Skip to main content

Posts of 8 to 12 May 2020

एक वायरस ने सब ध्वस्त कर दिया - हम अवसर को उपलब्धि में बदलें
◆◆◆

●प्री और पोस्ट कोरोना और वैश्विकता
●आत्मनिर्भरता
●उपकरणों की अनुपलब्धता और आज का प्रोडक्शन 2 लाख प्रतिदिन
●आपदा को अवसर में बदलने की दृष्टि
●अर्थ केंद्रित बनाम मानव केंद्रित वैश्वीकरण
●आशा की किरण
●संस्कृति संस्कार
●वसुधैव कुटुम्बकम
●संसार के सुख सहयोग और शांति की चिंता
●जय जगत की बात
●जीव मात्र का कल्याण
●एक सुखी समृद्ध विश्व की संभावना
●भारत के लक्ष्यों का प्रभाव विश्व कल्याण
●खुले में शौच, कुपोषण, पोलियो का असर
●ग्लोबल वार्मिंग
●योगा दिवस उपहार है
●भारत की दवाईयां आशा है
●दुनिया में भूरी भूरी प्रशंसा और विश्वास
हम श्रेष्ठ दे सकते है
●आत्म निर्भरता का संकल्प
●सदियों का गौरवपूर्ण इतिहास
●सोने की चिड़िया के समय विश्व कल्याण
●गुलामी की जंजीर में विकास की तड़फ
●Y2K संकट से हमने निकाला
●बेहतरीन टेलेंट है हमारे पास
●सप्लाय चैन आधुनिक बनाएंगे
●कोई लक्ष्य असम्भव नही - कच्छ के समय किया
●5 स्तम्भ - अर्थ बाजार क्वांटम जम्प वाली, इंफ्रास्ट्रक्चर , सिस्टम जो ट्रक्नॉलॉय ड्रिवन, जन सांखियिकी - ऊर्जा का स्रोत, डिमांड सप्लाय चैन का इस्तेमाल करना
●आपूर्ति की व्यवस्था को मजबूत करेंगे
●मजदूरों के पसीने की खुशबू
●नए संकल्प की घोषणा आत्म निर्भर भारत की कड़ी होगा
●आर्थिक पैकेज - 20 लाख करोड़ रुपये ●भारत की जीडीपी का 10 % है - सबको सम्बल मिलेगा इससे
●2020 में 20 लाख नई गति देगा
●लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ को गति देगा
●देश के श्रमिक, किसान के लिए यह पैकेज है जो परिश्रम कर रहा है, ईमानदार ●मध्यमवर्गीय के लिए जो ईमानदारी से टैक्स देता है , उद्योगपतियों के लिए है
बोल्ड रिफॉर्म्स के साथ आगे बढ़ना है
●बीते 6 वर्षों में रिफॉर्म से हम मजबूत हुए है
सबके पास रुपया पहुंचा है जब सब बन्द था
●खेती से जुड़े सप्लाय में रिफॉर्म होंगे, कृषि पर कम असर हो
●बिजनेस को प्रोत्साहित करेंगे
●इन्वेस्ट को आकर्षित करेंगे
●आत्मबल, आत्मनिरर्भता के लिए तैयार रहें
●ग्लोबल दौड़ ने जीते
●Efficiency quality ठीक होगी
●देश ने गरीबों की संयम शक्ति का दर्शन किया
●छोटे लोगों ने , मजदूरों ने कष्ट झेलें , त्याग किया अब उन्हें ताकतवर बनायें
●गरीबों, प्रवासी मजदूरों, संगठित - असंगठित लोगों के लिए फैसलो का एलान करेंगे
●लोकल ने ही डिमांड पूरी की यह जरूरत नही जिम्मेदारी है - जीवन मंत्र बनाओ लोकल को
●आज से लोकल के लिए वोकल
●हम कर सकते है श्रद्धा बढ़ाओ
●खादी हैंडलूम की बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची है
●कोरोना लम्बा चलेगा सिर्फ यही जीवन नही लक्ष्यों पर केंद्रित रहेंगे
●लॉक डाउन 4 नया होगा रंगीन
●18 मई के पहले नियम बताएंगे

◆◆◆
बहुत उम्दा भाषण, एक एक पंक्ति पर लम्बा लिखा जा सकता है पर सबसे पहले दो तीन बातें बता दीजिए

- 6 वर्षों में विदेशी वस्तुओं को बढ़ावा किसने दिया राफेल हो या कुछ अन्य
- पीएम केयर फंड का हिसाब और पहली बार मे 15 हजार करोड़ का जो पैकेज था उसका हिसाब बता दीजिए
- ये 20 लाख करोड़ आएंगे कहाँ से और इसमें से प्रत्यक्ष फायदा मजदूर, किसान और मध्यम वर्ग को कैसे होगा
- खादी हेंडलूम्स का रिकॉर्ड क्या है -आपका दस लाख का सूट खादी का है क्या, और बाकी मंत्रियों के कपड़े या जैकेट्स या गमछे या विदेशी दौरों के दौरान पहने कपड़े
- चीन से रेपिड टेस्ट हमने ही खरीदे ना, मूर्ति भी वही से बनवाई और अभी बाकी सब भी
-लोकल के लिए वोकल हम बनेंगे बशर्ते आप वोकल से ऐक्शनेबल हो जाये
- आजाद भारत की सबसे निकम्मी और देश को हजार साल पीछे ले जाने वाली आपकी सरकार है जो सिर्फ और सिर्फ अम्बानी, अडानी, माल्या, नीरज मोदियों और जयेश शाहों को पोषित करती रही हैं और सभी सरकारी बैंक्स से लेकर संस्थाओं को ध्वस्त करने का काम किया है और आप की गलतियों की वजह से पूरा मजदूर समुदाय सड़कों पर है और आपके पास इनके लिए कोई प्लान नही है जनाब
- जिस वसुधैव और ग्लोबल भाई चारे की बात आप चिल्ला चिल्लाकर करते है उसी के ठीक विपरीत आपने एक समुदाय विशेष को अभी 20 मार्च से ऐसा पोट्रेट किया जैसे वो खुद कोरोना से मरने को बेचैन था और पिछले 6 सालों में जो लिंचिंग हुई है देशभर में, कश्मीर में जो हुआ वो दुनिया के सामने है
- एक बार बने हुए शौचालयों की तफरी करने को कहिये आपके सांसदों, विधायकों और मुख्य मंत्रियों को कि कैसे है शौचालय, पानी की उपलब्धता और उपयोग का स्तर - शायद वो ईमानदार हुए तो एक स्वर में कहेंगे कि सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है संडास का घपला
- सबसे ज्यादा बच्चे अभी भी कुपोषण से मर रहें है
- सड़कों में गर्भवती महिलाएं या 2 माह के नवजात त्याग और तप कर रहें हैं - वास्तविकता से परे होकर आप पलायन कर रहें है प्रधान जी
- पहले मप्र में करोड़ो का खेल रचकर सरकार खरीदी और देश को खतरे में डाला और अब मुंबई हासिल करना चाहते है - कब तक सत्ताओं के खेल के लिए 138 करोड़ तपस्वियों और त्यागियों को बरगलाते रहेंगे महामात्य
सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है
***
आदेशित किया जाता है कि ईश्वर अवतार लें - सब फेल हो गए है यहाँ
◆◆◆

मजदूरों के वीडियो देखकर किसी को समझ नही आ रहा कि क्या किया जाये
उड़ीसा के आंगुल जैसे जिले में शुक्रवार तक एक भी कोरोना का मरीज नही था अभी एक मित्र ने बताया और आज 13 हो गए है अर्थात रेडजोंन में आ गया वो जिला भी
गलती कहाँ है - निष्पक्षता से कह रहा हूँ कोई भी सरकार होती स्थिति 19 -20 ही होती, पर हकीकत यह है कि 73 साल हमने देश देखा ही नही - जेब देखते रहें, लोग नही देखें उद्योगपति देखते रहें, आम आदमी नही खास आदमी देखते रहें
मुम्बई से लेकर दिल्ली तक एक अबोध भीड़ है जो सब जानती समझती है पर कुछ नही बोल रही है - लाचार, बेबस और मूक है - आँखों मे गुस्सा और दिल दिमाग में गुस्सा है, नफरत है और यकीन मानिये ये लोग लौटकर नही आएंगे इतनी जल्दी - शायद कभी शहरों में ना आये लौटकर और मजदूरों की हालत नियमों से और खराब कर दी है सरकारों ने
भारत भाग्य विधाता रूठ गया है और 73 साल की इस आजादी में गरिमापूर्ण जीवन तो दूर बीमार होने पर उस नागरिक को लाठी, षडयंत्र और हिकारत मिल रही हैं - बेहद परेशान करने वाले दृश्य है और हम सब बेबस है - भूख का नाच, अन्याय का मैदानी दृश्य और जिम्मेदार लोगों का जवाबदेही से मुक्त होकर पलायन कर जाना - क्या दर्शाता है
मार्क्सवादी हो या बहुजन हिताय के देवगण सब गायब है और चुप है - ये लोग यही डिजर्व करते हैं इन्हें सड़कों पर ही भूखे मर जाना चाहिये इसके अलावा और कोई तरीका फ़िलहाल नजर नही आता मुझे और शायद इसी सबमें सबका भला है - यदि पुलिस इन से रुपया ले रही है तो ले लें पूरी बेशर्मी से क्योकि अब वसूली के मौके नही आएंगे, इन्हें जी भरकर मार लें क्योंकि सहने वाले अब आपके बड़े शहरों में नही आएंगे , जलील कर लीजिए महिलाओं और बच्चों को - इतने सॉफ्ट टॉरगेट नही मिलेंगे
अब किसी की अपील का फायदा नही है, अब कोई सरकार किसी की नही सुन रही और अब आंकड़ों, व्यवस्था और मदद पर भी किसी को भरोसा नही है और हम सब हर जगह से बुरी तरह नंगे हो चुके है
हम लोकसभा, विधानसभा से लेकर मंत्रियों, बड़े अधिकारियों के बंगलों और बड़े बड़े आलीशान संस्थाओं को इन घटिया कमीनो से दूर रखा जाये - अगर ये भीड़ इनमें घूस गई तो इन्हें हकालना मुश्किल होगा और यदि इन्हें वहां मार दिया तो वे जगहें अपवित्र हो जायेंगी
कोई दोषी नही है - इस मानव योनि में जन्म लेना ही सबसे बड़ा दोष है और इसके सिवा और कुछ नही कहूँगा - विचलित हूँ - यह कोई राजनैतिक टिप्पणी नही है
मेहरबानी करके संविधान की पूजा करना भी बंद कर दीजिए
***
कवि ने कहा कि " जी नमस्ते, कैसी है आप, 348 कविताओं के अलावा इधर एक उपन्यास भी हो गया है 27612 शब्द है कुल"
कवियत्री ने मादक आवाज में कहा "अरे वाह, तो फेसबुक पर डालिये ना"
"आप पढेंगी अगर फेसबुक पर डालूँगा तो "
" नही जी, उपन्यास नही पढूँगी - उस पर जो गालियां और टीकाएँ आएंगी उन्हें पढ़कर छैने के रसगुल्ले बनाऊंगी - फोन रख अब और आइंदा करना मत - दोपहर को सोने भी नही देते कमबख्त "
***
राजकाज, धर्म, नीति, ईमानदारी, संस्कृति, नैतिकता, मूल्यानुगत शिक्षा, सम्मान, व्यवहार , समता, नियम कायदों, लोकप्रियता और सब अच्छा - अच्छा होने के बाद भी महाभारत हुआ और आम नागरिकों को सत्ता की हवस के लिए लड़ना ही नही - मरना भी पड़ा
मरने वाले ना कौरवों को याद है ना पांडवों को, ना उनका नाम इतिहास में कही दर्ज है - वे सिर्फ पैदल चल कर लड़ने वाले आम नागरिक थे , उनके पास कोई ब्रह्मास्त्र नही थे और ना ही कोई दिव्य शक्तियां
बड़े युद्ध, बड़ी लड़ाइयों में सिर्फ और सिर्फ आम लोग ही लड़ते है - किसी दुर्योधन, दुशासन, वासुदेव, या युधिष्ठिर और उसने बन्धु बांधवों की महत्वकांक्षाओं की बेदर्दी से बलि चढ़ते है और भीष्म पितामह जैसे लोग नमक का कर्ज अदा कर चुप रहते है
महिलाएँ , बच्चे भी इसका खामियाजा भुगतते है, बुजुर्गों को सब सहना ही पड़ता है
और अंतिम बात - संजय जैसे लोग धृत राष्ट्रों के चापलूस बने हुए सिर्फ दृष्टा बनकर रह जाते है और स्वयं सुरक्षित रह जाते है सदैव के लिए
मैंने महाभारत से शिक्षाएं ग्रहण की उसका सार है यह - अर्थ आप बुझिये इसमें से
***
ये जो विस्थापन का दर्द है वह 1947 के विस्थापन से भी ज्यादा है - जिस तरह के वीडियो आ रहें हैं - भयावह है , लगता है पूरा देश सड़कों पर है और कही किसी ने एक चिंगारी भी फेंक दी तो ये लोग भड़क जाएँगे
सरकार नामक कुछ होता है क्या इस देश में
***
कोरोना के साथ ही जीना होगा
◆◆◆

55 दिन के वनवास, बहुत जल्दी ही एक लाख तक पहुंचने वाले आंकड़ों और सड़कों पर मजदूरों की पसरी भूख और दुर्घटनाओं से हो रही मौतों का यही सिला है तो फिर इस सबकी ज़रूरत क्या थी
यूँ भी हम ज़िंदा ही थे - मलेरिया, उल्टी दस्त से मर ही रहें थे और कोरोना से भी मर जाते
" पर हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण " - बर्तोल्ड ब्रेख्त कहता है - 73 साल का विकास, सरकारी व्यवस्थाओं की असरकारी योजनाएं और बजट से लेकर सरोकार और गिद्धों की लड़ाई सब सामने है - तुम किसके पक्ष में हो और निर्णायक भूमिका में कौन है - श्रम या पूंजी - यह भी हम समझ गए है
हमें सब पता लग गया है कि हम भारत के लोग सिर्फ एक प्रीएम्बल है और सम्प्रभुता सरकारों ने किसके पक्ष में दर्शाई है - ना कांग्रेस, ना भाजपा और ना कोई और - दोषी है तो सिर्फ हम - जिन्होंने 73 साल पालकी ढोई - कहार बनकर और आज सड़कों पर मरने को अभिशप्त है, भूपेन हजारिका जब कहते है
"जुग जुग से ई डोला कांधे पर चलत है
कमर टूट टूट जाए ,
राजा बाबू सोवत है निंदिया की गोद में
अपना पसीना बहा जाए,

अगर फिसल के गिर गई है
तो फिर ना उठी है ई डोला,
राजा महाराजाओं का डोला
बड़े बड़े लोगन का डोला "

हमें अपने पर लाज आती है , बकौल दुष्यंत " हम पराजित है, मगर लज्जित नही "
Prem Kumar याद है ना - 1987 से 1992 तक हम नुक्कड़ नाटक करते थे ब्रेख्त का जिसका एक डायलाग था - " डाक्टर तुम्हारे घर के कालीन की कीमत पाँच हजार लोगों की मजदूरी के बराबर है - हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण "
***
सबसे ज़्यादा मजदूर ही भुगत रहे हैं -कैसा देश बना लिया है हमने - घर जाने की सज़ा - पीठ पर कौडों से लेकर यमराज के द्वार तक , भूख का साम्राज्य और पुलिस के अत्याचार का सामना करते हुए बीमार बदहाल मजबूर मजदूर का दोष क्या है - कोई बता सकता है क्या
***
अगर तुम अपने जीवन को
वैसा न भी बना सको
जैसा चाहते हो तो
कम से कम कोशिश करो
जितना कर सको
कि इसे नीचे न गिराओ
दुनियां के साथ जरूरत से ज्यादा जुड़कर
बहुत चलता पुर्जा बड़ा बोलता बनकर
न गिराओ इसे चारों तरफ
खोलकर सबको दिखाते
रोज ब रोज की पार्टियों समाजी रिश्तों की
क्षुद्रता में घिसटते खपाते
कि एक दिन यह जीवन उबाऊ बोझ बन जाये।

◆ ग्रीक कवि कवाफी
***
सुबह एक मित्र से बात हुई तो समझ आया कि गरीब तो पूरा देश है पर इस समय सारी ट्रेन, बसें मजदूरों को लेकर
1 बिहार
2 उत्तर प्रदेश
3 झारखंड
4 छत्तीसगढ़
5 मध्यप्रदेश
ही जा रही है, सबसे ज्यादा से कम के क्रम में ही राज्य का नाम लिखा है
आखिर क्या कारण है कि 73 वर्षों में बिहार की हालत ऐसी क्यों है - सबसे ज्यादा आय ए एस और सबसे ज्यादा मजदूर देने वाले इन गोबर पट्टी के राज्यों की हालत ऐसी क्यों है और सब बामन, ठाकुर वैश्य और दलित बहुल है मतलब हिन्दू राष्ट्र के नागरिक फिर भी ये हाल कि डेढ़ माह में पस्त हो गई व्यवस्था - हार गई राजनीति और सामने आ गया कड़वा सच सबका
लोग ही मूर्ख है या राजनेता भोले है
***
गोदी के आगे अब गंजड़ी मीडिया
***
" कहते है जब परमाणु हमला होगा तो सब खत्म हो जाएंगे पर कॉकरोच जिंदा बचेंगे "
- नार्कोस सीरीज से

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...