Skip to main content

अखबारों के साथ कचरा 25 April 2018

सुप्रभात
रोज अखबारों के साथ आने वाले ब्रोशर, पैम्फलेट्स और पर्चे बढ़ते जा रहे है।
स्कूल के, समर कैम्प के, होजयरी सेल से लेकर डाक्टर, दवाई, गुप्त रोगियों के इलाज, अस्पताल, डायमंड ज्वेलरी और ना जाने क्या क्या
देखता हूँ सिर्फ सुबह ही नही, दिन भर लड़के हर एक घँटे में किसी बाबा का, प्रवचन का या चंगाई सभा का पर्चा घर मे फेंक जाते है
सब करो भैया, खूब बेचो शिक्षा, स्वास्थ्य, हीरे जवाहरात, ब्यूटी की सामग्री, प्रवचन और वो सब भी जो किसी ग्रह पर ना बिकता हो
पर इन पर्चों से कितनी ग्राहकी बढ़ती है 
अभी परसो ही "अर्थ डे" सेलिब्रेट किया था ना
5 जून को फिर पर्यावरण दिवस का श्राद्ध है 
जंगल की कमी रोज रोते हो न

तो यार ये बताओ ये 10 से लेकर 30 जी एस एम के कागज की बर्बादी क्यो कर रहे हो
क्यों रंग बिरंगी छटाओं में बिखरे पर्चे रोज बांट रहे हो एकाध दिन ठीक है, साला रोज तुम्हारे स्कूल और कोचिंग के विज्ञापन देखकर समझ आ गया है कि तुम सबसे बड़े मूर्ख हो जिसे विज्ञापन कर जुगाड़ लगाना पड़ रही है
भले मानस इस पृथ्वी को बचा लो मत भेजो मेरे इसके या उसके घर, एक बार पता तो कर लो कि कोई सम्भावित ग्राहक , वो भी पटने योग्य, है या नही। मेरे घर स्कूल जाने की उम्र का कोई नही और अमूमन 12 से 15 पर्चे रोज़ आ जाते है। माह में कम से कम दो किलो की रद्दी तो आप दे रहे हो
सोच रहा है शहर में पर्चे बीनने का काम शुरू कर दूं और मजे से रोज बेचूं 2- 4 लड़कों को रोजगार दे पाऊंगा और मैं भी बैठकर खाऊंगा
भगवान के लिए कचरा भेजना बन्द करो जिम्मेदार लोगों, अपने लिए या मेरे लिए ना सही पर पेड़ काटकर और सत्यानाश मत करो - यह तो पता होगा ना कि कागज़ पेड़ों से बनता है अगर यह समझ नही तो घर बैठो यार

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही