कुछ लोग और मित्र कुछ ज्यादा ही सीमा से बढ़ रहे है और मेरी निजी जिंदगी में दखल डालकर ज्ञानी बन रहे है और प्रमाणपत्र बाँट रहे है
निवेदन है सभ्य भाषा मे कि सीमा मतलब औकात में रहें, आप जो भी हो प्रशासनिक अधिकारी, मास्टर, लेखक , डाक्टर, वकील, बाबू, वैज्ञानिक , पत्रकार, दोस्त या कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे
हजार बार कह चुका हूँ कि फेसबुक पर अरबों खाते है और यहाँ मैं आपसे पीले चावल देकर विनती नही कर रहा कि ये सब पढ़े और कमेंट करें
मेहरबानी करके अपनी घटिया राजनीति, कूड़ा कचरा और ज्ञान अपने पास रखिये मुझे आपके ज्ञान और सुझावों की जरूरत नही है मैं जैसा भी हूँ अधकचरा या अज्ञानी , हूँ आपको सीखाने की जरूरत नही है
आइंदा प्रमाणपत्र लेकर आएं तो भाषा और भाषा के पर्याय अच्छे से आते है
समझ लीजिए, कहते है ना अपनी इज्जत अपने हाथ
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लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा के अध्यक्षीय पद संविधानिक होते है पर इन पर विधायकों या सांसदों को नही - किसी और भले से व्यक्ति को ढँग के कारगर तरीके से बिठाने की व्यवस्था होनी चाहिये
मोटा भाई , अमित भाई जी ध्यान रखना नया संविधान बनाओ तब,भले ही वह प्रशासनिक सेवा से आये या संघ से या किसी अन्य ग्रह से पर विधायक सांसद तो नई होना चईये
और हाँ इस सुझाव के दस करोड़ मेरे खाते में डलवा देने का भिया
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जलेस, प्रलेस, जसम और इप्टा जैसे संगठन खुद एक नही हो सकते और समाज को एक करने की बात करते है
जोशी,शर्मा, तिवारियों से घिरे इन संगठनों ने सिर्फ भेरू महाराज टाईप देवता स्थापित किये है जो किसी भी काम के नही ये भेरू महाराज अब किसी भी कार्यक्रम में जाकर विमोचन, प्रवचन देकर दारू खत्म करने लायक ही बचे है , इन संगठनों ने इन्हें इष्ट मानने वालों की और चरण धोकर पीने वालों की फौज ही तैयार की है - इन्तज़ार है कि अब इनकी मूर्तियां और लग जाये
आज इन संगठनों के लोग और प्रगतिशीलता के नाम पर कूड़ा परोसने वाले कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और आलोचक मुंह छुपाकर बिलों में दुबके बैठे है और नौकरी बजा रहे है सरकारों की, कार्पोरेटस या मीडिया घरानों की
यही हाल वामी और इनके मसीहाओं का है। जमीन छोड़कर लिजलिजे हो गए है और रीढ़ की हड्डी भी बेच खाये है
निर्लज्जता का चोगा ज्ञानान्ध लोगों ने नही पहना है इन सबने भी पहनकर बुर्का ओढ़ लिया है ,बात करने जाओ तो बेशर्मी से खिसियाकर हंस देंगे, मोबाइल नम्बर मांगकर किसी वाट्स एप समूह में जोड़ लेंगे और अंत मे चन्दा मांग लेंगे
धिक्कार है इन सब पर
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AS I said I have appx 35 % Friends from journalism field in this virtual world, most of them are only FB friends and not more than that.
I have observed like in NGOs we keep changing our jobs and keep getting hikes ( used to, not now) Here also I see every day some or other has taken up new job with new port folio and the guys pretend to be more serious and self centered. They stop reading others and self boasting becomes a ritual very often rather daily.
Strange thing is that they would come up with all stupid stories and funny jokes of previous Media House and baseless criticism of Ex Bosses who were then Dons and these guys were so brave that they coped up with most stupid Boss of the Media World with their intellect and sharp mind - funny isin't? .
This is really irritating, you dont have ethics and any morale while serving here and there, following like blinds and writing - speaking all was worthless and when you are out or kicked out badly for your misconducts, suddenly your Morale Boost up and you start writing and praising New Environment and Boss. Such a shameless characters we have developed in Media.
This is really shit and embarrassing, youngsters should not fall in such traps of these idiots who are really good for nothing.
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कल इंदौर में एक दानव ने चार माह की बिटिया के साथ बलात्कार किया और सिर पटककर हत्या कर फेंक दिया
सराफा थाने का ए एस आई कहता है बच्ची की माँ को सुबह 430 बजे कि "दोपहर 12 बजे जब टी आई साहब आएंगे तब आना एफ़ आई आर तब दर्ज होगी"
यह वही मराठा साम्राज्ञी अहिल्या देवी का चौक है राजवाड़ा - जहां रानी अहिल्या ने प्रजा की शिकायत पर अपने उद्दंड बेटे को हाथी के पांव से कुचलवा दिया था
टी आई क्यों नही थे थाने पर यह जवाब कोई देगा
कितने और पतित होंगे अभी और, व्यवस्था में कितना घटियापन आएगा और
क्या इंसान है हम या जानवर में तब्दील हो गए है - यह प्रश्न हमें रोज पूछना चाहिए
शर्म आती है अपने इंसान होने, तरक्की और सुशिक्षित समाज का हिस्सा कहलाने पर
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किस मुगालते में थे
उप राष्ट्रपति भी तो देश भक्त ही है
सीमा से बाहर जाकर काम करना सरकारों का महत्वपूर्ण दायित्व बन गया है
बदल दो यार संविधान बदल ही दो , राष्ट्रपति से लेकर पंच तक के पावर दे दो प्रधान सेवक को - बशर्ते योग्य हो, समझ हो, पढ़ा लिखा हो और कुर्सी पर बैठकर देश मे देश के बड़े लोगों के लिए काम करें और चौराहों पर भाषण देकर निर्णय लें
और साले इन गरीब निकम्मों और हरामखोरों को गोबर गैस के चेम्बर में डालकर निपटाओ एक झटके में
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[ क्या वास्तव में मूल कविता में इतना ही प्रचंड आशावाद और सीख है ब्रेख्त की कविता में ? अनुवाद पर प्रश्न नही बल्कि कविता पर है, यह इतिहास बताता है कि आततायी हर युग में रहे है और कवि - कविता की भूूमिका ज़्यादा बड़ी रही है तानाशाह से। हमें यह तय करना होगा कि हम किसी मुश्किल समय मे नही यह एक सामान्य घटना क्रम है और यह भी गुजर जाएगा ]
मित्र मणि मोहन का अनुवाद और कालजयी कवि बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता
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आने वाली पीढ़ियों से
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सच तो यह है
कि मैं एक अंधेरे समय मे रहता हूँ ।
एक सीधा सादा शब्द मूढ़ है ।
एक चिंतामुक्त चेहरा
दिखा रहा है लापरवाही
जो हँसता दिख रहा है उसके पास
अभी तक नहीं पहुंची है
कोई भयानक खबर ।
ओह , यह कैसा समय है
जब पेड़ों के बारे में बात करना
लगभग अपराध है
क्योंकि इसमें शामिल है खामोशी
अन्याय के खिलाफ !
वो जो सड़क से गुजर रहा है चुपचाप
अपने दोस्तों से दूर तो नहीं जा रहा
किसी मुसीबत की तरफ ?
यह सच है कि मैं कमाता हूँ
अपनी रोजी रोटी
पर भरोसा करो : यह मात्र एक संयोग है
मुझे यह कतई अधिकार नहीं
कि तृप्त होने की हद तक
अपना पेट भरुं
यह भी संयोग ही है
कि बचा हुआ हूँ अब तक
( भाग्य के सहारे ) ।
वे कहते हैं : खाओ पियो , मस्त रहो
कि तुम भाग्यशाली हो
पर मैं कैसे खा - पी सकता हूँ
जबकि मेरे सामने रखा खाना
छीना गया हो भूखे लोगों से
और मेरा पानी का गिलास
किसी प्यासे का हो
फिर भी मैं खाता और पीता हूँ ।
मैं बहुत खुशी के साथ ज्ञानी होना चाहूंगा ।
पुरानी किताबें हमें यह ज्ञान देती हैं :
दुनिया के झगड़े टँटों से दूर रहो
अपने थोड़े से समय को मस्ती के साथ जियो
किसी से मत डरो
हिंसा से दूर रहो
बुराई के बदले अच्छाई दो -
ज्ञानी जन अपनी इच्छाओं के पीछे नहीं भागते
बल्कि उन्हें भूलने का उपक्रम करते हैं
पर यह सब मुझसे नहीं होता
सच तो यह है
कि मैं एक अंधेरे समय मे रहता हूँ ।
Comments
कमाल का लेख....
👏👏👏👏👏👏👏👏
कोटि - कोटि नमन आपको नमन आपकी लेखनी को