किस डाक्टर ने बोला बै, बोल
जे हर पोस्ट, कविता या भड़ास के साथ खुद के फोटू या घटिया किस्म के दो कौड़ी वाले वीडियो चैंपना कोई संविधानिक बाध्यता है या फेसबुक के मूलाधिकारों में आता है यह
कुछ की पोस्ट अच्छी होती है पर थोबड़ा देखकर उल्टी हो जाती है, रेसिज्म नही, अपराध बोध या कुंठा भी नही पर कसम से यह सच है - आपकी जो मर्जी वो करो - पर कम से कम उजबक टाईप के खुद के फोटो हर पोस्ट के साथ मत चिपकाओ, इससे ज़्यादा और कुछ नही कहना
ब्यूटी एप से औरतें तो औरतेँ जवान उम्र के डेढ़ फुटिया कमर के कान में बाली वाले काले पीले छोरे और दाँत टूटे कवि भी खींसे निपोरते फोटो डालकर पोस्ट की बारह बजा देते है, कूड़ा तो वैसे ही थी - खुद का फोटो लगाकर सत्यानाश कर दिया और तुम हो कौन बै, कही के तुर्रे ख़ाँ हो जो तुम्हे देखते रहें दिन में दस बार - साला दिन बर्बाद हो जाता है सुबू सुबू तुम्हारा थोबड़ा देखकर शनि महाराज टाईप
इनकू बोलने से कछु नाही होगा घूँसा पेट पर मारना पड़ेगा, दिल दिमाग पे लगने से तो रहा, साला जवानी का ढूंढकर पेलते है फोटू और हकीकत में कब्र में लटके यमराज को पुकार रहें है, प्रोफ़ाइल में सेप्रेटेड है और फोटो डाल रिये कमसिन बाला के साथ 15 वी शादी की साल गिरह के, है सिंगल और अपने तीसरे बच्चे का जन्मदिन मनाया जा रिया है - के फोटू डालेंगे - कहाँ भुगतेंगे हरामखोर कही के, हद है मल्लब
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रजत के बाद स्वर्ण पदक भी लेंगी भारत की लड़कियाँ
लकदक सजी धजी गुड़िया नही बल्कि तीखा और सच बोलने वाली दमदार महिला बनाओ, प्रश्न करने वाली समझदार स्त्री बनाओ देवी नही, छोरियों को बगावत करना सीखाना पड़ेगा तब तक कुछ नही होगा, तुम लाख जेंडर बजट बना लो या लाड़ली लक्ष्मी कर लो - कुछ नही होना जब तक वो तुम्हारी व्यवस्था पर प्रश्न नही उठाती
वट सावित्री, करवा चौथ या तीज के उपवास रखने के बजाय खूब खाना और पचाना सीखें और उन्हें उल्टी शिक्षा दो कि दुनिया घर में या रसोई में नही, पति के चरणों में नही, ससुराल में नही - बल्कि घर के बाहर मैदान, भीड़, जल - जंगल - जमीन या पहाड़ - आसमान पर है
घर से, गांव से, कस्बे और शहर से बाहर निकलकर दुनिया देखने दो उन्हें - विश्वास तो करो उन पर, क्या होगा ज़्यादा से ज़्यादा - अपने पसन्द के लड़के से शादी ही करेगी ना - इससे बेहतर उसके जीवन में क्या होगा
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पाप यह हो गया कि घरवालों और मित्रों के दबाव में आकर परसो टीके का पहला डोज़ लगाया, ना फेसबुक पर फोटो डाला, ना खिंचवाया और ना किसी को बताया - बस मप्र और देश के रिकॉर्ड बनाने में एक आँकड़ा और जुड़ गया मेरे इस कृत्य से, जीवन भर इस अपराध बोध से मुक्त नही हो पाऊँगा अब
परसो रात से ही भयानक बुखार है, हाथ सूज गया है, दर्द है भयानक किस्म का - कल भी सारा दिन बिस्तर पकड़े रहा और आज भी उठने की हिम्मत नही हो रही
बहुत ताक़त लगाकर यह पोस्ट लिख रहा कि शायद यहाँ लिखने और टीका लगने की जाहिरात से कोरोना देव या देवी को पता चल जायें कि मैं भी टीकाधारी हूँ और भेड़ चाल में शामिल हूँ
रहम, दया - परमात्मा, ठीक कर दो बहुत काम पड़ें हैं पेंडिंग
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मयंक पटेल, देवास जिले के ग्राम क्षिप्रा से आते है और अभी उन्होंने कक्षा बारहवीं पास की है- उम्र मात्र उन्नीस बरस है, परन्तु वे जिस सघन अनुभूति और धैर्य से कविता लिखते है वह चकित करता है. मयंक का रचना संसार आसपास की घटनाओं और अपने जीवन के नजरिये को व्यक्त करता है. वे छोटी कवितायें लिखकर अनूठे बिम्ब रचते है और लगभग हर बार चमत्कृत करते हैं.
समालोचन ने इधर नए और उभरते हुए कवियों के लिए एक स्पेस बनाया है, इस उम्मीद के साथ कि ये कवि अपनी सिर्फ बात ही नहीं रखें बल्कि कविता के वृहद् पटल पर सशक्त उपस्थिति भी दर्ज करें.
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Ashish Maharishi ने यह प्रसिद्ध गीत शेयर किया है, रोक नही पा रहा आप सबके लिये शेयर करने से
केसरिया बालम अब राजस्थान की संस्कृति का अभिन्न प्रतीक बन चुका है. ढोला-मारू की प्रेम कहानी से जुड़ा यह लोकगीत न जाने कितनी सदियों से राजस्थान की मिट्टी में रज-बस रहा है. लेकिन माटी के इस गीत को सम्मान के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाने वाली महिला का नाम था अल्लाह जिलाई बाई जिन्हें पूरी दुनिया में मरू कोकिला और बाई जी के नाम से जाना जाता है. अल्लाह जिलाई बाई के भीने-भीने स्वर रेतीले राजस्थान में बारिश की कमी को पूरा कर देते थे. कहते हैं कि मरूस्थल की इस बेटी की मखमली आवाज जब बियाबान रेगिस्तान में गूंजा करती थी तो जैसे यहां की बंजर धरती की आत्मा भी तृप्त हो जाती थी
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मीडिया पर इतना बड़ा हमला हुआ, हिंदी का कोई साहित्यकार बोला - नही, किसी नामी कहानीकार, कवि या आलोचक ने कोई टिप्पणी की - नही, कोई प्राध्यापक सामने आया - नही
धूर्त है सब, विशुद्ध मक्कार और अवसरवादी, इनके खून में है ये मूल्य, नौकरी बचाओ, घटिया राजनीति करो और अपनी इज्जत और तथाकथित सम्भ्रान्त प्रतिष्ठा बचाकर रखों, वाट्सएप ग्रुप में बहस करके किसको लुभा रहें हो दिल्ली मुम्बई की उन औरतों को जो पेज 3 की तितलीनुमा घटिया साहित्यकार है या उन महिलाओं को जो आपको अलै अलै करती है
सबका नम्बर आएगा - तुम्हे क्या लगता है स्कूल, कॉलेज में या विवि या मंत्रालयों के मठों में चुप बैठकर स्वार्थ सिद्ध करते रहोगे तो बच जाओगे - बिल्कुल नही, सब मरोगे - सबके सब
तुम क्लब हाउस में बैठकर चेतना फैलाओगे तो क्या सरकार को मालूम नही पड़ेगा या चुप भी रहोगे तो क्या मालूम नही पड़ेगा
चलो मत बोलो इस पर , जिस किसान, जमीन और गेहूँ की बालियों पर कविता, कहानी लिखकर घटिया उपन्यास पेल देते हो, तुम्हारे प्रेमचंद का तो जीवन ही इसपर कट गया जिसे आदर्श मानते हो, उन्ही किसानों को आज मीनाक्षी लेखी ने "मवाली " कहा, कुछ समझ आया कि नही, मतलब किसानों और छछिया भर छांछ पर ढेरो कचरा पर जो सांसद और मंत्री किसानों को मवाली कह रही - उस पर चुप्पी - कहाँ से लाते हो इतनी बेशर्मी रे
शुतुरमुर्गो - कब तक बचोगे
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एक उम्र के बाद दिमाग सठिया जाता है, बस वैसे ही हो गई है वो, दुर्भाग्य से ना यादव रहें और ना पहले वाला हंस जो सनसनी पैदा करके उन्हें या किसी और को चर्चा विमर्श में रखें, और तो और अब कोई घास नही डालता तो चर्चा में बने रहने को क्या करें - आड़ा - तिरछा, अनाप - शनाप लिखों - जैसे मैं लिखता हूँ अक्सर, पर अपने नाम ना कोई कबूतर है ना चाक के पहिये बस मजे लेने के लिए लिखते है पर ये घाघ है और चतुर भी, कोई बुरा नही पर इस तरह की हलकट पोस्ट - छी
बड़ी ही अजीब पोस्ट है, मेरी माँ ने जीवनभर नौकरी की, कभी नखरा पट्टा करके जाने को समय नही मिला, दौड़ते भागते गांव जाने वाला टेम्पो पकड़ती थी , माँ के साथ जीवन भर स्कूल में कई संगी साथी शिक्षिकाएं थी, मैंने भी जगह जगह पढ़ाया पर कभी किसी शिक्षिका या किसी विभाग में महिलाओं को एक्स्ट्रा सजधज कर आते नही देखा, स्कूल या दफ्तर आते ही थक जाती थी और निढाल हो जाती थी क्योंकि आने के पहले घर भर के काम निपटाने होते थे कमाती इसलिये थी कि घर खर्च में बराबरी से हिस्सेदारी कर सकें और स्कूल या दफ्तर से घर लौटते समय भी ढेरो काम निपटाकर जाती थी बाजार के - सब्जी हो या प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन हो या किराना लेना हो
पुराने लोग गलत नही कहते थे कि एक उम्र के बाद इसलिये चुपचाप घर बैठना चाहिये, भजन पूजन करना चाहिये, ये क्या कि अपनी ही बेइज्जती खुद करवा रही हैं
असल में इनपर ध्यान ही ना दें कोई, जीवन भर सब किया और अभी भी प्रचार की भूख मिटी नही
पुराने अल्मा मैटर की माँ जगदम्बा अपना फेसबुक पर लिखा ही पढ़कर समझ लें या समझकर पढ़ ले तो जाले साफ हो जाये उनके, एक उम्र के बाद यह स्वाभाविक है, इसलिए 60- 65 वालों को ना पढ़ो, ना गुणों - नामवर जी को हर कवि मुक्तिबोध के बाद का कवि लगता था जुगरान था या छग का विश्वजीत सिंह और ये दोनों डीजीपी थे , नामवरजी की भी उम्र पक ही गई थी
बहरहाल
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