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खरी खरी Posts from 1 May to 9 May 2018

तर्क कमजोर हो और आपकी भाषाई और बौद्धिक क्षमता बेहद कमजोर हो, आप बहस ना कर पाएं तो अपने लिखित कचरे में आतंक पैदा करने के लिए विदेशी लेखक, प्रहसन का उल्लेख कर दीजिये - बस आपको कुछ सिद्ध करने की जरूरत नही
आज दो तीन बौद्धिक टिप्पणियां देखी जो हद से ज्यादा लम्बी और झिलाऊँ थी तो बहुत साल पहले देवी अहिल्या विवि , इंदौर में हुए हिंदी के एक साहित्य आयोजन की याद आई जब शशांक ने उस सरकारी भोपू संचालक को डाँटते हुए कहा था भाषण मत दो, समय बर्बाद कर अपना ज्ञान मत पेलो हमने सब पढ़ा हैं, फालतू में विदेशी लेखकों के नाम लेकर आतंक मत फैलाओ, यह घटिया आदमी आज भी आतंक फैलाकर रखता है जिस पर तमाम तरह के चोरी के आरोप लगे है
पर उस सरकारी जी हुजूरी में भांड बनकर चाटुकारिता कर चुतियापा करने वाले घटिया लेखक से बड़े वाले आज मौजूद है, वो तो बेचारा निकम्मे और बेरोजगार विदेश पलट बेटे को अपना काम कर उसके नाम से छपवा कर हिंदी में स्थापित करने में लगा है क्या पता आज मरे कल दूसरा दिन, पर इन बाकी को क्या हुआ ?
***
चिंता मत करिए रोज़ रोज़ दुनिया भर में मुर्गे, बकरे, पाड़े, भैंसे, तीतर, सूअर कट रहे है सदियों से - कोई कम हुआ क्या ?
माना कि आप जबरजस्त भी है और जबरजस्ती भी है - एक दिन सूरज का उगना या डूबना रोक दीजिये, एक दिन चाँद को रोक लीजिये तो हम भी देखें कि कितना दम है
और नही तो औकात मतलब सीमा में रहिये और चुपचाप इस अस्तबल में समय गुजारिये, पगुराते रहिये, जुगाली कीजिये और निकल लीजिये
बहुत देखे है तुम जैसे धंधेबाज, प्रशासनिक अधिकारी, ज्ञानी, साहित्यकार, पत्रकार, समाज सेवी, ढोंगी, धार्मिक, संवेदनशील, कानूनविद, शिक्षाविद, आर्थिक जानकार, पर्यावरणविद, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक और जमीन से लेकर अंतरिक्ष मे काम करने वाले स्वार्थी हम्माल
समझ आया या रोज खोलना शुरू करूँ तुम्हारे उपबन्ध और नाड़े !!!
***
# भगवान विश्वनाथ की नगरी का हूँ, पान तो खाऊंगा
# हे ईश्वर कहने में हर्जा नही है
# भगवान ने आंखें आगे देखने के लिए दी है
- नामवर सिंह
[अभी अभी एनडीटीवी पर ]
जानते है हो ना प्रगतिशीलों और जनवादियों - इन ठाकुर नामवर सिंह को, याद यह भी कर लो कि ज्ञानपीठ अवार्ड देते समय किसके साथ खड़े थे मंच पर
हिंदी साहित्य के महापुरोधा को शत शत प्रणाम
कहिए मित्रों , कैसा लगा - यकीन ना हो तो यूट्यूब पर देख लो डाऊनलोड कर लो
और अब शुरू हो जाओ चलो बहस करो, आओ ज्ञान दो - पूरे होश में थे ठाकुर और एकदम सॉलिड मेमोरी के साथ , गाना भी गाये " मुड़ , मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के "
मैं तभी सोच रहा था कि Ravish Kumar ने लम्बी प्रस्तावना, नामवर होने के मायने और अंत मे मुस्कुराते हुए अपनी बात क्यों खत्म की। मैं उनके अवदान को कम नही आंक रहा , बस समझने की कोशिश कर रहा हूँ आखिर मेरी भी समझ ठीक ठीक ही रही है प्रगतिशीलों और जनवादियों को लेकर और इनके चरित्र को लेकर
[ जिन्हें हिंदी साहित्य, साहित्य की टुच्ची राजनीति, पक्षधरता और नामवर होने के मतलब की समझ नही और नामवरीय आलोचना, कहानी एवम कविता के प्रतिमान की समझ नही वे यहां रायता नही फैलाएं ]
***
दुर्भाग्य ही है कि एक झूठे शख्स ने भारतीय संविधान के नाम पर सत्य निष्ठा और देश की अखंडता बनाये रखने की शपथ ली है,अगर कोई संविधान के विरुद्ध जाकर काम करता है तो यह दंडनीय होना चाहिए
कितना शर्मनाक है कि कल हमारे पास रोल मॉडल की सूची में ऐसे झूठे, लफ्फाज और फुट डालने वाले लोग होंगे
[ कहानी का एक पात्र, मानसिक स्थिति में सड़क पर हुई हिंसा के दौरान भड़ास निकालते हुए ]

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जिन्ना को लेकर हंस में राजेंद्र यादव ने वीरेंद्र कुमार वर्णवाल लिखित एक लम्बी सीरीज छापी थी लगभग एक साल 1992- 94 की बात होगी
उसे पूरा पढ़ा था पर अब स्मृति दोष है ठीक से सन्दर्भ याद नही है
पर बात इसके आगे की है, आई टी सेल के इस मार्केटिंग में मत फंसिए, ये सब इस साल के 4 राज्यों के चुनाव और अगले बरस के चुनाव की पुख्ता तैयारी है क्योंकि इन प्रश्नों के जवाब नही है इनके पास
* संबित पात्रा की 28 लाख के पैकेज पर नियुक्ति - ये काम कब करता है हर समय तो गोबर लेकर लिपता रहता है 
* 370 का क्या हुआ
* मन्दिर बना
* एक के बदले दस सिर आयें
* समान आचार संहिता 
* कश्मीरी पंडितों की पुनर्बसाहट 
* 15 लाख
* डोकलाम विवाद
* कश्मीर में शान्ति प्रक्रिया
* 2 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष

ये तो चंद वो जुमले है जो लोकप्रिय थे, एक बार भाजपा का घोषणापत्र अमित शाह से लेकर संबित पात्रा को खोलकर दिखा दो, बाकी का तो नही पता पर यह पात्रा सुना डाक्टर है पढ़ तो लेगा लिखा हुआ बशर्ते उसके मुंह पर कसी हुई पट्टी बांधकर रख दी जाये। बाकी का पढ़ाई -लिखाई से कोई सम्बन्ध नही है। हाँ, कही भाषण देना हो, बकर करनी हो या किसी मोहल्ले में बीसी के चुनाव हो तो बन्दे हाजिर है जितवाने का पूरा ठेका लिया जाता है
जिन्ना , जिन्ना 
गांधी , गांधी
नेहरू, नेहरू 
इंदिरा, इंदिरा
गुरुजी, गुरुजी

इन नामों से परहेज कीजिये, पूछिये कि बाजार से पेट्रोल डीजल सामान कब सस्ता होगा, बैंक - कोर्ट - चुनाव आयोग - संविधान आदि पर फिर कब विश्वास कर पाएंगे
हमारी गंगा जमनी तहजीब कब पुनर्जीवित होगी
कब हम सुकून से बेखौफ होकर परिवार के साथ बाजार घूम पाएंगे
बलात्कार कब रुकेंगे
कब हम अपने बच्चों का सुरक्षित भविष्य इस "जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी" पर देख पाएंगे
यदि ये घोटालेबाजों का देश और जिम्मेदार कांग्रेसी, वामी, बसपाई, सपाई, तृणमूली या भाजपाई कोई जवाब नही दे पाए तो चुनाव का बहिष्कार करिये और ठेंगे पर रखिये सबको , आपको कौनसा बेल्लारी से खनन कर रुपया कमाना है या रेड्डी बंधुओं से रोटी बेटी का सम्बंध करना है

***
किसी युवा मित्र ने पूछ लिया कि हिंदी में ये क्यों हो रहा है - नामवर के बहाने से इतना विवाद
मुझे जो समझ आया वह यह है दोस्त कि
- पुरस्कारों ने दिमाग खराब कर दिया है
- सोशल मीडिया के लाइक और कमेंट ने कुंठा बढ़ा दी है
- विवि में पढ़ाना हिंदी वालों का अंतिम लक्ष्य हो गया है
- खेमेबाजी अब धंधा बन गई है
- व्यक्तिगत लिहाज, लाज , सम्मान और तहजीब बहुत खुला खेल हो गया है
- नये पुराने और छोटे बड़े का भेद उदारीकरण और बाजार ने खत्म कर दिया है
- नेट से गाली और तारीफ सेकेंड में पहुंच जाती है
- पढ़ने लिखने की संस्कृति खत्म हो गई है
- मैं ही महान बाकी सब घटिया तो क्यों किसी की कोई इज्जत करें
- त्वरित सम्बन्ध बनाते - बिगाड़ते खुले मंच उपलब्ध है आईये भसड़ मचाईये
- निठल्लों ने पत्रिकाएं शुरू कर दी, थोड़े पढ़े थे उन्होंने पोर्टल के धंधे और जो जीवन मे कुछ भी नही कर पाए वो वाट्स एप के प्रशासनिक अधिकारी बनकर सुबह से देर रात तक रौब गाँठने लगे
- दारुबाज वाम या दक्षिण पन्थ को लेकर बैठ गये
- कुछ ने प्रकाशन खोल लिया और कुछ चोरी चकारी के माल को कम्पाइल कर ऐतिहासिक किताबें लिखने लगे
- मीडिया में जाने के लिए साहित्य की छाती पर पैर रखे और कांधे इस्तेमाल किये
- सरकारी बाबू से सम्पादक बने महान लोगों की चरणों की धूल को माथे से लगाना पड़ा
- स्त्रियों के खुलेपन से आत्मा सिसकारी और उन्हें मोहपाश में बांधने के चक्कर मे आपस मे लड़ भिड़े
- नये और प्रौढ़ हो चुके भी ललकारते हुए घर मे से निकाल लाये और चौराहे पर खुद के साथ इन्हें भी नंगा कर दिया
- प्रकाशक से लेकर प्राध्यापकों और सम्पादकों ने अपने छर्रे , गुंडे और शोधार्थी पाल रखे है जो एक इशारे पर आपकी इज्जत उतार देंगे ,बलात्कार कर देंगे - मालिक को आंख उठाकर तो देखो जरा
पण्डित भीमसेन जोशी का एक भजन है
" जो भजे हरि को सदा, सोही परम पद पावेगा
देह के माला, तिलक और छाप, नहीं किस काम के,
प्रेम भक्ति बिना नहीं नाथ के मन भावे

दिल के दर्पण को सफा कर, दूर कर अभिमान को,
ख़ाक को गुरु के कदम की, तो प्रभु मिल जायेगा

छोड़ दुनिए के मज़े सब, बैठ कर एकांत में,
ध्यान धर हरि का, चरण का, फिर जनम नही आयेगा

दृढ़ भरोसा मन मे करके, जो जपे हरि नाम को,
कहता है ब्रह्मानंद, बीच समाएगा "

और अंत मे प्रार्थना [उदय भाई Uday Prakash से मुआफ़ी सहित ]
कुल मिलाकर एक हमाम है जहां आईने ही नही और दीवारें टूट गई है लिहाज़ा सब अपना जलाकर किसी को पनपने नही देंगे , कबीर तो अपना सब कुछ जलाकर निकला था, ये अपना स्विस बैंक में जमाकर दूसरों का जलाने निकले है, यह भी पढ़ेंगे सब पर कन्नी काटकर सब निकल लेंगे क्योकि अपना अक़्स कही ना कही इसमे नजर आयेगा या अपने आका का, जाहिर है अपनी माँ को डाकन कोई नही कहता
***
आशुतोष, रजत, सुधीर, पुण्य प्रसून, दीपक, अर्नब, सुमित, बरखा, आदि लगभग चमचमाते मीडिया के समकालीन और गहरे यार दोस्त है
जब चलना शुरू किया था तो नौकर थे चैनल्स के, धीरे धीरे परिपक्व हुए, विचारधारा पकड़ी और आईकॉन बनें
लगभग सब लोग शिखर पर है और कम से कम औसत बुद्धि वाला भारतीय इन सबको जानता है, पहचानता है और इनकी अक्ल, बुद्धि, वाक चातुर्य और समझ से भी वाकिफ़ है
इनमे 19 - 20 का ही अंतर होगा अर्थ, प्रतिष्ठा और पहुंच में, रवीश भाई थोड़ा इसलिये कुलबुला रहे है इन दिनों कि वरिष्ठ है, जनता का प्यार भी है पर ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा नही है अभी तक जो एक स्टेटस सिम्बोल है
थोड़ा गौर से देखेंगे तो दो माह के प्रपंच यही सब कुछ कहते है, आखिर थानवी जी को भी सुरक्षा लिहाज से पत्रिका में जाना ही पड़ा ना ताकि एक बैनर बना रहे छत पर
ख़ैर , कुछ तो लोग कहेंगे, रवीश भाई लगे रहो, आप मेरे अभी भी बेस्ट एंकर हो, और यह भी विश्वास है कि मीडिया में रहकर हिंदी में नए शब्द और मुहावरे आप ही लाओगे ! हिंदी में तो जलेस, प्रलेस और जसम आपस मे ही लड़ भिड़कर मर जायेंगे , जिन्हें प्रेस विज्ञप्तियां लिखने के बजाय जारी करने का काम आता है वे कुंठित , जड़ और बूढ़े मीडिया की समझ से परिपूर्ण बताते है, जो जीवनभर चाकरी करते रहें और अब पेंशन खाकर जिंदा है वे प्रतिबद्धता की बात करते है - ख़ैर, लाल सलाम
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मोदी को कुत्ते बहुत प्यारे है कभी गाड़ी के नीचे कुचलते है कभी देशभक्ति सीखते है
जनता के सेवक है या कुत्तों के 
मुद्दा जनता की समस्या है या कुत्तों की
चुनौती कुत्तों से है , काँग्रेस से
सत्ता जीतना कुत्तों के लिए है, रेड्डी बंधुओं के लिये
राहुल से डर है या कुत्तों से
देशभक्तों मे भक्ति कम है या कुत्तों में
भाषण देते है या कुत्तों को टारगेट करते है
जनता भाषण समझती है या ....
56 इंची सीना है तो कुत्तों की जरूरत क्यों पड़ रही
राहुल पप्पू है तो कुत्तों का साथ क्यो ले रहे

अपने आसपास घिरे लोगों से तो परेशान नही बेचारे
जब अक्ल, बुद्धि या तर्क खत्म हो जाये तो वाहियात बोल ही मुंह से निकलते है
इतिहास याद रखेगा कि एक विश्व स्तर की चाह रखने वाला प्रधान सेवक कुत्तों से ऊपर नही उठ पाया और विपक्षियों को ठिकाने लगाने के प्रयास में कुत्ते बिल्ली तक उतर आया
हम अपने बच्चो को कभी नही कहेंगें कि एक था मोदी , यह कहेंगें कि भारत मे 5 साल लूट का खेल चला और संविधानिक संस्थाओं की बर्बादी दो व्यापारियों ने की जो गुजरात से थे
देश के 126 करोड लोग लेखक मीडिया कर्मी बुद्धिजीवी और धार्मिक लोग नपुंसको की तरह चुप थे और सब सह रहे थे संविधान के प्रति जबाबदारी निभाने वालो को भी गैस चेम्बर में रखा जाता था और रेड्डी सरीखे लोगों को विधायिका में लाया जाता था

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