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भारत बंद - एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोग के संदर्भ में 2 अप्रेल 2018


भारत बंद - एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोग के संदर्भ में 2 अप्रेल 2018 
किसी का समर्थन नहीं और विरोध नही परन्तु भारत बंद करके क़ानून और राजनीती पर दबाव बनाने की राजनीति घातक और घटिया है. यह समझ विकसित नही हुई कि पिछले 70 वर्षों में कानूनों का सरकारों, प्रशासन और लोगों ने भी कितना दुरूपयोग किया है तो तरस आता है सिर्फ. कितने दलित और आदिवासी अफसर राजनीति से लेकर प्रशासन और आयोगों में बड़े बड़े पदों पर है कितना भला किया है आपने अपने सामने खड़े दलित का, अपने गाँव का या अपने समुदाय का? अपने दफ्तर के चपरासी को तो मानव नहीं समझा या माँ बाप को सरकारी आवास में लाने से शर्माते रहें , भार्गव, शर्मा, सिन्हा या कुमार बनकर नकली जिन्दगी जी रहें है अभी तक ?
दूसरा जो लोग इसमें सामने है वे खुद इसका उपयोग - दुरुपयोग करते है. तीसरा राजनीति के खेल समझ नही पा रहें लोग, ऊना से लेकर देश में पिछले चार सालों में जो हिंसा हुई है दलितों के साथ उसका क्या? क्या छुआछूत से लेकर भेदभाव में कही कोई एक्शन हुआ या कमी आई है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को गौर से देखे बिना कुछ हासिल नहीं होगा. फिर से बाबा साहब भीमराव राम जी आंबेडकर का जन्मदिन आ गया - उप्र में क्योकि शुचितावादी आ गए, क्यों मप्र से लेकर छग और झारखंड में "आदिवासी राज्य बहुल" होने के बाद भी सरकार भाजपा की है, क्यों नार्थ ईस्ट में भाजपा है ?
दुखद यह है कि महू मप्र में जहां बाबा साहब का जन्म हुआ लगातार भाजपा जीत रही है तो आपकी राजनीति क्या कर रही है? समझ रहे है ना आप ?
इस सबका स्पष्ट अर्थ है कि आप पढ़े लिखें लोग सिर्फ घटिया राजनीति कर रहे है - दलितों और आदिवासियों के नाम पर - विश्व विद्यालयों से लेकर प्रशासन में बड़े पद लेकर बैठे है, कबीर चौरों से लेकर तमाम दलित आंदोलनों में आप मठ और गढ़ बनाकर अपनी घटिया शोषण को बढावा देनेवाली सत्ता चला रहे है और जमीन पर कुछ हो नही रहा. आपके बड़े पद किसी काम के नही है क्योकि आपके ही दफ्तर के बाबू दलितों का शोषण कर रहे है, आपका कमीशन भी इन्ही के द्वारा आप तक पहुंच रहा है.
दलित एक्ट को कमजोर नहीं किया गया है आप यह नाहक का भारत बंद का नाटक कर इसके दुरूपयोग को और अधिक बढावा दे रहे है और इससे हासिल कुछ नही होगा. कल हर तरह के लोग आन्दोलन कर क़ानून पर दबाव बनाने की बात करेंगे और हिंसा भड्कायेंगे तो क्या यह सब जायज होगा. चढ़ जाइए सुप्रीम कोर्ट पर और लगा दीजिये नीला झंडा जैसा राजस्थान हाई कोर्ट में भगवा लगाया गया था....ये तरीके जिनका हम विरोध करते है आप उन्ही का आश्रय लेकर पुरे दलित आन्दोलन को कमजोर कर रहे है ? अगर किसी ने कुछ किया है तो सामने आयेगा ना जांच में - क्या आपको न्याय संविधान में भरोसा नहीं रहा है या सत्ता पाने की इतनी जल्दी है कि किसी भी तरह से कुछ भी करके आप हर कुछ हासिल कर लेना चाहते है.
आप सब लोग यह अच्छे से जानते है पर आप करेंगे कुछ नही, क्यों नही पंचायतों को सक्षम बनाने की बात करते है, क्यों नही पांचवी अनुसूची लागू करने की बात करते है, क्यों नही वन अधिकार क़ानून की बात करते है - जिसमे आदिवासियों को दस एकड़ तक भूमि मिल सकती है, लाखों केस आपके ही दफ्तरों में पेंडिंग पड़े है जनाब - कुछ क्यों नही कर रहें ?
भारत बंद सिवाय गलत कदम के कुछ नहीं है. आप सिर्फ कुछ राज्यों और देश के 2019 चुनाव की आहट पाकर अपनी छबी सुधारने को बैठे है - ना आपको असली आदिवासियों से लेना है ना दलितों से. बंद कीजिये घटियापन.
मेरी प्रतिबद्धता, काम और समझ पर सवाल उठाने के पहले एक बार सच में इमानदारी से अपनी राजनीति, पैंतरें और गिरेबान को झाँक कर देख लेना मित्रों, फिर सोचकर बात करना.........ये राजनेता तो आने जाने है पर आपको अपनी विचारधारा की कसम है......
एक महत्वपूर्ण बात और - एक बार शाम को आकलन कर लेना कि आज कितने घरों में चूल्हा नहीं जला और कितने लोगों की जान इस बंद के कारण चली गई आपके नाजायज कदम की वजह से और ये कौन लोग थे...........कही "आपके ही - हमारे तो जमीनी साथी नहीं" - जब आप ड्राईंग रूम में मित्रों के साथ या किसी आलिशान क्लब में बड़े समूह और मीडिया के साथ कबाब चबाते हुए खम्बा खोलकर जश्न मना रहे होंगे बंद का - तब लाखों लोग पेट मरोड़कर अपनी भूख पानी पीकर शांत कर रहे होंगे नालो और गटर का या लाखों आदिवासी आज बगैर डेढ़ - दो सौ रुपया लिए घर लौट रहे होंगे अपने गाँव कि आज भी मजदूरी नहीं मिली...........और अपने बच्चों से मुंह नहीं मिला पायेंगे .
#खरी_खरी

कारवाँ पत्रिका के खुलासे और स्व जस्टिस लोया की मौत का खुलासा होने और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बदलने की कार्यवाही के एवज में , उस समाचार को दबाने में भाजपा सफल रही - आखिर और मप्र में जिन 6 युवाओं की जान गई और देश मे कई लोग मरें या भयावह नुकसान हुआ - उसका जिम्मेदार कौन है ?
जो करना है करो इस देश को 6 दिसम्बर 1992 या 1947 मत बनाओ जब लाखों लोग मारे गए थे।

दलित आंदोलन को पुनर्विचार की जरूरत है और सवर्णों को बिल्कुल चुप रहने की। राजनेताओं और प्रशासन को निष्पक्ष रहने की ताकि देश , देश बना रहे ।

कुल मिलाकर आज यह समझ आया कि दलित हर तरह से अब सक्षम है कम से कम आरक्षण और मोटे वजीफे लेकर मलाई खाने वाले अगुआ तो है ही जो अनपढ़ और युवाओं को भीड़ बनाकर इस्तेमाल करके मौत के घाट उतार सकते है और आज बहुत सफलतापूर्वक यह किया भी।
अब एक्ट भी हटाओ और आरक्षण भी बहुत हो गया 70 साल का नाटक - एक तरफ बराबरी की मांग और दूसरी तरफ ऐसे एक्ट और आरक्षण और प्रमोशन में भी आरक्षण को बनाये रखने , बल्कि बढाने की मांग निहायत ही मूर्खतापूर्ण बात है।
मानकर चलिये कि इस सरकार को तो अब जाना ही है। आज सुप्रीम कोर्ट या राष्ट्रपति भवन में कोई निष्पक्ष व्यक्ति होता तो इस पैमाने पर की जा रही हिंसा और पिछले चार वर्षों के जन विरोध को या जन विरोधी नीतियों को लागू करते देख इस सरकार को बर्खास्त कर देता और राष्ट्रपति शासन लगा देता।
दिक्कत यही है कि सुप्रीम कोर्ट में दीपक मिश्रा को बिठा रखा है , महामहिम को भी इसलिए लाये थे आसमान से प्रकट भये टाईप और दलित तुष्टिकरण के नाम पर बहुत कुछ और भी !
मोदी एवम शाह पैकअप करो फ़िल्म समाप्त हुई !!!
यह दलित आंदोलन और SC/ ST एक्ट का विरोध नही बल्कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह सरकार के साथ मप्र, राजस्थान, उप्र, छग और गुजरात में भाजपा का पुरजोर और सार्थक विरोध है।
लोगों का गुस्सा एक्ट पर कम बल्कि सरकार की महंगाई और जनविरोधी नीतियों का विरोध है।
दुआ है कि ये जोश और जज़्बा 2018 अंत तक और 2019 तक बना रहे ताकि आखिर में इस जनविरोधी सरकार को सत्ता से हाथ धोना ही पड़े।
समझिए इस दलित राजनीति के नये आयाम को और अगर यह नही समझ पा रहे तो घर बैठिए जनाब।
भाजपा को इन राज्यों में और केंद्र में चुनाव जीतने में अब आएगा पसीना।
क्या कहते है अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे
लीजिये मुरैना में एक युवा गोली से मर गया
कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी
अब टैक्स के रुपयों से एक करोड़ का मुआवजा दिलवाइये और उसकी लाश पर रोटी सेंकिए और खाईये।
70 वर्षों तक आपने अपने राष्ट्र के लोगों को शिक्षित दीक्षित नही किया और बैसाखी देकर चलाते रहें उन्हें । जाहिर है देश पीछे तो रहेगा - अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी, कपटी, कुटिल और धार्मिक भी और यही आप चाहते है तभी सबके कम्फर्ट ज़ोन बने रहेंगे - तिवारी, झा, कुलकर्णी, भागवत, जोशी, शर्मा , सिन्हा, भार्गव , ठाकुर ,जैन ,अग्रवाल ,ओसवाल, जायसवाल, साहू के भी और मालवीय , सोलंकी, वर्मा, हुजूर , कुजूर , तिर्की और नेतामों के भी !!!
करते रहिये विकास और बनाये रखिये अपनी लँगड़ी व्यवस्था - अखिलेश का नया फार्मूला आ ही गया है।
सबकी जय हो
मप्र में प्रलेस और जलेस की आज बंद को लेकर प्रेस विज्ञप्ति पढ़ रहा था. सभी शर्मा, तिवारी, जोशी और त्रिपाठी सिन्हा या ऐसे ही कुछ है .
सहज जिज्ञासा है कि क्या कोई दलित कभी इन बड़े राज्य स्तरीय पदों पर रहा है? या यूँही दिखावे के लिए और प्रगतिशील बने रहने का चस्का साहित्यकारों में भी है?




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