[ नई श्रृंखला - जिसमें अपने अवगुणों को जग जाहिर करके जीवन में क्या नही करना था, पर जोर रहेगा - बाकी निंदा स्तुति , पूजा पाठ , गिले शिकवे, तंज कसना और आत्म मुग्धता बन्द ]
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एक बड़बोले युवा पत्रकार को आजतक से आज बर्खास्त कर दिया, कारण कुछ और थे पर वह यह कह रहा कि प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ दो ट्वीट किए थे, विरोध अपनी जगह पर एक चुने हुए संविधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को शेमलेस नही कह सकते सार्वजनिक रूप से, यही नागरिक शास्त्र का बोध है आपका, यही पढ़े है - ये IIMC से निकले थे और बाकायदा जब आप किसी कारपोरेट के यहां काम करते है तो करारनामे पर हस्ताक्षर करते है कि सोशल मीडिया पर ऐसा कुछ नही लिखेंगे जो असंवैधानिक भाषा में हो, संविधानिक पदों के खिलाफ हो या सीधे सीधे सरकार के ख़िलाफ़ हो - यह समझ तो होगी ही ना, पर चलो मुक्ति मिली - अब आंदोलन चलाओ मोदी के ख़िलाफ़ और नए कानूनों के दायरे में आओ - "भला हुआ जो मेरी गगरी फूटी" की तर्ज पर पंगे लो और बचते रहो सार्वजनिक जीवन की इंटिग्रिटी, अनुशासन और नियम कायदों से
अभी कुछ दिन पहले ही उसने लिखा था कि सात माह हो गए आजतक की नौकरी को मुझे तभी लगा था कि अब बन्दा पंगा लेगा, उसने ट्वीट सही किये कोई गलत नही लिखा पर दो साल में पांच - छह नौकरी बदलते देखा है उस प्रतिभाशाली, परम् विद्वान युवा मित्र को, अजीत अंजुम के साथ यूट्यूब पर भी काम किया पर कही भी मामले जमे नही - यह पॉजिटिव भी है, मैंने खुद 38 साल में 15 नौकरियां की है पर कम से कम दो से तीन साल एक जगह टिका मेरे जैसा नालायक भगवान किसी को ना बनाये, मेरी सबसे बड़ी बुआ मरने तक कहती रही "नाईक खानदान में सबसे नालायक ये ही निकला जिसने नाम डुबोया, एक नौकरी ढंग से टिककर नही की - मरेगा तो सड़ - सड़कर मरेगा"
असल में जल्दी में पापुलर होने की प्रवृत्ति इधर तेजी से युवाओं में बढ़ी है, चाहे साहित्य हो, मीडिया, प्रशासन, ललित कलाएं, खेल या समाज कार्य - जबकि समझ बनाने और बनने में दशक लग जाते है, कुछ भी लिखना एवं गैर जिम्मेदारी से लिखना, लिखना नही है, स्थापित लोगों ने यही किया होता या जबरन जाकर आगरा दिल्ली, नाशिक, मथुरा, मुम्बई या त्रिचूर में आगे होकर पुलिस से भेड़े लिए होते तो जीवन मे कुछ हासिल नही होता, जेल जाने का इतना क्या शौक भला
मेरे बड़े अच्छे रिश्ते है इस युवा मित्र से, पर इसका गुस्सा मतलब गज्जब है अमित भाई शाह से बड़े वाला, इसका बस चले तो मेरा लोयाकरण करवा दें क्योंकि तीखा तो अपुन भी लिखता है - अभी हाल ही में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के जब कानूनी पक्ष मैने उसकी पोस्ट पर लिखें तो वह सुनने - समझने को तैयार नही था - क्योंकि स्कैण्डल क्रिएट करना जब आदत बन जाये तो आदमी को फॉलोवर्स चाहिये ना कि तर्क, इस तरह से मैं इस सदी के महानतम पत्रकार की सूची से निकाला गया
अभी कल भी एक पोस्ट देखा इन महाशय को काबा जाना है, अच्छी बात है पर किसी देश के निजी कानूनों में हम दखल नही दे सकते, जब अपने देश मे यही संविधान का अनुच्छेद 21 किसी की निजता में दखल से मना करता है तो किसी विदेशी मुल्क में आप अपनी अक्ल का प्रयोग कैसे कर सकते है, पर ऐसी पोस्ट लिखने से विवाद होते है, कमेंट्स - लाइक्स आते है और आप महान बनते है, अभी हिंदी साहित्य में अंकित से लेकर बड़े कवियों की दुर्गति देख रहें है ना, और सबसे बड़ी बात देश के चोटी के संस्थान से निकला परम मेघावी यह समझ ना सके तो IIMC से निकले प्रोडक्ट्स की योग्यता पर क्या शक नही किया जाना चाहिये, फिर फर्क क्या है - वहां संघी बैठे हो या वामी - भैया आपके चयन और प्रवेश प्रक्रिया ही सन्देहास्पद है पूरी और मुल्क के सवाल है और यह समझ तो किसी कस्बे के पत्रकार से की जा सकती है कि उसे भारत के स्वर्ण मंदिर और काबा में जाने के नियम मालूम हो
उसमे बहुत स्पार्क है, मेघावी है पर जीवन जिद से नही चलता, बहरहाल, कुछ और बढ़िया करेगा - हो सकता है किसी बड़े आदमी का प्रेस सलाहकार ही बन जायें, भविष्य में प्रधानमंत्री का ही प्रेस सलाहकार बन जाये कोई भरोसा नही
उसके लिए शुभकामनाएं, आप लोग भी दुआ करियेगा
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बड़े कवि, कहानीकार, तथाकथित सम्भ्रान्त नही पर कहलाने वाले प्राध्यापक और समकालीन समवयस्क मित्र जो साहित्य के धंधे में संलग्न है, के पीछे मत भागो, अपने समवयस्क, समकालीन और जूनियर साहित्यकारों को कभी मत जताओं कि आप उन्हें साहित्य के फ्रेम में देखते है, सराहते है या तुर्रे ख़ाँ समझते है - ये सब मूल रूप से आपके कांधों का इस्तेमाल कर बादलों के पार जाना चाहते है - इन्हें जितना उपेक्षा भाव से देखकर इनकी खिल्ली उड़ाएंगे - ये उतना आपको सम्मान देंगे या अपने जीवन से निकाल देंगे, इनका साथ होना एक सांप पालने जैसा है जो एक दिन दूध पीते - पीते जहर उगलेगा या डस लेगा - इष्ट मानने वाले या इष्ट कहने वाले ही सबसे निकम्मे और दुष्टात्माएँ है जो आपकी परछाई में भी जहर घोल देते है
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समाज कार्य और शिक्षा में जो लोग भी है वे सब दूर से भुगतकर और दुत्कारे जाने के बाद आये है, अपुन को ना एक्सपोज़र थे ना जानकारी थी, जो सामने आता गया करते चले गए और अब मुड़कर देखता हूँ तो ना शिक्षा के लिए बना था ना समाज कार्य के लिए और आज जो लोग भी इन दोनों क्षेत्रों में है वे विकल्पहीनता की बेबसी में यहाँ टिके है बल्कि अब तो थोड़ी सी वाक चतुराई, घाघपन और दो चार कौशलों से हर कोई इन दो क्षेत्रों में प्रवेश कर सम्राट बन रहा है, दिक्कत यह भी है कि करने को कुछ है नही - जड़ और मशीनीकृत जीवन में सरल, सस्ता, सुलभ और ज्यादा फायदेमंद यही बचा है , अनुभव से सीख यह निकली है कि पेशागत लोगों को जैसे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, पत्रकार, श्रेष्ठता का दम्भ भरती पेज 3 की तितलियों या रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को इन दो क्षेत्रों में कभी आना नही चाहिए और यदि वे आ गए है तो ना उन पर भरोसा करें ना उनके काम पर - वे मूल रूप से शॉर्टकट से मक्कारी करते हुए रुपया भी कमाना चाहते है और जीवन के दाग भी धोना चाहते है परमार्थ का ठप्पा अपने ही पुट्ठे पर लगाकर
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खूब दोस्त बनाएं, उधार में रुपये - पैसे, किताबें, मोबाईल, कपड़े और कम्बख्तों की शादी के लिए रुपये भी दिए - क्योंकि बड़े अधिकार से वे मांग लेते थे कि "तू तो अकेला ही है, तेरा खर्च ही क्या है" बीमा एजेंट्स को दया का पात्र बनने के पहले पालिसी खरीद ली - जिसकी किश्त अभी तक भर रहा हूँ, दोस्तों की कहानियाँ ठीक की - वर्तनी तक सुधारी - भले ही अपनी आजतक कभी ठीक नही की दोबारा, परीक्षा में नकल करवाई पर कमबख्त इन्ही सबने मिलकर जनाज़ा निकाला, आज जो जहाँ भी बैठे है वही जाकर दचिक देने का मन करता है पर छोड़ो, बस एक बात सीखी कि ज़्यादा ज्ञानी, पढ़ाकू, बाबू, अफसर , पत्रकार या मास्टरों से लेकर उजबको को दोस्त मत बनाओ - ये सब आपके हत्यारे साबित होंगे एक दिन जो आपके कांधे पर हाथ रखकर आपको बकरा ईद पर निपटा देंगे - कभी इन सबके नाम लिखूँगा
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दिनभर शोषण मीडिया, नींद, बकैती और निंदा पुराण के बाद भी रात नींद नही आती, कभी चार से छह खींच जाते है 90 एमएल के बगैर चखने के और फिर भोजन की याद ही नही रहती - पर स्वास्थ्य के मसलों पर ज्ञान देने में किसी एमडी डीएम से कम नही अपुन और रहा सवाल परामर्श और विमर्श का तो वो अब देना बंद कर दिया है, जजमेंटल होने से मेंटल होना सौ गुना बेहतर - मूल्य, सिद्धान्त और नैतिकताओं की निरर्थक पुड़ियाओं को शहद या कुनकुने पानी से गटकने के बजाय खुद की शाही मूर्खताओं पर दिल खोलके हंस लो - बस यही सच्ची साधना है
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