मुझे रामकृष्ण परमहंस की बात याद हो आती है, - "नदियाँ बहती हैं, क्योंकि उनके जनक पहाड़ अटल रहते हैं" - शायद इसीलिए इस संस्कृति ने अपने तीर्थस्थान पहाड़ों और नदियों में खोज निकाले थे–शाश्वत अटल और शाश्वत प्रवाहमान – मैं एक के साथ खड़ा हूँ, दूसरे के साथ बहता हूँ
- निर्मल वर्मा
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दैनिक जागरण के किसी मृगेंद्र सिंह से अभी फोन पर बात की - जो शायद वहाँ का बड़ा बाबू टाईप लगा और मैंने शिकायत दर्ज करवाई तो बोला - देखते है, जब पारिश्रमिक का बोला तो कहता है - देखेंगे और जब मैंने कहा कि इस पर कार्यवाही कीजिये नही तो मैं एडिटर्स गिल्ड में शिकायत करूँगा तो बदतमीजी करने लगा और कहने लगा कि अब फोन मत करियेगा
एक तो #दैनिकजागरणभोपाल ने गलती की ऊपर से अपनी गलती मानने के बजाय बेहद घटिया तरीके से बात कर रहा था
एक जमाना था जब ओमप्रकाश जी जैसे सम्पादक इस अख़बार में थे, जो सहज थे और पाठकों से तसल्ली से बात करते थे और अब ये नया मैनेजमेंट आ गया है - जो चोरी करता है , यहां वहां से कंटेंट उठा लेता है और बदतमीजी भी करता है और लेखकों के रुपये भी खा जाता है
शर्मनाक और घटिया गई #दैनिकजागरण भोपाल
#दैनिकजागरण ने "अमर उजाला में 29 जून" को छपी मेरी कहानी को ज्यों का त्यों आज छाप दिया, यह कहानी टिमरनी जिला हरदा के रितेश की थी जिसे मैंने श्रम से लिखा था
शर्मनाक यह है कि मेरा नाम तक नही लिखा चोरो ने और पता नही किसने लगा दी
पहले किसी नीलम शर्मा के कहने पर मैंने कुछ कहानियाँ इन्हें दी थी, जब 4 छाप ली और पारिश्रमिक की बात की, तो इस महिला ने बात करना बंद कर दिया और जवाब भी नही दिए
ये सब अखबार चोर हो गए है और एकदम पक्के वाले बेशर्म
कोई बताएगा कि पारिश्रमिक लेने के लिए क्या करूँ और इस चोरी की शिकायत कहाँ करूँ, पता बताएं या लिंक दें जहां सीधे शिकायत की जा सकें इनकी
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