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Kuch Rang Pyar ke - Post of 17 July 2021

 सदोष मानव वध के दोषी

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कुल मिलाकर प्रकाशन, लेखन और किताब पर संदेह उठे और यह भी कि कुछ भी लिखना, बकवास करना और पीएचडी के शोध ग्रन्थ की तरह जो भी मिला उससे कॉपी पेस्ट करके चैंप देना ना लेखन है, ना छापने का धंधा, शोध ग्रन्थ तो विवि में दफन हो जाते है पर किताब सार्वजनिक डोमेन में आ जाती है और जाहिर है कि "आप बुद्धिमान हो सकते हो पर दूसरे मूर्ख नही है" - लीपापोती से जीवन नही चलते
एक युवा लेखक का वध तो हुआ ही पर पूरा प्रकाशन व्यवसाय और प्रचार - प्रसार का धंधा भी सन्देह के घेरे में आ गया, साथ ही अब जो विचारधाराओं की टकराहट में बीएचयू के प्रोफेसर्स से लेकर प्रलेस - जलेस की जमात सामने आकर जो कबड्डी और खो खो खेल रही है - वह भी हास्यास्पद है, इनकी पोस्ट पढ़कर भी अफसोस होता है कि ये हिंदी के कर्णधार और खिवैया है
युवा शोधार्थियों की आपसी जलन, कुंठा, नौकरी के लिए मोहरा बनकर सामने से कीचड़ उछालना और शब्दों के बाण चलाना कोई कम गम्भीर कृत्य नही है और वे नही जान रहें कि उन्हें यूज किया जा रहा है घाघ , शातिर और गैंग द्वारा यही लोग इसी प्रकाशन की हर पंक्ति की समीक्षा कर रहें थे पर प्रकाशन हर दो साल में नया मुर्गा खोजता था, अबकी बार तो एक का वध ही हो गया सार्वजनिक और कैरियर खत्म हो गया
अब सोशल मीडिया के इस ज़माने में सब जब विश्वसनीयता खो चुके है तो प्रकाशन गृहों से जुड़े लोग, उनके लेखक और उनके भागीदार सब अविश्वसनीय हो गए है अचानक और पूरे जीवन के कामों पर प्रश्न चिन्ह लग गए है - प्रचार, बेचने और लोकप्रियता की होड़ कितना नीचे ला देती है यह समझ आया, साथ ही सचिन तेंदुलकर की जीवनी से ज़्यादा बिकवाने का दावा करने वाले मुंगेरीलालों से घटिया लेखक और घटिया किताबें भी लाइम लाइट में आती है जो खोदा पहाड़ निकली चुहिया निकलती है - स्तरीयता और मानकीकृत साहित्य के नाम पर ऐसे कई संग्रह व्यर्थ है, कुल मिलाकर और दो कौड़ी के आठवी दसवीं पास या दिग्भ्रमित इंसान और किताबों को महान बनाने का षड्यंत्र भी उजागर हुआ
बहरहाल, पटाक्षेप हो गया और अब कुत्तों - बिल्लों की लड़ाई सांप - नेवले की लड़ाई में बदल गई है
देखते रहिये - पिक्चर अभी बाकी है

Ref Ankit Narwal, Aadhar Publication and Biography of late Namwar Singh
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