सुप्रभात
रोज अखबारों के साथ आने वाले ब्रोशर, पैम्फलेट्स और पर्चे बढ़ते जा रहे है।
स्कूल के, समर कैम्प के, होजयरी सेल से लेकर डाक्टर, दवाई, गुप्त रोगियों के इलाज, अस्पताल, डायमंड ज्वेलरी और ना जाने क्या क्या
देखता हूँ सिर्फ सुबह ही नही, दिन भर लड़के हर एक घँटे में किसी बाबा का, प्रवचन का या चंगाई सभा का पर्चा घर मे फेंक जाते है
सब करो भैया, खूब बेचो शिक्षा, स्वास्थ्य, हीरे जवाहरात, ब्यूटी की सामग्री, प्रवचन और वो सब भी जो किसी ग्रह पर ना बिकता हो
पर इन पर्चों से कितनी ग्राहकी बढ़ती है
अभी परसो ही "अर्थ डे" सेलिब्रेट किया था ना
5 जून को फिर पर्यावरण दिवस का श्राद्ध है
जंगल की कमी रोज रोते हो न
तो यार ये बताओ ये 10 से लेकर 30 जी एस एम के कागज की बर्बादी क्यो कर रहे हो
क्यों रंग बिरंगी छटाओं में बिखरे पर्चे रोज बांट रहे हो एकाध दिन ठीक है, साला रोज तुम्हारे स्कूल और कोचिंग के विज्ञापन देखकर समझ आ गया है कि तुम सबसे बड़े मूर्ख हो जिसे विज्ञापन कर जुगाड़ लगाना पड़ रही है
भले मानस इस पृथ्वी को बचा लो मत भेजो मेरे इसके या उसके घर, एक बार पता तो कर लो कि कोई सम्भावित ग्राहक , वो भी पटने योग्य, है या नही। मेरे घर स्कूल जाने की उम्र का कोई नही और अमूमन 12 से 15 पर्चे रोज़ आ जाते है। माह में कम से कम दो किलो की रद्दी तो आप दे रहे हो
सोच रहा है शहर में पर्चे बीनने का काम शुरू कर दूं और मजे से रोज बेचूं 2- 4 लड़कों को रोजगार दे पाऊंगा और मैं भी बैठकर खाऊंगा
भगवान के लिए कचरा भेजना बन्द करो जिम्मेदार लोगों, अपने लिए या मेरे लिए ना सही पर पेड़ काटकर और सत्यानाश मत करो - यह तो पता होगा ना कि कागज़ पेड़ों से बनता है अगर यह समझ नही तो घर बैठो यार
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