मेरा लॉ का अंतिम सेमिस्टर है, पिछले दो साल से ऑनलाइन कक्षाएं लग रही है, लगभग 120 छात्र दर्ज है मेरी कक्षा में जिसमें पत्रकार, मास्टर, इंजीनियर, दुकानदार, पत्रकार, व्यापारी, क्लर्क, एनजीओ वाले, संघ के प्रचारक और तमाम तरह के लोग शामिल हैं
ऑनलाइन कक्षा में 8 से 10 छात्र - छात्राएं उपस्थित रहते है, सबके पास मोबाइल है, स्मार्ट फोन है, सबके रिचार्ज फुल रहते है, नेट पर सब 24 घँटे उपलब्ध रहते है, विभिन्न पेशे से जुड़े लोग ना कभी कक्षा में आते हैं ना कभी चेहरा दिखाते हैं, परीक्षा के दिन मालूम पड़ता है कि यह भी लॉ कर रहे हैं - बाकी तो पूछिए मत पर हां अभी 2 सेमिस्टर से जब घर से परीक्षा हो रही है तो धौंस और दादागिरी दिखाकर नंबर लेने तमाम शहर भर के लोग स्टाफ पर अपना जोर दिखाने आ जाते हैं और ज़ोर दिखाते ही नहीं - बल्कि अच्छे नंबर भी ले लेते हैं - भले ही उन्हें एक लाइन लिखना ना आए हिंदी में, अंग्रेजी तो छोड़ ही दीजिये - हम लोग बेवकूफ है जो पढ़ते है और ऑनलाइन या ऑफलाईन कक्षा अटेंड करते है
पर बहाने इतने है कि पूछो मत, लड़कियाँ लॉ के अंतिम वर्ष में आने के बाद या संविधान पढ़ने के बाद भी माँ से या पापा से पूछूँगी, किसी - किसी के साथ तो रोज उसका भाई या पिता बैठा होता है जो दिखता है स्क्रीन पर कि छोरी किसी से फंस ना जायें - मतलब बेवकूफी की हद है - आई क्यों थी लॉ पढ़ने इससे तो कही कुछ और कर लें झाड़ू पोछा करके दो पैसे कमा लें
मुझे याद है प्रथम वर्ष में कक्षा में जब बहस छिड़ी तो मैंने सेक्स और जेंडर के बीच में फर्क समझाया - महाविद्यालय में महिला प्राध्यापक भी थी जिनकी कोई बहुत ज्यादा समझ नहीं थी - जेंडर और सेक्स को लेकर, सभी प्राध्यापक उस आधे घंटे के सत्र में उपस्थित थे - अगले दिन एक लड़की का भाई आकर मुझसे लड़ने लगा और मेरी कॉलर पकड़ ली कि तुम लॉ की कक्षा में सेक्स की बात क्यों करते हो और प्राध्यापकों से झगड़ने लगा कि बलात्कार, चोरी - डकैती जैसी चीजें क्यों खुलेआम कक्षा में डिस्कस करते हो - इससे मेरी बहन के और हमारे संस्कार खराब होते हैं
अब बताइए कि यह तो हमारे यहां का स्तर है जो लोग ऑनलाइन कक्षाओं की बात कर रहे हैं स्मार्टफोन ना होने की बात कर रहे हैं पढ़ाई ना होने का बहाना कर रहे हैं उनसे क्या बात की जाए, बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर गंभीरता से बात करने की जरूरत है जेंडर और समता के, शिक्षा और समझ के
सबको अच्छे नंबर चाहिए, सबको स्कॉलरशिप समय पर चाहिए, सबको फ्री किताबे - कॉपी चाहिए - जिसे बाजार में वह बेच देते हैं पर कक्षाएं अगर ऑनलाइन हो रही हैं तो वह अटेंड नहीं करेंगे और पूछने पर 1001 बहानों की किताब लेकर बैठ जाएंगे, पक्का लगता है कि ये पढ़ने नही डिग्री और स्कालरशिप लेने ही आते है कॉलेज में
शिक्षा का जितना कबाड़ा पिछले 2 सालों में हुआ है उसको ठीक करने के लिए अब कम से कम 1000 साल तो चाहिए ही चाहिए और सबसे ज्यादा इस पूरे प्रकरण में मौजमस्ती प्राध्यापकों ने की है - जिनका औसत वेतन दो लाख रुपया प्रतिमाह है और उन्हें कोई भी शर्म भी नहीं करना पड़ती, शर्मनाक यह है कि वे अपना 2GB डाटा भी खत्म नहीं करना चाहते और प्राचार्य को गाली देते हुए रोते रहते हैं कि महाविद्यालय में नेट की सुविधा नहीं है, मतलब हालत यह है कि वे पूरा समय रोते रहेंगे 5 या 10 मिनट के बाद कक्षा बंद कर देंगे और कहेंगे कि नेट नहीं चल रहा, बेशर्मी की भी कोई हद होती है यही नेट उनके कविता पाठ या प्रवचन के समय बगैर रोक-टोक के चलता रहता है
हम सब पापी हैं हम सब दोषी हैं किसी की वंदना करने की जरूरत नहीं और किसी को कोसने की जरूरत नहीं
[कल लड़कियों की शिक्षा और उनकी पढ़ाई में आने वाली बाधाओं के बारे में प्रदेश स्तर का एक वेबीनार था, उसमें कई लोगों ने कई तरह की चुनौतियों की बात की; मैंने बहुत सारे मुद्दों के अलावा इन मुद्दों पर भी चर्चा करने की कोशिश की थी कि कैसे शहरी क्षेत्र में जेंडर समता के बावजूद भी बहुत बहुत हद तक महिलाएं और लड़कियां खुद आगे आना नहीं चाहती - भले ही उन्हें कानून पढ़ा दो, मेडिकल साइंस पढ़ा दो या इंजीनियरिंग पढ़ा दो - दिमाग के जाले खुलने में बहुत समय लगेगा और जिसे समझ हो वही वही टिप्पणी करें अन्यथा यहां से निकल ले]
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