कर्णाटक चुनाव और त्वरित प्रतिक्रियाएं
गम्भीरता से सोचिये कि जिस येदियुरप्पा को मोदी का करीबी संगी साथी मीडिया ने सिद्ध किया था उनके साथ क्या किया पार्टी ने
दो घण्टे पहले एक साथी के साथ लोकसभा का इस्तीफा ले किया और ठीक 4 बजे मुख्य मंत्री का पद भी छिनवा लिया
आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी से लेकर तमाम केबिनेट मंत्रियों के भी क्या हाल बनाकर रखे है किसी से छुपा नही है
वही कांग्रेस में है - अपने पिता की आयु के कपिल सिब्बल से लेकर गुलाम नबी आजाद, शीला दीक्षित और तमाम वरिष्ठ कांग्रेसी 47 साला राहुल के सामने नत मस्तक होते है
इधर अखिलेश, मायावती, ममता, वृंदा करात या प्रकाश करात या दक्षिण में कुमार स्वामी या अन्य पार्टियों मे भी यही खेल और परंपरा है
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि सामन्तवाद और जड़ता हमारे संस्कारों में है और समाज मे है रची बसी इसलिए हम जाति, धर्म और सम्प्रदाय को पोषित करते है और ठीक इसके विपरीत इन्ही से ये दासता और गुलामी सीखते है
संविधान में बराबरी, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के सिद्धांत और मूल्य 26 जन 1950 से लागू है पर हम ना मानते है और ना पालन करते है
और तमाम पार्टियां लोकतंत्र की दुहाई देते हुए जनता जनार्दन को बेवकूफ बनाकर ज्ञान देती रहती है
राजनीति में कोई सगा नही और समय आने पर सबके भीतर बैठा सामंत जागता है और येदियुरप्पा जैसे कर्मठ और प्रतिबद्ध व्यक्ति को कही का नही छोड़ता
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राहुल गांधी ने अभी बहुत ही सभ्य तरीके से शानदार जवाब दिया और बता दिया कि मोदी और भाजपा की पूरी मशक्कत - जो उन्हें पप्पू साबित कर रही थी, बर्बाद हो गई। उन्होंने स्पष्ट शब्दों ने कहा कि भ्र्ष्टाचार मतलब प्रधानमंत्री है, किसी 56 इंची छाती की हवा निकालने के लिए दो मिनिट का भाषण पर्याप्त था, साथ ही अमित शाह को हत्या का अभियुक्त [ Murder Accused ] भी कहा
हिम्मत को सलाम
मोदी जी को आत्ममंथन करना चाहिए और समझना चाहिए कि उनके आसपास के लोग ही उनके सबसे बड़े दुश्मन है
भाजपा को अब हवा में उछलने के बजाय वस्तु स्थिति समझे और काम करें
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गोवा, मणिपुर, मेघालय और बिहार के साथ मप्र, राज और छग में स्थितियां बिगड़ने और सत्ता हाथ से जाने के बजाय बूढ़े येदियुरप्पा की कुर्बानी सौ गुना बेहतर है
अमित शाह का गणित संतुलित है
सुप्रीम कोर्ट की खोई हुई प्रतिष्ठा भी लौट आई , रुपया बच गया और अब मप्र, छग और राजस्थान में जम के चुनाव लड़े जाएंगे
कुल मिलाकर भाजपा की रणनीति सफल रही है
मुबारक अमित शाह और नरेंद्र मोदी जी
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अंग्रेजी तो साली सीख ही जाते रोते झीकते
दक्षिण भारत की मलयालम की थोड़ी सी समझ है थोड़ी सिंधी और बहुत थोड़ी बांग्ला भाषा की, पर अपने ही देश की अन्य भाषाओं को नही सीख पाया खासकरके दक्षिण भारत की किसी भाषा पर अधिकार नही।
सिर्फ मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और मप्र छग की कुछ लोक भाषाएं आती है जिनमे भी सिर्फ मालवी में ही पारंगत हूँ
आज येदियुरप्पा का भाषण समझ नही आ रहा तो अफसोस हो रहा है
एक विषय कम कर दो पर चार पांच भाषा फार्मूला शिक्षा में लागू करो यार, नही सीखना फ्रेंच, जर्मन या रशियन साला मुझे कौन बाहर जाना है पर अपने देश और मातृभूमि की भाषाएं तो सीख लूँ कम से दो और दक्षिण भारतीय भाषाएं , समय कम है मेरे पास अब
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हारेंगे दोनो बल्कि तीनों ही
भाजपा के लिए शर्म थोड़ी ज्यादा होगी क्योंकि नंगई और रुपये का खेल सामने आ जायेगा, गोआ मणिपुर और बिहार के लोगों को अपने कर्णधारों और नीति नियंताओं पर भरपूर शक होगा
मप्र, राज और छग में लोगों को इनकी नियत पर शक ही नही होगा बल्कि यकीनन वे वोट देने से भी कतराएंगे और वोटिंग प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से गिरेगा
कांग्रेस को बैठे ठाले एक नरेटिव्ह मिल जाएगा
इस सबका नुकसान यह है कि हम अपने जन नायकों , कोर्ट और मीडिया पर से बचा खुचा विश्वास भी खो देंगे और कभी गर्व से सिर नही उठा पाएंगे कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र है
एक दो व्यक्तियों की महत्वकांक्षाओं ने इस महान देश को कितना नीचे गिरा दिया जिसकी कोई सजा नही हो सकती
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विश्वास मत हासिल करने से
सत्ता हासिल होती है
विश्वास नही
Naresh Saxena जी से मुआफ़ी सहित
[ जिन्हें इसका सन्दर्भ नही मालूम वे नरेश जी की यह कविता पढ़ लें ]
पार
पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती
नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना
नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ लोहा-लंगड़ पार होता है
कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती
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