क़बीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक
बर्तन में ही भेद है, पानी सब मे एक।
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सौ रुपये में मेघना गुलज़ार का देश भक्ति वाला इंजेक्शन कारगर नही
जीवन, जासूसी, आई बी, रिश्ते, हत्याएं, योजना, प्रशिक्षण और पश्चाताप इतना आसान नही होता
अपने पिता की कुछ कालजयी फिल्मे ही देख लेती पहले तो शायद इतना आसानी से चलती फ़िल्म में पूर्वानुमान लगाना आसान ना होता
नायिका प्रधान फ़िल्मे भारत मे कोई नई नही है पर आलिया भट को प्रधान बनाकर, भावनाओं का ज्वर कूटकर भर देने से ना फिल्मे इतिहास बनती है और लोकप्रिय
पिछले डेढ़ माह में देखी हिचकी, अक्टूबर, बियॉन्ड द क्लाउड्स और राजी में से यह सबसे रद्दी फ़िल्म थी
गुलज़ार साहब बिटिया को स्थापित करिये पर हड़बड़ाहट में नही
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ये उषा बाई थोरात है - 47 वर्ष की है, तीन साल पहले पति की मृत्यु हो गई थी, तीन लड़के और एक लड़की है।
बीपीएल कार्ड है- कई वर्षों से पर क्या लाभ मिला आज तक कुछ नही, अनुसूचित जाति से आती है पर इसका ना उन्हें लाभ मिला ना बच्चों को - कोई छात्रवृत्ति नही ना नौकरी और ना आवास योजना में लाभ
बेटी की शादी के लिए देवास में मुख्यमंत्री सामूहिक कन्यादान योजना में पंजीयन करवाया था पर रूपये नही दिए तो रिजेक्ट कर दिया और उन्हें 20 % ब्याज पर कर्ज लेकर ब्याह करना पड़ा
बेटे तीन है मजदूरी करते है कभी काम मिलता है कभी नही और अब कोई उम्मीद भी नही कुछ काम मिलने की
उषा बाई पिछले 22 वर्षों से हमारे घर और कॉलोनी के कई घरों में काम करती है हर दिन एक फार्म लेकर खड़ी होती है कि " भैया - ये नई योजना आई है इसका फार्म भर दो, बैंक में ये हो गया, राशन चार माह से नही मिला, बेटी की डिलीवरी में अस्पताल में रुपये मांग रहे है"
मैं तंग आ जाता हूँ उसके फार्म भरते भरते - क्योकि फार्म भरकर कहानी खत्म नही होती - वो हर हफ्ते मोबाइल दे देती है टूटा फूटा कि देखो इसमें कोई सन्देश आया क्या ?
आज चुनाव परिणाम देख रही थी टीवी पर तो उबल पड़ी मैने कहा फ़िल्म बना लूँ तो बोली - बनाओ और सबको दिखाओ कि हम गरीबों के साथ क्या हो रहा है
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"मुद्दे शौचालय जैसे भी नही बचे अब..... गन्दगी है पूरा परिवेश बजबजा रहा है "
तो क्या दिमाग़ लगाइएगा
अभी आदि बहुत दुखी था कि ये क्या हो गया ,मैंने कहा दुखी मत हो , हम सब भ्रष्ट है और कुछ अच्छा होना हमें सुहाता नही
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क्योटो में मजा आया होगा ना ठाकुर, गरीब गुर्गों की मौत से, चलो ट्वीट लिखो, निलंबित करो, मुआवज़े की घोषणा करो
कांक्रीट का पुल गिरा, शिंजो आबे को बुलाओ , झूला झुलाओ, गंगा आरती करो, मंगल गान गाओ, सखी साजन घर आया
शर्मनाक है और प्रधान सेवक के लोकसभा क्षेत्र में लापरवाही का इससे बड़ा नमूना क्या हो सकता है
अभी हाल ही में बनारस यात्रा से लौटकर मैंने लिखा था कि स्टेशन से लेकर पूरे शहर में गन्दगी से लेकर अवैध निर्माण पार्टी विशेष के झंडे लगाकर किये जा रहे है और किसी का ध्यान नही है
स्मार्ट सीटी की झांकी है, पूरा देश बाकी है
गए क्या प्रधान सेवक या आध्यात्म पुरुष योगी
कर्नाटक की जोड़तोड़ , तोड़फोड़ से फुर्सत मिलें तो ना, मेरा उद्देश्य सत्ता पाना है बाकी बातों से मतलब नही है
क्योटो बनाने चले थे - एक पुल बनाने में 100 से ज्यादा लोगों को दबा दिया और कई मर गए
शर्म मगर उनको आती नही है
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कुल मिलाकर हम मंडी, मीडिया, प्रशासन, वेश्या और बाकी सबको कोसते है कि बिकाऊ है पर चुने हुए विधायक, सांसद और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से बड़ा और घटिया माल कोई नही भारत मे जो बिक जाता हो
बन्द करो चुनाव और हमारे पसीने की कमाई का उजाड़ना
सरे बाजार मिश्र और यूनान के गुलामों की तरह बिक जाए - उन्हें जूते मारो
कौन आजाद हुआ, किसके माथे से स्याही छूटी !
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अब सब कुछ साफ है ये सत्ता चाहते है किसी भी तरह से। मप्र , छग और राज के चुनावों में शुचिता पर अभी से प्रश्न है क्योंकि राज्यपाल नामक कठपुतली इन्ही की है। मप्र में आनंदी पटेल तो खुलेआम कहती है कि ऐसे काम करोगे तो भाजपा को वोट कैसे मिलेंगे
अब तो मोदी शाह सम्भावित मोटे मुर्गों से सीधा रुपया लेकर शपथ दिलवा दें क्योंकि करोड़ों रुपये बर्बाद करने का कोई अर्थ नही है । इसी के साथ 2019 के चुनाव कितने भयावह होंगे यह समझना आसान है।
एक ही तरीका मुझे समझ आता है कि सी जे आई के ख़िलाफ़ महाभियोग पुनः लगाया जाये संयुक्त विपक्ष द्वारा और जस्टिस लोया के केस की कार्यवाही फास्ट ट्रैक में चलाई जाकर दोषी को अंदर किया जाये ताकि देश थोड़ा राहत महसूस करें।
मूल पर प्रहार किये बिना कुछ नही होगा और पौराणिक कथा के अनुसार सात पहाड़ों के पार जाकर तोते के प्राण पखेरू उड़ाए बिना कोई काबू में आने वाला नही , कितने शर्म की बात है कि मायावती, ममता, वृंदा करात, राहुल, अखिलेश, तेजस्वी, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य जैसे युवा और कद्दावर नेता समस्त वरिष्ठ नेता जिसमे प्रकाश करात से लेकर कमलनाथ या मनमोहन सिंह तक के लोग मायूस होकर घर बैठ गए और लोकतंत्र की हत्या होते देख रहे है
सबसे ज्यादा दुर्भाग्य शाली है भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य जो मोदी शाह की जोड़ी के तमाशे को देख रहे है और असहाय महसूस कर रहे है। मुझे लगा था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में मोहन भागवत जी, सुरेश भैया जी या राम माधव जी जैसे बुद्धिजीवी है जो वास्तव में बुद्धिजीवी है जो दृष्टि भी रखते है और नब्ज भी पहचानते है - वे भी कितने असहाय हो गए है - उनके जमीनी काम, समर्पण और कड़े श्रम पर आस्था थी - वैचारिक मतभेद अपनी जगह पर संघ की सांगठनिक क्षमता को नकारा नही जा सकता, आज पूरा संघ इन दो लोगों की जिद और दादागिरी के सामने कितना बौना हो गया है और अब संघ किन कामों, संस्कृति और विकास को लेकर जनता के सामने लगातार दो वर्षो तक जाएंगे। पार्टी में सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी से लेकर जावड़ेकर या अन्य कोई क्यों नही बोलता, रोकता या टोकता इन दो को या सब अपनी अस्मिता को लेकर हैदस में है
दुर्भाग्य है कि बाबा विश्वनाथ की नगरी में हाहाकार है, जिस गंगा माई की कसम लेकर नैतिकता, ईमानदारी और संविधानिक आस्थाओं की शपथ मोदी ने ली थी , जिस पार्टी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाया था आज वह कितनी तुच्छ महत्वकांक्षा और लोभ में फंसकर रह गई है, दीनदयाल उपाध्याय या गुरुजी या हेडगेवार जी का यह स्वप्न था ? क्या यही कुल मिलाकर जनसंघ से भाजपा तक का सफर और पैराडाइम शिफ्ट था - अगर हां तो, भाजपा के शीर्ष लोगों को और भक्त जनों को विचार करना चाहिए जिनमे अभी भी थोड़ा दिमाग़ शेष है
फिर कहता हूँ कि आने वाली पीढ़ियों को हम कभी नही कह पाएंगे एक था मोदी
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