाला है
सरकार को भंग कर अम्बानी, अडानी से लेकर तमाम तरह के उद्योगपतियों और घरानों की चल - अचल सम्पत्ति को राजसात कर बैंक और देश की माली हालत को सुधारें जाने की महती आवश्यकता है
कांग्रेस और 21 दलों की समझ भी आज सामने आई है निहायत ही नासमझ, निकम्मे और नाकारा है विपक्ष जो सिर्फ चुनाव सामने देखकर जबरन का मुजरा कर रहा है जिसे कोई नही देख रहा
यदि यह समझ भी हमारे संविधान के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों में नही है तो मुआफ़ करें हमें इस देश के किसी भी तंत्र, पद और व्यवस्था पर विश्वास नही है
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एक मनमोहन सिंह थे, नेहरू, राजीव, गुजराल, वीपी सिंह, मोरारजी थे और एक ये है जो सरेआम जनता को विशुद्ध बेवकूफ बना रहे है
जिन्हें ना आंकड़ों की समझ है ना ग्राफ लिखने पढ़ने की अक्ल उनसे क्या आर्थिक सुधार की उम्मीद करें , ये सिर्फ संस्थाओं को बर्बाद कर देश के लोगों का जीवन नष्ट कर सकते है और कुछ नही
पर हम तो मोदी को ही वोट देंगे , हम पैदाईशी मूर्ख है और गंवार भी पिछली बार 31 % थे, इस बार 70% हो जाएंगे क्योकि खरपतवार बहुत तेजी से बढ़ती है , सुना नही था कि 600 करोड़ वोटर है देश मे
हर हर मोदी - घर घर मोदी
नमो नमो नमो नमो नमो का जाप करो
सदियों पुराने देश को बर्बाद कर लोगों का जीना मुश्किल किया
जो गणित के मान्य सिद्धांत बदल दें वह हिन्दू राष्ट्र और राष्ट्र के रखवाले महान है - आखिर शून्य के जनक है ना इनके पुरखें तो क्यों किसी के बाप की मानेंगें
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